प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pixabay
भारत की अर्थव्यवस्था स्थिर बनी हुई है और हाल ही में सरकार द्वारा उपभोग को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों से आर्थिक स्थिति को और मजबूती मिलने की संभावना है। यह बात मोतीलाल ओसवाल प्राइवेट वेल्थ (MOPW) की हालिया रिपोर्ट “अल्फा स्ट्रैटेजिस्ट मार्च 2025” में कही गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2025 में इक्विटी बाजार में करेक्शन देखने को मिला, जहां बाजार के अलग-अलग क्षेत्रों में बिकवाली का दबाव रहा। अमेरिकी टैरिफ, चीन द्वारा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास और मजबूत डॉलर जैसे वैश्विक कारणों के चलते बाजार में यह अस्थिरता बनी रही। हालांकि, वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही (Q3FY25) के जीडीपी आंकड़ों ने कुछ हद तक सुधार के संकेत दिए हैं। इस रिपोर्ट में निवेशकों को अपने जोखिम प्रोफाइल के अनुसार संतुलित और स्थायी निवेश रणनीति अपनाने की सलाह दी गई है।
MOPW का मानना है कि बाजार में मौजूदा अस्थिरता का असर साल के पहले छह महीनों में धीरे-धीरे कम हो सकता है। इसके साथ ही, हाल ही में सरकार द्वारा उपभोग को बढ़ावा देने के लिए किए गए उपायों से अर्थव्यवस्था को लाभ मिलने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि करेक्शन के चलते लार्ज कैप (निफ्टी 50) के वैल्यूएशन एक साल के फॉरवर्ड प्राइस-टू-अर्निंग (PE) आधार पर 10 साल के औसत से नीचे आ गए हैं, जबकि मिड और स्मॉल कैप अभी भी प्रीमियम पर ट्रेड कर रहे हैं।
MOPW ने निवेशकों के लिए कुछ सलाह भी दी है। इसमें कहा गया है कि निवेशक हाइब्रिड और लार्ज कैप फंड्स में एकमुश्त निवेश की रणनीति अपनाएं और फ्लेक्सी, मिड और स्मॉल कैप रणनीतियों के लिए अगले 6 महीनों में क्रमिक निवेश (स्टैगर्ड अप्रोच) करें। यदि बाजार में बड़ी गिरावट होती है, तो तुरंत निवेश करने की सलाह दी गई है।
पिछले छह महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPI) का प्रवाह कमजोर रहा है। इसकी मुख्य वजहें उच्च अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड्स, मजबूत डॉलर और अमेरिका व भारत के बीच ब्याज दरों के अंतर में कमी रही है।
भारत के गवर्नमेंट सिक्योरिटी (G-Sec) यील्ड कर्व में अक्टूबर 2023 से गिरावट देखी गई है। इसका कारण मांग और आपूर्ति का अनुकूल संतुलन, नियंत्रित महंगाई और स्थिर घरेलू आर्थिक स्थिति रही है। हालांकि, अक्टूबर 2024 से वैश्विक और घरेलू कारकों के चलते यील्ड्स में अस्थिरता बनी हुई है।
MOPW ने फिक्स्ड इनकम पोर्टफोलियो के लिए निम्नलिखित रणनीति की सिफारिश की है:
रिपोर्ट के अनुसार, सोने के बाजार को केंद्रीय बैंकों की खरीद, कीमतों में बढ़ोतरी और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, बाजार की गहराई और लिक्विडिटी के चलते इन झटकों का असर समय के साथ कम हो सकता है। चीन और भारत में सोने की मांग के पैटर्न अलग-अलग बने हुए हैं, जहां थोक मांग, ईटीएफ प्रवाह और उपभोक्ता भावना में भिन्नता देखने को मिल रही है।