बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शेयर बाजारों को बाजार में शेयर जारी करनेवाली कंपनियों की बैंक गारंटी का हिसाब-किताब रखने को कहा है।
सेबी के वर्ष 2000 में जारी किए गए दिशानिर्देशों के नियम 42 के अनुसार शेयर जारी करनेवाली कंपनियों के लिए आईपीओ से जुटाई गई राशि का कम से कम एक फीसदी अधिकृत एक्सचेंज के पास रखना अनिवार्य है। इस नियम के अनुसार सिक्योरिटी डिपॉजिट का करीब 50 फीसदी एक्सचेंज को भुगतान करना होता है ।
जबकि बाकी रकम बैंक गारंटी के रूप में दी जा सकती है। इसके बाद अगर निवेशकों की तरफ से कोई शिकायत नहीं आती है तो इस जमा राशि को तीन महीने के अंदर कंपनियों का लौटा दिया जाता है।
हालांकि सूत्रों केअनुसार कभी-कभी तो इस रकम की वापसी में छह महीने लग जाते हैं,यहां तक कि एक साल भी लग जाता है।
इसका परिणाम यह होता है कि तब तक बैंक गारंटी समाप्त हो जाती है और एक्सचेंज के पास एक फीसदी की राशि ही रह जाती है।
सिक्योरिटी डिपॉजिट का इस्तेमाल कुछ समस्याओं मसलन निवेशकों को शेयर न मिलने या फिर आईपीओ संबंधी अन्य शिकायतों या मसलों को सुलझाने में किया जाता है।
इस प्रक्रिया में होनेवाली उलझनों को दूर करने केलिए सेबी ने शेयर बाजारों से कहा है कि सिक्योरिटी डिपॉजिट में बैंक गांरटी समाप्त हो जाने से अगर कोई कमी आई है तो उसे नकदी देकर या फिर नई बैंक गारंटी देकर पूरा किया जाए।
सेबी ने शेयर बाजारों को ऐसी व्यवस्था करने को कहा है जिसकेतहत कंपनियों की बैंक गारंटी का रिकॉर्ड रखा जा सके। सेबी ने कहा है कि इस नई व्यवस्था के तहत बैंक गारंटी समाप्त होने के एक महीने पहले ही सब को सतर्क कर दिया जाए।