पिछले कारोबारी साल की आखिरी तिमाही में म्युचुअल फंडों ने सरकारी तेल कंपनियों में अपना निवेश धीरे धीरे खासा बढ़ा दिया है।
बीएसई के आंकड़ों के मुताबिक इन फंडों ने गेल, बीपीसीएल और चेन्नई पेट्रोलियम जैसी कंपनियों में इस दौरान पैसा लगाया है लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इस सरकारी तेल कंपनियों से इस दौरान अपना पैसा निकाला है।
ऑयल सेक्टर के एनालिस्टों का कहना है कि सेंसेक्स की तुलना में इन सरकारी तेल कंपनियों के वैल्यूएशंस काफी नीचे हैं और पिछले कुछ महीनों में बाजार की हलचल को देखते हुए म्युचुअल फंड इन कंपनियों में निवेश कम जोखिमभरा मानते हैं। मिसाल के तौर पर ओएनजीसी 2009 की अर्निंग्स अनुमान के आधार पर 8.5 पीई मल्टिपल पर कारोबार कर रहा है जबकि बीपीसीएल 4.3 पीई मल्टिपल पर कारोबार कर रहा है।
इसकी तुलना में 16153 अंकों पर सेंसेक्स फार्वर्ड अर्निंग्स के आधार पर 16.8 के पीई पर कारोबार कर रहा है। गेल जैसी कंपनियों में दिसंबर 2007 को म्युचुअल फंडों की होल्डिंग करीब 3.47 फीसदी थी जो मार्च 2008 में बढ़कर 4.05 फीसदी पर पहुंच गई। ऐसे ही चेन्नई पेट्रोलियम में इन म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी इस दौरान 1.7 फीसदी से बढ़कर 2.04 फीसदी हो गई है। जबकि बीपीसीएल में इन फंडों की होल्डिंग 4.27 फीसदी से बढ़कर 4.38 फीसदी हो गई है।
हालांकि इन सरकारी तेल कंपनियों के सामने जो मुश्किलें है वो इस दौरान कहीं से भी कम नहीं हुई हैं। ऑयल मार्केटिंग कंपनी आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और रसोई गैस की बिक्री से कुल (तीनों को मिलाकर) 440 करोड़ रुपए का नुकसान रोजाना होता है और अपने इस नुकसान की कुछ हद तक भरपाई के लिए उन्हें सरकार के तेल बांड्स पर निर्भर रहना पड़ता है।
एनालिस्टों के मुताबिक ओएनजीसी के मामले में तो उस पर हर साल बढ़ रहे सब्सिडी के बोझ से उसके मुनाफे पर असर पड़ सकता है। इसके विपरीत विदेशी संस्थागत निवेशकों ने गेल में अपनी हिस्सेदारी जो दिसंबर 2007 में 16.46 फीसदी थी मार्च 2008 में घटाकर 15.44 फीसदी कर दी है। इसी तरह आईओसी में भी 1.89 फीसदी से घटाकर 1.67 फीसदी कर ली है।