Categories: बाजार

इक्विटी नियमों में बदलाव जरूरी

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 6:40 AM IST

प्राइवेट इक्विटी कार्यकारी और निवेश बैंकरों का मानना है कि अगर सरकार चाहती है कि फंड कंपनियों और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को संकट से उबारने में बायआउट इंडस्ट्री कोई अहम भूमिका निभाए।


तो उसे इसके लिए अपने विदेशी निवेश के नियमों में कुछ फेरबदल करना होगा। पिछले सप्ताह एक एजेंसी द्वारा आयोजित इंडिया निवेश समिट में वक्ताओं का कहना था कि भारत में इस क्षेत्र में अच्छी संभावनाएं बन सकती हैं।

बस सरकार को चाहिए कि वह पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए नियमों में फेरबदल करे। ब्लैकस्टोन ग्रुप के कंट्री हेड अखिल गुप्ता ने बताया कि भारत में दुर्भाग्य से अधिकांश नियम गड़बड़ी करने वाले कुछ मुट्ठी भर लोगों को रोकने के लिये बने हैं लेकिन इसकी वजह से बाकी 99 सही लोगों को भुगतना पड़ता है।

हाल के सालों में कई प्राइवेट इक्विटी के पश्चिमी महारथी भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेश करना चाहते थे, जहां पर ऐसी कंपनियों की भरमार है जो विदेशी पूंजी चाहती हैं।

उन्होंने बताया कि भारत को सड़क से लेकर पीने के साफ पानी तक की उपलब्धतता सुनिश्चित कराने के लिए विदेशी फंड की दरकार है।

इन पीई कंपनियों ने पाया है कि यहां पर अवसरों के बाद भी सौदे करना खासा मुश्किल है। उनके लिए गिरते वैल्यूएशन, बाजार में जारी अस्थिरता का दौर और मालिकों का अपना नियंत्रण न छोड़ना प्रमुख समस्या है।

इन कठिनाइयों के बारे में कई कार्यकारियों का कहना है कि प्राइवेट इक्विटी के लिए यहां के कुछ नियम ही उस विदेशी निवेश को यहां आने से रोक रहे हैं जिसकी देश को जरूरत है।

रुकावट बनने वाले नियमों में एक नियम फ्लो प्राइस का है जो यह कहता है जब कोई विदेशी निवेशक पैसा किसी कंपनी में लगता है तो उसे छह माह में शेयर की औसत कीमत से अधिक पैसा देना होता है।

आलोचकों का कहना है कि आज शेयर बाजार की स्थिति को देखते हुए इस नियम का कोई खास औचित्य नहीं है। जेपी मोर्गन इंडिया के प्रमुख वेदिका भंडारकर ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां शेयर बाजार तेजी से गिर रहा है फ्लो प्राइस रूल एक बड़ी रुकावट है।

ऐसी स्थिति में छह माह का नियम हो तो शायद ही कोई निवेश करना चाहे। उन्हें उम्मीद है कि इस नियम में शीघ्र ही बदलाव होगा। कुल मिलाकर उनका कहना है कि भारत के नियम दूसरे देशों और क्षेत्रों के समान हैं।

First Published : December 1, 2008 | 9:29 PM IST