स्टॉक्स के अच्छे वैल्यु एशंस के बावजूद बावजूद पाइप यानी पब्लिक इक्विटी में प्राइवेट निवेश की ज्यादातर डील्स अनलिस्टेड यानी गैर सूचीबध्द कंपनियों और प्राइवेट कंपनियों में हो रही हैं।
पिछले दो महीनों में प्राइवेट इक्विटी निवेश की कुल 87 डील्स हुईं लेकिन इनमें से केवल 10 डील लिस्टेड कंपनियों में हुई हैं। एनालिस्टों का मानना है कि शेयरों के भाव काफी गिर जाने से ऐसी और डील्स होएंगीं लेकिन इसके बावजूद लिस्टेड कंपनियों में निवेश की रफ्तार उतनी नहीं है।वेंचर इंटेलिजेंस की सीईओ अरुण नटराजन का कहना है कि इस साल के पहली और कुछ हद तक दूसरी तिमाही में होने वाली पाइप डील्स में असर पड़ेगा।
प्राइवेट इक्विटी पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि पाइप डील्स में इस कमी की सबसे बड़ी वजह है इस तरह की डील्स में शेयरों की कीमत तय करने के लिए बने सेबी के नियम। नियमों के मुताबिक डील के लिए शेयर का भाव पिछले छह महीनों और पिछले दो हफ्तों के बंदी के भाव का साप्ताहिक उच्चतम और न्यूनतम स्तर के औसत के आधार पर निकाला जाता है।
छह महीनों और दो हफ्तों में से जिसका भी औसत ज्यादा हो भाव उसी आधार पर तय होते हैं। पिछले साल बाजार में खासी तेजी रहने की वजह से मौजूदा गिरावट के बावजूद कई शेयरों के वैल्युएशंस ज्यादा हैं। मालूम हो कि पिछले साल सेंसेक्स 47 फीसदी बढ़ा था।पिछली जनवरी से बाजार में शुरू हुए करेक्शन की वजह से प्राइवेट इक्विटी के निवेशक ऐसे बाजार में शेयरों को इस वैल्युएशंस पर भी नहीं लेना चाहते हैं, इसी वजह से पाइप डील्स में कमी देखी जा रही है।
पिछले दो महीनों में जो सबसे बड़ी पाइप डील सिटीग्रुप वेंचर और एआईजी की रही जिन्होने 37.50 करोड़ डॉलर में आक्रुति सिटी में 16 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। कोटक प्राइवेट इक्विटी के हेड नितिन देशमुख के मुताबिक सेबी का प्राइसिंग का फार्मूला इसकी एक बड़ी वजह है, इसके अलावा बाजार के मौजूदा हाल से भी प्राइवेट इक्विटी निवेशक बाजार में आने से कतरा रहे हैं।
अगर बाजार और गिरता है तो उनके निवेश पर उन्हे नुकसान झेलना पड़ेगा और इसलिए ये निवेशक कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। कंपनियों के वैल्युएशंस भी और रियलिस्टिक होंगे तभी इनमें निवेश होगा। कोटक महिन्द्रा की कंपनी ने भी हाल में हैदराबाद की हेरिटेज फूड्स में एक करोड ड़ॉलर का निवेश किया था। हेरिटेज आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की कंपनी है। 2 जनवरी को इस डील के ऐलान के बाद से इस कंपनी के शेयर 46 फीसदी लुढ़क गए हैं।
इसके अलावा कई कंपनियों के प्रमोटर भी ऐसे गिरते बाजार में अपनी हिस्सेदारी नहीं बेचना चाहते हैं। वो भी करेक्शन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं जिससे कि उन्हे बेहतर कीमत मिल सके।
एक वेंचर कैपिटल फर्म के डायरेक्टर का कहना है कि अगर एक प्राइवेट कंपनी में निवेश पर जो रिटर्न मिलेगा, पाइप डील में उससे कम ही मिलता है लेकिन बाजार के मौजूदा माहौल में ये भी मुश्किल दिख रहा है। जानकारों के मुताबिक बाजार की गिरावट और आईपीओ बाजार के बुरे हाल की वजह से प्री आईपीओ प्लेसमेंट को भी झटका लगा है और जब तक सेकेंडरी बाजार में सुधार नहीं आता लिस्टेड कंपनियों की डील्स में निवेशकों की रुचि नहीं बढ़ेगी।