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लगातार पैसा निकालते रहे हैं विदेशी संस्थागत निवेशक

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 9:07 PM IST

विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार से लगातार पैसा निकालते रहे हैं।


पिछले साल की अक्टूबर से देखें तो इन निवेशकों  ने अब तक 100,000 करोड़ से ज्यादा का निवेश कैश मार्केट से निकाल लिया है जबकि रोजाना के टर्नओवर में इनकी हिस्सेदारी जो कुछ महीनों पहले चरम पर थी तब से करीब 5-8 फीसदी तक गिर गई है। 

यह चिंता तो लगातार बनी रही है कि सब-प्राइम संकट कई और बैंकों को भी मुश्किल में डालेगा और 514 अरब डॉलर के कर्ज के नुकसान को अभी और बढ़ाएगा और दुनियाभर में में कर्ज डूबेंगे। इनका असर यह हुआ है कि इस साल सभी उभरते शेयर बाजारों में निवेश प्रभावित हुआ है।

इमर्जिंग पोर्टफोलियो फंड रिसर्च यानी ईपीएफआर ग्लोबल के आंकड़ों के मुताबिक इस साल निवेशकों ने उभरते शेयर बाजारों के इक्विटी फंडों से करीब 29 अरब डॉलर निकाले हैं। उभरते शेयर एशियाई बाजारों विदेशी पोर्टफोलियो के आंकड़ों के मुताबिक इस साल केवल इंडोनेशिया और वियतनाम के बाजारों में खरीदार रहे हैं और बाकी में बिकवाली ही रहे हैं।

इन निवेशकों ने दक्षिण कोरिया से करीब 31.293 अरब डॉलर निकाले, ताइवान से 11.148 अरब डॉलर निकाले और थाइलैंड से 3.63 अरब डॉलर निकाले। बीएसई और एनएसई के प्रोवीजनल आंकड़ों के मुताबिक सेकेन्डरी बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक इस साल करीब 75,700 करोड़ रुपए (17.5 अरब डॉलर) के बिकवाल रहे हैं।

भारतीय बाजार को देखें तो सबसे ज्यादा उन विदेशी निवेशकों ने पैसा निकाला है जो सब-प्राइम संकट से जूझ रहे थे। सिटीगग्रुप ग्लोबल मार्केट्स, गोल्डमैन सैक्स इन्वेस्टमेंट, एचएसबीसी, मेरिल लिंच कैपिटल मार्केट्स, मॉर्गन स्टेनली और स्विस फाइनेंस कार्पोरेशन्स ने इस दौरान करीब 35,000 करोड़ रुपए का निवेश निकाला है जो कुल निकासी का करीब 56.5 फीसदी है।

सिटीग्रुप जिसे सब-प्राइम संकट में करीब 18 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था, उसने पिछले छह महीनों में 47 कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर एक फीसदी से भी कम कर दी। बियर सर््टन्स असेट मैनेजमेंट जिसने 3.2 अरब डॉलर के नुकसान की बात कही थी उसने भारतीय कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाई।

करीब पचास कंपनियों में उसकी हिस्सदारी घटकर एक फीसदी से भी नीचे हो गई। मॉर्गन स्टेनली, मेरिल लिंच कैपिटल, एचएसबीसी, गोल्डमैन सैक्स और स्विस फाइनेंस कार्पोरेशन ने भी करीब तीस कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर एक फीसदी से भी नीचे कर दी।

साल 2006 और 2007 में भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों की वजह से खासी तेजी रही जिसने ताबड़तोड़ खरीदारी से बीएसई के सेंसेक्स को 2007 में 20,000 के ऊपर पहुंचाया। इन निवेशकों ने प्राइमरी और सेकेन्डरी बाजारों से 2006 में कुल 7.94 अरब डॉलर की खरीदारी की जबकि 2007 में 17.360 अरब डॉलर की खरीदारी की।

टर्नओवर की बात करें तो कैश और डेरिवेटिव सेगमेन्ट में उनकी हिस्सेदारी 35-40 फीसदी की रही है। 2007 में एक समय -विदेशी निवेशकों की ओपन इंटरेस्ट में हिस्सेदारी 50 फीसदी से भी ज्यादा हो गई थी। लेकिन आज वायदा बाजार के टर्नओवर में उनकी हिस्सेदारी घटकर 40 फीसदी से भी कम रह गई है जबकि कैश में 30 फीसदी से भी नीचे आ गई है।

First Published : September 16, 2008 | 10:42 PM IST