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हीरो होंडा: शानदार कदम

Last Updated- December 08, 2022 | 7:01 AM IST

एक सशक्त ब्रांड, पांच नए मॉडल बाजार में उतारना, विविधता और डीलरों व सर्विस स्टेशनों की बड़ी संख्या यह वे कुछ कारण हैं जिनके चलते हीरो होंडा माह दर माह अच्छी खासी बिक्री कर पा रहा है।


ऐसी स्थिति में कंपनी का प्रदर्शन असाधारण ही कहा जाएगा क्योंकि दूसरी ऑटोमोबाइल कंपनियां ग्राहकों की मांग कम होने की मार झेल रहीं हैं। कुल मिलाकर यह कंपनी मजबूती के साथ ट्रेंड के विपरीत चल रही है।

नवंबर के माह में जहां अधिकांश दोपहिया निर्माता कंपनियों के वॉल्यूम में गिरावट देखने को मिली, वहीं हीरो होंडा ने पिछले साल के मुकाबले इस नंवबर में अधिक  वाहन बेचे।

यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछली बार दिपावली नवंबर में मनाई गई थी और इस बार यह अक्टूबर में पड़ी थी। इस लिहाज से त्यौहार सीजन के बिना  हाई बेस में 290,000 वाहन बेचना सचमुच बेहद शानदार है।

 कंपनी के स्कूटरों की बिक्री भी अब पहले से काफी बढ़ गई है। पहले जहां वे 7,000 से 8,000 स्कूटर प्रतिमाह बेच रहे थे, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़कर 12,000 के आसपास चला गया है।

यह संख्या बेहद अच्छी है। हालांकि कंपनी की बिक्री में बैंक फाइनेंस की स्कीम न होने का प्रभाव भी पड़ा है।

पिछले डेढ़ साल में इस तरह की योजनाओं के जरिए होने वाली बिक्री 60 फीसदी से गिरकर 40 फीसदी हो गई है। यह अधिकांश बिक्री शादियों के सीजन में हुई।

कंपनी अभी भी एक तिहाई बिक्री देश के उत्तरी भागों में कर रही है और उसकी सबसे बड़ी सफलता प्रीमियम सेगमेंट से आई है।

कंपनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, मार्केटिंग व सेल्स अनिल दुआ ने बताया कि पिछले डेढ़ सालों में कंपनी का वॉल्यूम और मार्केट शेयर दोगुना हो गया है।

इससे पहले इस सेगमेंट में बजाज का वर्चस्व हुआ करता था। इसके साथ ही इंट्री सेगमेंट में भी कंपनी के मॉडल खुब दौड़ रहे हैं।

दुआ के अनुसार इस सेगमेंट में उसका मार्केट शेयर अब 56 फीसदी हो गया है। कंपनी अगले एक साल व इसके  बाद के समय में सात मॉडल और उनके वेरीएंट बाजार में उतारने जा रही है।

इसके जरिए वह हर सेगमेंट में अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने की स्थिति में होगी। 2008-09 में कंपनी का राजस्व 12,000 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है।

यह पिछले साल के मुकाबले 16 फीसदी अधिक होगा। कच्चे माल की बढ़ी लागत के बावजूद भी कंपनी अपना ऑपरेटिंग मार्जिन 13 फीसदी बरकरार रख सकती है।

टाटा मोटर्स: लंबा रास्ता

देश की सबसे बड़ी ऑटो कंपनी टाटा मोटर्स इस समय कठिन समय से गुजर रही है। अगर नेनो प्लांट को पश्चिम बंगाल से गुजरात शिफ्ट किया जाना उसकी मुश्किलें बढ़ाने के लिए काफी नहीं था तो यह कसर कार कारोबार और कमर्शियल वाहन के दोनों सेगमेंटों पर बने भारी दबाव से पूरी हो गई।

पहली छमाही के  ठीकठाकप्रदर्शन करने के बाद अक्टूबर और नवंबर के माह कंपनी के लिए खासी कठिनाई से भरे रहे हैं। अकेले नवंबर में कमर्शियल वाहन का वॉल्यूम 40 फीसदी गिरा।

हालांकि पिछले वर्ष 2007-08 में भी इस क्षेत्र का प्रदर्शन कोई खासा उल्लेखनीय नहीं था जब इसके वॉल्यूम में निर्यात को मिलाकर महज छह फीसदी का इजाफा हुआ था।

मांग में इस तरह हुई गिरावट कल्पना से परे है। टाटा मोटर्स की सबसे अधिक बिकने वाली एलसीवी-द एस जो सितंबर तक चलन के विपरीत अच्छा कारोबार कर रही थी अब अपनी रफ्तार खो रही है। नवंबर माह में एलसीवी के वॉल्यूम में 16 फीसदी की बड़ी गिरावट देखने को मिली।

हालांकि यह स्थिति सिर्फ सीवी की की नहीं है। कंपनी की कारों के लिए ग्राहक तलाशना मुश्किल हो रहा है। नतीजतन नवंबर में इसके वॉल्यू में 12 फीसदी की गिरावट आई। कंपनी प्रबंधन का मानना है कि फाइनेंस योजनाओं के अभाव के चलते बिक्री प्रभावित हो रही है।

हो सकता है कि उनकी बात सही हो वर्तमान परिस्थितियों में खरीदार पीछे हट रहे हैं। अगर ब्याज दरों में गिरावट और देश के अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं आती तो ट्रक और कारों की बिक्री में इजाफा होने की कोई संभावना नहीं है।

इस स्थिति में अगर प्रबंधन कंपनी अपना उत्पादन  कम कर रहा है और प्लांट में उत्पादन कुछ समय के लिए बंद कर रहा है तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए कंपनी का पुणे स्थित प्लांट अब 2008 में 12 दिन बंद रहेगा।

इसके साथ ही टाटा अपने पूंजी व्यय में भी कटौती करने का निर्णय ले सकता है। ऐसा नहीं है कि कंपनी को सिर्फ घरेलू बाजार से ही चुनौती मिल रही है। विदेशी बाजारों के हालात भी ज्यादा अच्छे नहीं है।

First Published - December 3, 2008 | 9:35 PM IST

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