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दुर्घटना में मुआवजा नहीं देना होगा फाइनैंसर को

Last Updated- December 05, 2022 | 9:22 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते गोदावरी फाइनैंस कंपनी बनाम डेगाला सत्यनारायणअम्मा मामले में यह निर्णय दिया कि यह जरूरी नहीं है कि वाहन फाइनैंसर कंपनी सड़क दुर्घटना में मरने पर मृतक के परिवार को मुआवजा दे।


इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय और ट्राइब्यूनल के फैसले को उलट दिया। रजिस्टर में  वाहन मालिक के साथ-साथ वाहन फाइनैंसर का नाम भी दर्ज था। इस मामले में ट्राइब्यूनल ने वास्तविक मालिक के साथ-साथ उक्त कंपनी को भी कुछ हद तक जिम्मेदार माना था।


सुप्रीम कोर्ट ने इस राय को गलत माना है। उसने कहा कि चूंकि वाहन किश्तों में खरीद अनुबंध का मामला था इसलिए रजिस्टर में फाइनैंसर कंपनी के नाम का उल्लेख था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में वाहन पर नियंत्रण और मालिकाना हक को सबसे महत्वपूर्ण कारक ठहराया।


अदालत से नहीं मिली राहत


सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के खिलाफ एसएस ऐंड कंपनी और फरीदाबाद गुड़गांव मिनरल्स की अपील को खारिज कर दिया है। यह मामला उड़ीसा में लौह अयस्क की दैतारी खान में अनुबंध  हासिल करने से जुड़ा हुआ है। इस मामले में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने इन कंपनियों के विरोध में फैसला सुनाया था।


जिसके बाद ये कंपनियां मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चली गईं। सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्यों का बहुत बारीकी से अध्ययन करने के बाद इन कंपनियों के तर्कों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि इन कंपनियों को टेंडर की होड़ से बाहर रखने के लिए प्रक्रिया के नियमों में फेरबदल कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने योग्यता मानदंड को दी गई चुनौती को नकार दिया और उड़ीसा उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।


हिंडाल्को इंडस्ट्रीज 


बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ दाखिल की गई हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। इस फैसले में कहा गया था कि कंपनी को अपने कैंटीन कर्मचारियो को औपचारिक कर्मचारियों के रूप में समाहित कर लेना चाहिए।


इसके विरोध में कंपनी ने तर्क दिया कि कैंटीन ठेकेदार द्वारा चलाई जाती है और इसमें काम करने वाले कर्मचारी किसी भी तरह से एल्युमीनियम उत्पादन इकाई के कर्मचारी नहीं हैं। औद्योगिक अदालत ने कंपनी के तर्कों को खारिज कर दिया और कंपनी को 1998 में अनुचित व्यापार के मामले में लिप्त पाया।


अदालत ने कंपनी से पूछा कि क्यों नहीं वह कैंटीन कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारी के रूप में मान्यता देती और उनको क्यों वेतन और अन्य सुविधाओं से महरूम रखा जा रहा है। कंपनी ने अभी तक इस आदेश को लागू नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी से औद्योगिक अदालत के आदेश को तीन महीने में लागू करने को कहा।


गन्ना भुगतान का समाधान


सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलट दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि राज्य सरकार द्वारा तय कीमतें, जिनका चीनी मिलें गन्ना किसानों को भुगतान करती हैं, उनको राज्य सरकार के कर की गणना में डीलर के टर्नओवर के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।


इस मामले में राज्य सरकार को अपील की अनुमति देते हुए कर्नाटक सरकार बनाम श्री चामुंडेश्वरी शुगर्स मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को खरीद कर में चीनी मिलों की देनदारी के बारे में दिखाई दे रहे विरोधाभास का भी निराकरण कर दिया।


नैशनल इंश्योरेंस कंपनी


सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल इंश्योरेंस कंपनी की अपील को खारिज कर दिया है। यह मामला मोटर दुर्घटना में ट्राईब्यूनल द्वारा मुआवजा देने से जुड़ा हुआ था, जबकि इस मामले में ड्राइवर फर्जी लाइसेंस रखे हुए था।


सामान्यत: यह मामला बीमा अनुबंधों के खिलाफ है, लेकिन अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बीमा कंपनी यह साबित करने में विफल रही कि मालिक को इसकी जानकारी नहीं थी।  इसलिए अदालत ने बीमा कंपनी को दुर्घटना के शिकार व्यक्ति के आश्रितों को बीमे की रकम का भुगतान करने को कहा, और बाद में  इसको मालिक और वाहन के चालक से वसूलने को कहा।


और आखिर में…


स्वेजिंग (वह प्रक्रिया जिसके जरिये धातु को आवश्यक आकार में ढाला जाता है) की प्रक्रिया में जो उत्पादन होता है,  उसमें केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम के तहत डयूटी देनी होती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक्साइज ट्राइब्यूनल की राय में प्राची इंडस्ट्रीज की अपील को खारिज कर दिया। ताजा मामला रोटरी स्वेजिंग मशीन से जुड़ा है जिसमें डाई के प्रयोग से सीधे पाइप और टयूब की संरचना में परिवर्तन किया जाता है।  फैसले के अनुसार कंपनी को उत्पाद शुल्क का भुगतान तो करना ही होगा।

First Published - April 14, 2008 | 1:35 AM IST

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