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कैसे बिके साल भर खादी?

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 10:44 PM IST


भारत सरकार की ढ़ेरों योजनाओं के बावजूद आज भी खादी सिर्फ दो अक्टूबर की छूट के बाद ही बिकती है। सवाल यह?है कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि खादी बाजार से जुड़े और बिना किसी सरकारी बैसाखी के साल भर लोग इसे खरीदें।


खादी और ग्राम उद्योगों को विकसित करने के लिए 1955 में अखिल भारतीय खादी और ग्रामीण उद्योग बोर्ड को स्थापित किया गया था। यह सरकारी एंजेसी पिछले 55 साल से देश में खादी को बढ़ावा देने का काम कर रही है। इसके लिए यह लगभग 2,000 हजार इकाइयों को लाखों रुपये फंड के तौर पर उपलब्ध करवाती है। यही नहीं खादी से बने कपड़ो की खरीद के लिए रेलवे, रक्षा, गृह विभागों द्वारा निश्चित खरीद भी की जाती है। साथ ही आम उपभोक्ता को खुश रखने के लिए खादी की खरीद पर 35 से 40 फीसदी की छूट भी दी जाती है। लेकिन इसके बावजूद आम आदमी आज भी खादी से दूर क्यों है। इस बाबत खादी भंडारों के संचालकों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अगर गौर किया जाए तो इसका कारण पश्चिमी पोशाकों और वस्तुओं का बढ़ता रुझान है। इन कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों की तगड़ी ब्रांडिंग की जाती है। इसके लिए वे फैशन शो वगैरह भी आयोजित करते है।’ अगर जवाब यह है तो आपकों जानकार और भी आश्चर्य होगा की खादी के प्रचार के लिए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर के 30 से ज्यादा ट्रेड फेयर पूरे देश में आयोजित किए जाते है। यहीं नहीं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी खादी के प्रचार के लिए केवीआईसी काम करती रहती है।


फेब इंडिया जैसी कुछ निजी कंपनियां भी खादी की ही तरह प्राकृतिक रेशो से बने कपड़ों और उत्पादों को उपलब्ध करवाती है। इन कंपनियों के बने उत्पादों की बाजार में जबर्दस्त मांग रहती है और इसी के चलते इस कंपनी ने अपने कारोबार में पिछले बीस सालों में 60 से 70 फीसदी की बढ़ोतरी कर ली है। साथ ही यह कंपनी ग्रामीण रोजगार भी उपलब्ध करवा रही है। इसलिए सवाल यह उठता है कि अगर एक निजी कंपनी उसी खादी से बाजार में फायदा उठा रही है, जिसके लिए केवीआईसी को सरकारी एंजेसी होने के बाद लोहे के चने चबाने पड़ रहे है तो इसका कारण क्या है।


इस बाबत केवीआईसी के मध्य क्षेत्र के सदस्य दीपक त्यागी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘वास्तविकता में केवीआईसी एक सरकारी एंजेसी है। इसलिए इसका उद्देश्य सिर्फ मुनाफा कमाना न होकर, रोजगार प्रदान करना और ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहित करना है। केवीआईसी को सभी संस्थाओं और व्यक्तियों को साथ में लेकर चलना है। किसी से फायदा न होने पर उसे अलग नहीं किया जा सकता है। जबकि अन्य निजी कंपनियों का उद्देश्य ऐसा नहीं है। इसके अलावा केवीआईसी खादी का प्रचार विभिन्न संस्थानों और संस्थाओं के जरिए करती है। खादी के प्रचार के लिए जरुरी है कि खादी का उत्पादन करने वाली संस्थाए केवीआईसी से खादी के नाम पर फंड लेने तक जिम्मेदार रहने के अलावा उनमें कुछ रचानात्मकता को भी जोड़े ताकि आम आदमी को खादी से जोड़ा जा सके। साथ ही सबसे जरूरी बात यह है कि खादी की बिक्री मुख्य तौर पर अक्टूबर से लेकर जनवरी के मध्य होती है। ऐसे में बाकी के महीनों के लिए केवीआईसी को ग्राम उद्योगों से जुड़े अन्य उत्पादों पर ज्यादा सशक्त नीतियों को बना लिया जाए तो खादी का फिर से आम उपभोक्ता के बीच में पहुंचाया जा सकता है। केवीआईसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ‘केवीआईसी की योजनाओं को ज्यादा सफलता न मिलने का कारण खादी और इससे संबधित उद्योगों के अवमूल्यन दर का वृद्वि दर से ज्यादा होना है।’ कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन सवाल उठता है कि जिस खादी को पहनकर स्वतन्त्रता सेनानियों ने देश को आजादी दिलाई क्या उसे आज संरक्षित करने का समय आ गया है।

First Published : October 2, 2008 | 8:47 PM IST