अधिकांश सीमेंट कंपनियों ने पिछले दिनों प्रति बोरी 2-5 रुपये कीमत गिराई है, लेकिन इससे मांग बढ़ने की संभावना नहीं है।
अंबुजा सीमेंट के प्रबंध निदेशक एएल कपूर ने स्वीकारा है कि इस उद्योग के लिए जारी वर्ष में 6-7 फीसदी से अधिक वृध्दि दर होने की संभावना नहीं है जबकि आकलन 10 फीसदी की वृध्दि का था। कपूर के अनुसार यह स्तर भी इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार द्वारा घोषित वृध्दि पैकेज का क्या असर होता है।
यह क्षेत्र रेलवे द्वारा माल ढुलाई में की गई 8 फीसदी की वृध्दि से भी परेशान है। उसका मानना है कि इससे उसका प्रॉफिट मार्जिन जो पहले से ही कम है और गिर सकता है। ऐसे में अगले 8-12 माह में होने वाला 20-25 टन का उत्पादन इस क्षेत्र के लिए परेशानी खड़ी करने वाला है।
यह उत्पादन 12 फीसदी अधिक है जबकि अभी से मांग कम होने का असर आपूर्ति पर पड़ने लगा है। 2008-09 में क्षमता का उपयोग 85 फीसदी के स्तर पर ही रहा।
यह 2007-08 के 95 फीसदी के स्तर से बेहद कम है। हाउसिंग क्षेत्र जो सीमेंट की कुल खपत में 50 फीसदी योगदान करता है, में खपत आधी हो चुकी है।
श्री सीमेंट के सीएमडी एचएम बांगुर का कहना है कि अगर रियल एस्टेट डेवलपर सीमेंट की खपत बढ़ा दें तो यह क्षेत्र तेजी से विकास कर सकता है।
हालांकि इसकी संभावना कम ही है क्योंकि अधिकांश बिल्डर इस समय नकदी के संकट का सामना कर रहे हैं। वे निकट भविष्य में खपत बढ़ाएंगे इसकी संभावना निकट भविष्य में नहीं हैं।
सितंबर 2008 तक के नौं माह एसीसी की टॉपलाइन ग्रोथ सिर्फ 9 फीसदी ही रही जबकि 2007 में यह 20 फीसदी रही थी। यहां तक की 2007-08 की पहली छमाही में 35 फीसदी की वृध्दि दर हासिल करने वाले श्री सीमेंट की दूसरी छमाही में वृध्दि दर कमजोर हुई थी।
वर्तमान में माल ढुलाई की दर बढ़ने और आयातित कोयले की कीमत बढ़ने के कारण सीमेंट बाजार का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन दबाव में रहेगा।
सितंबर 2008 तक के 9 माहों में एसीसी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 6.3 फीसदी गिरकर 22.3 फीसदी हो गया था। इसके साथ ऍल्ट्राटेक सीमेंट का ओपीएम 2008-09 की पहली छमाही में 4.7 फीसदी गिरकर 25.7 फीसदी हो गया था।
रियल एस्टेट: नाकाफी राहत
पिछले सप्ताहांत में केंद्रीय बैंक ने प्रापर्टी कंपनियों को निकट भविष्य की सबसे बड़ी परेशानी यानी धन की भारी तंगी पर ध्यान देने का प्रयास किया यह बात सीएलएसए की रिपोर्ट में कही गई है। इसमें बैंकों को कामर्शियल रियल एस्टेट लोन को नॉन परफार्मिंग लोन की श्रेणी में नहीं रखने की आजादी दी गई है।
इससे कुछ प्रॉपर्टी फर्मों को नियर टर्म रिस्क को कम करने में मदद मिलेगी। हालांकि रेटिंग एजेंसी फिच पहले ही डीएलएफ के सिंगल लोन सेल डाउन ट्रांजेक्शन को डाउनग्रेड कर चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण प्रमोटरो द्वारा प्रमोटेड डीएलएल असेट से 48,000 करोड़ रुपये के हाई रिसीवेबल हैं।
फिच के अनुसार डीएलएफ के 2009 के साल में 6,500 करोड़ रुपये के रीपेमेंट हैं। डीएलएफ के कंसोलिडेट डेट बढ़कर 14,600 करोड़ रुपये है जिसका अधिकांश हिस्सा डीएएल से होने वाली प्राप्तियों की वजह से है।
यूनीटेक को भी अगले साल 2,600 करोड़ रुपये तैयार रखने पड़ेंगे। फंड जुटाने के लिए दिल्ली स्थित यह कंपनी अपनी कुछ प्रॉपर्टी बेचने जा रही है।
रिजर्व बैंक इस क्षेत्र को राहत देने के लिए कई पैकजों के साथ आई है। इसमें उसने कामर्शियल लोन के लिए स्ट्रैंडर्ड एसेट की प्रोविजनिंग कम की है और 20 लाख रुपये तक के लोनों को अब बैंक प्राथमिक क्षेत्र में रखेंगे। इन कदमों के बाद भी इस क्षेत्र की समस्याएं जल्द ही खत्म होती नहीं दिखती।
बिक्री और लिजिंग का कम होना रियल एस्टेट क्षेत्र की प्रमुख समस्या है। मोर्गन स्टेनली के अनुसार डेवलपरों द्वारा अपने दामों में 10-15 फीसदी की कटौती के बाद भी पूरे देश में घर के खरीदार उत्साहित नहीं हैं। इसलिए डेवपलरों की ओर होने वाले कैश फ्लो में जल्द ही सुधार होने की गुंजाइश कम ही है।
धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में ग्राहकों में उत्साह का अभाव है और ब्याज दरें अभी भी अधिक है। ऐसे में खरीदारी जल्दी ही शुरु नहीं होने वाली।
उधर, बैंकें और अन्य कर्जदाता कर्ज की शर्तों को और कड़ा कर रहे हैं। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस और जैसी कंपनियों द्वारा लोन लिमिट का हिसाब लगाने की पध्दति में बदलाव किए जाने की खबर है।
इसके तहत मासिक किस्त लोन लेने वाले की नेट सैलरी के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। कुल मिलाकर अभी वह स्थिति आने में समय लगेगा जब घर का खरीदार प्रॉपर्टी और लोन दोनों की लागत को लेकर आरामदायक स्थिति में हो।