ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (एआईएफ) के निवेशक अपनी बकाया यूनिट को फिजिकल फॉर्म से इलेक्ट्रॉनिक यानी डीमैट फॉर्म में लाने को लेकर परेशान हैं। कुछ सेवा प्रदाताओं ने ऐसा करने का भार यूनिटधारकों पर डाल दिया है, जिससे काफी कागजी कार्रवाई जुड़ी होती है।
उद्योग निकाय ने कहा कि निवेशक के स्तर पर यूनिट को डीमैट में लाना एक विकल्प है, अगर निवेशक खुद ऐसा करना चाहे। मामले को और जटिल बनाने के लिए कुछ एआईएफ अभी तक डिपॉजिटरी से ग्लोबल आइडेंटिफिकेशन नंबर (आईएसआईएन) हासिल नहीं कर पाए हैं, जो यूनिट को डीमैट में लाने के लिए अनिवार्य है।
मिटकॉन क्रेडेंशिया ट्रस्टीशिप सर्विसेज के सह-संस्थापक वेंकटेश प्रभु ने कहा, यूनिट को फिजिकल से डीमैट में लाने का पूरा भार अब निवेशक पर शिफ्ट होता दिख रहा है।
उद्योग की तरफ से इस संबंध में काफी बातें हुई कि निवेशक डिपॉजिटरी के पास नहीं जा पाएंगे और उसे डीमैट रूप में करवा पाएंगे, खास तौर से वे, जो इस देश में नहीं हैं। कई अन्य इस प्रक्रिया में जाने की परेशानी नहीं लेना चाहेंगे और डीमैट का मकसद नाकाम हो सकता है।
मौजूदा यूनिट डीमैट में तब्दील करने की इच्छा रखने वाले निवेशक को आईएसआईएन, लॉक इन की जानकारी, डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट आदि की जानकारी के साथ अनुरोध वाला फॉर्म जमा कराना होगा। इसके साथ ही उन्हें खाते का ताजा विवरण और डीपी की तरफ से जारी क्लाइंट की मास्टर रिपोर्ट भी देनी होगी।
निवेशकों को यह काम देने की व्यवहार्यता के बारे में पूछे जाने पर 3वन4 कैपिटल के संस्थापक साझेदार सिद्धार्थ पई ने कहा, सर्कुलर में दिया गया विकल्प बाजार के मौजूदा चलन के मुताबिक है।
निवेशक अपनी सभी यूनिट को डीमैट में लाने को लेकर एआईएफ पर भरोसा करेंगे। लेकिन अगर निवेशक एआईएफ को विस्तृत जानकारी साझा नहीं करते या उनकी समयसीमा को पूरा नहीं करते तो यह खास तौर से लाभकारी होगा। एआईएफ की तरफ से पूरी प्रक्रिया के प्रबंधन की उम्मीद अभी बरकरार है।
एआईएफ इंडस्ट्री बॉडी आईवीसीए की रेग्युलेशन अफेयर्स कमेटी में शामिल पई ने स्पष्ट किया कि ज्यादातर एआईएफ ने अपना आईएसआईएन हासिल कर लिया है और वे प्रावधानों के अनुपालन की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा, वे निवेशकों के साथ उनके डीमैट डिटेल पर काम कर रहे हैं।
इस बीच, एनएसडीएल और सीडीएसएल ने एआईएफ के निवेशकों के लिए परिचालन प्रक्रिया सामने रखी है, जो उनके मौजूदा यूनिट को डीमैट में तब्दील करने से संबंधित हैं। यह कदम ऐसे समय में देखने को मिला है जब एआईएफ की तरफ से जारी यूनिट को अनिवार्य तौर पर डीमैट में लाने को लेकर नियामकीय निर्देश पर पारदर्शिता का अभाव बरकरार है।
बाजार नियामक सेबी ने 500 करोड़ रुपये से ज्यादा कोष वाले एआईएफ को बकाया यूनिट डीमैट में लाना और 1 नवंबर से नया यूनिट इसी फॉर्म में लाना अनिवार्य बनाया था।