सरकार नियंत्रित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल)के बैंक ऋणों और विर्निर्माण क्षेत्र को वित्तीय वित्तीय सहायता प्रदान केलिएकर मुक्त बांड के जरिए 10,000 करोड़ रुपये जुटाने की संभावना है।
गौरतलब है कि यह राशि रविवार को सरकार द्वारा घोषित 10,000 करोड रुपये केअतरिक्त है जिसे अर्थव्यवस्था में जान फूंकने केउद्देश्य से सहायता राशि केतौर पर दिया गया है। इससे इस साल विनिर्माण केक्षेत्र केलिए कुल 20,000 करोड़ रुपये हो जाएंगे।
इस बात की पुष्टि करते हुए सरकारी अधिकारी ने कहा कि 10,000 करोड रुपये की पहली किस्त को तत्काल पूरा किया जा रहा है जबकि दूसरी किस्त को अगले साल 2009 तक पूरा कर लिया जाएगा। इन बांडों केलिए कूपन दरों के7.5 फीसदी रहने की संभावना है। पहली किस्त की मियाद पूरी होने की अवधि पांच वर्षो की होगी।
सूत्र के अनुसार दूसरे किस्त के मियाद पूरी होने की अवधि और भी ज्यादा लंबी हो सकती है जिसमें कॉल और पुट ऑप्शन शामिल होंगे। आईआईसीएफएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एस एस कोहली ने कहा कि इन सारी प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द से पूरा कर लेने की दरकार है जिससे विनिर्माण क्षेत्रों को आसानी से फंड उपलब्ध कराया जा सके।
कोहली ने कहा कि विनिर्माण क्षेत्र विकास के ईंजन की तरह काम करता है और यह अन्य क्षेत्रों में भी मांग में तेजी लाएगा। हालांकि कोहली ने इस बारे में कुछ पूरा ब्योरा देने से इनकार कर दिया।
एक अग्रणी निजी क्षेत्र केबैंक के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार इन बांडों को सॉवरिन गारंटी के साथ प्रदान करेगी जिससे निजी संस्थाओं के इसमें निवेश करने की बेहतर संभावना जताई जा रही है।
सूत्र के अनुसार यह नया इंस्ट्रूमेंट एक्जेंप्ट, एक्जेंप्ट और एक्जेंप्ट (ईईई)की श्रेणी में आएगा जिसका मतलय यह होता है कि इसमें किया गया निवेश कर केदायरे से बाहर होगा और इस पर आनेवाला ब्याज भी किसी तरह के कर के दायरे में नहीं आएगा।
अंत में मियाद पूरी होने पर निकाली गई रकम भी कर के दायरे से बाहर होगा। सूत्र ने यह भी कहा कि इस सप्ताह के अंत तक सरकार इस बांड को अपनी मंजूरी प्रदान कर देगी। इस तरह की बात भी सामने आई है कि तत्कालिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने तो पहले ही इस पर अपनी मुहर लगा दी थी।
योजना आयोग ने मूल रूप से यह कहा था कि सरकार को विनिर्माण क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रदान करने केलिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करना चाहिए लेकिन रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि आरबीआई इस बात केलिए तैयार नहीं था।