पिछले साल जब कलकत्ता शेयर बाजार ने हिस्सों में बांटने की प्रक्रिया पूरी की तो इसके बाद कई इकाईयों ने इसमें हिस्सेदारी खरीदी थी।
इसके बाद उदयन बोस के नेतृत्व में एक नये निदेशक मंडल की नियुक्ति की गई जिसका उद्देश्य 100 साल पुराने इस शेयर बाजार को एक बार फिर से पटरी पर लाना है।
अध्यक्ष उदयन बोस ने सीएसई में कारोबार विकास सहित विभिन्न मुद्दो पर प्रदीप गुप्तु और नम्रता आचार्य से बात की। प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंश:
एक्सचेंज में किस तरह के नये प्रयोग और सुधार की बात की जा रही है?
कई ऐसी बाते हैं जिन पर विचार किया जा रहा है, हालांकि कुछ तकनीकी परेशानियां सामने आ रही हैं। सीएसई केपास अपना सी-स्टार कारोबारी प्लेटफॉर्म है लेकिन इसकी क्षमता का भरपूर प्रयोग नहीं किया जा रहा है। सीएसई में ब्रोकरों को लाना और शेयरों को सूचीबध्द करना एक बहुत बडा मुद्दा है।
वर्ष 2001 में जब सीएसई दिवालिया हुआ तो उसके बाद प्रणाली में बहुत सारी खामियां आ गर्इं। फिलहाल सीएसई की कार्यप्रणाली की एक बार फिर से समीक्षा की जरूरत है ताकि इसमें फिर से कोई खामियां नहीं आ जाए।
क्या सीएसई में कमोडिटी कारोबार भी शुरू करने की कोई योजना है?
कमोडिटी कारोबार और विदेशी मुद्रा कारोबार के लिए ब्रोकरों की तरफ से मांग की जा रही है।
हालांकि फिलहाल इसे शुरू कर पाना संभव नहीं लग रहा है। बाजार के हालात भी अभी अनुकूल नजर नहीं आ रहे हैं। बेहतर समय आने पर हम इस बारे में तय क रेंगे।
अन्य शेयर बाजारों से तुलना करने पर आप सीएसई को कहां पाते हैं?
जहां तक तुलना की बात है तो निश्चित तौर पर एनएसई और बीएसई बड़े शेयर बाजार हैं। कोलकाता केपास अपना कारोबारी प्लेटफॉर्म है जो दिल्ली और मद्रास के पास नहीं है।
अगर 1970 और 1980 के दशक की बात करें तो उस समय कोलकाता बंबई स्टॉक एक्सचेंज से भी बडा हुआ करता था।
यह अभी भी तकनीकी रूप से आगे है लेकिन केवल 20 फीसदी कारोबारी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल हो पाता है।
एक जो कमजोरी है जिसे मैं खुले दिल से स्वीकार करता हूं, वह यह कि पूर्वी भारत में बहुत कम कंपनियां हैं, जिन्हें इस एक्सचेंज में सूचीबध्द किया जा सकता है।
कंपनियां ज्यादा नहीं हैं तो फिर आप सीएसई को कैसे पटरी पर ला पाएंगे?
सीएसई को पटरी पर लाने के कुछ तरीके हैं। सीएसई में बड़ी कंपनियां ही सूचीबध्द हों, यह बात जरूरी नहीं है।
अगर कोई 50 करोड से लेकर 100 करोड तक के आईपीओ को बाजार में उतारना चाहता है तो इसके लिए बड़े शेयर बाजार उपयुक्त विकल्प नहीं है।
बीएसई और एनएसई में ऐसे कारोबारियों की संख्या काफी अधिक है जो कोलकाता के हैं। सीएसई छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों, जो सीमित संसाधन जुटाना चाहती है, उनको अपनी तरफ आकर्षित कर सकता है।
डिम्युचुअलाइजेशन प्रक्रिया के बाद सीएसई किस तरह से आगे बढा है?
इसके बाद बहुत सारे परिवर्तन आए हैं। कुछ मुद्दे विरासत से जुड़े थे। वर्ष 2001 में 100 करोड रुपये तक की धांधली हुई थी और इनमें से कुछ फंड सदस्यों के गारंटी म्युचुअल फंड से जुटाए गए थे। हालांकि इस धांधली का निपटारा नहीं हो सका और मामला अभी पेंडिंग पडा है।
न्यायालय में इस तरह के 90 मामले विचाराधीन हैं जबकि करीब 300 सदस्यों को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड द्वारा निलंबित किया जा चुका है।