जिन निवेशकों ने मौजूदा साल की पहली छमाही में गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी गोल्ड ईटीएफ में पैसा लगाने का मौका गवां दिया उनके लिए एक अच्छी खबर है। पिछले तीन महीनों के दौरान गोल्ड ईटीएफ के शुद्ध परिसंपत्ति भाव यानी एनएवी में 7.21 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।
इतना ही नही बल्कि पिछले 15 दिनों में एनएवी में चार फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। गोल्ड-एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में आमतौर पर सोना एवं चांदी की हाजिर कीमतों को ट्रैक करते हैं और फिर स्टॉक एक्सचेंज में उसे सूचीबद्ध यानी लिस्ट करते हैं।
मालूम हो कि बेंचमार्क म्युचुअल फंड ने सबसे पहला गोल्ड ईटीएफ भारत में लांच किया है। इस वक्त इस क्षेत्र में कारोबार करने वाले पांच खिलाड़ी बेंचमार्क, कोटक, क्वांटम, रिलायंस और यूटीआई हैं।
बाजार विशेषज्ञ हालांकि यह महसूस करते हैं कि त्योहारों का मौसम खत्म होने पर इनकी कीमतों में और गिरावट दर्ज की जा सकती है जिससे फिर इसमें निवेश करना और फायदेमंद एवं सस्ता साबित हो सकेगा।
इस बाबत एफसीएच सेंट्रम वेल्थ प्रबंधन के प्रमुख श्रीराम वेंकटसुब्रह्मणन कहते हैं कि गोल्ड ईटीएफ एक बेहतर मूल्यांकन स्तर पर आ चुका है मगर डॉलर के और मजबूत होने पर इसमें गिरावट की उम्मीद की जा सकती है।
सोसिएट जनरल प्राइवेट बैंकिंग के कार्यकारी निदेशक निपुण मेहता के मुताबिक गोल्ड ईटीएफ को पोर्टफोलियो के एक हिस्से के बतौर होना चाहिए क्योंकि यह महंगाई में एक हेजिंग के रूप में स्थायित्व प्रदान करता है।
इसके अलावा इसे दूसरे अन्य परिसंपत्तियों वर्ग मसलन शेयर, फिक्सड इनकम सेक्योरिटीं और कमोडिटीं से विपरीत चलता है यानी इक्विटी के गिरने पर अमूमन यह चढ़ेगा।
निवेशक को जिसे सोने में लंबे समय (तीन साल या ज्यादा) के लिए निवेश करना है उसे गोल्ड ईटीएफ के जरिए सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी लेनी चाहिए।
गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने का निवेशकों को फायदा यह मिलेगा कि उन्हें सोने में निवेश के सारे फायदे तो मिलेंगे ही साथ ही उन्हें सोना को रखने और संभालने की दिक्कतों को भी नहीं झेलना पड़ता।
सिप के जरिए निवेश से निवेशकों को समय के साथ यूनिटों का एकत्रित करने एवं इसकी खरीद में लगने वाले लागत खर्च को भी कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही गोल्ड ईटीएफ के यूनिटों को या तो फंड से सीधे वापस यानी रिडीम किया जा सकेगा या फिर बाजार से भी इसका रिडंपशन कर सकना संभव होगा। सवाल जहां तक परिसंपत्ति वितरण का है तो यह संपूर्ण पोर्टफोलियो का पांच फीसदी ही निर्माण कर सकेंगे।
इस बारे में वेंकटसुब्रह्मनयन केमुताबिक गोल्ड ईटीएफ को पोर्टफोलियो का एक छोटा हिस्सा ही होना चाहिए। आदर्श स्थिति यह होती है कि संपूर्ण निवेश का यह 10 फीसदी से ज्यादा नही होना चाहिए। इसके अलावा कच्चे सोने के मुकाबले गोल्ड ईटीएफ में निवेश के कई बड़े फायदे हैं।
मसलन गोल्ड ईटीएफ के यूनिटों को कोई निवेशक यदि एक साल से ज्यादा समय से बनाए रखे हुए है तो वह निवेशक बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसदी के दर पर लंबी अवधि के कैपिटल गेन टैक्स पाने का अधिकारी बन जाता है।
साथ ही उसे इंडेक्सेशन के बिना 20 फीसदी की दर पर लंबी-अवधि का कैपिटल गेन टैक्स मिल सकता है। यदि निवेशक एक साल के भीतर ही बिकवाली करता है तो फिर उसका कारोबार लघु अवधि वाले कैपिटल गेन टैक्स लगेगा जो उसकी कमाई के आकार पर निर्भर करेगा।
दूसरी ओर जबकि कच्चे सोने में निवेश करने वाली स्थिति में निवेशकों को यदि लंबी अवधि वाले कैपिटल गेन टैक्स के लिए योग्य होना है तो इसके लिए उन्हें इसे कम से कम तीन सालों तक हिस्सेदारी बनाए रखनी होगी।
जबकि तीन सालों से पहले ही अगर पैसा वापस निकाल लिया जाता है तो फिर उस स्थिति में 30 फीसदी का भुगतान करना पड़ता है। साथ ही सोने की कीमत अगर 15 लाख से रुपये से ज्यादा की हो तो फिर इस पर परिसंपत्ति कर यानी वेल्थ टैक्स भी देना पड़ता है।
15 लाख रुपये से ज्यादा के सोना के होने पर कर कुल कीमत का एक फीसदी अदा करना पड़ता है। जबकि केपीएमजी के कार्यकारी निदेशक विकास वासल के मुताबिक सोना अगर कागज के रूप में हो तो इस पर कोई परिसंपत्ति कर नहीं लगेगा।