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मार्च 2008 नतीजे: भारी दबाव में

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:40 AM IST

मार्च को खत्म हुई तिमाही में अगर कोई खास बात रही है तो वो है कंपनियों के ऑपरेटिंग मार्जिन पर पड़ता दबाव।


बिजनेस स्टैंडर्ड रिसर्च ब्यूरो ने 1429 कंपनियों (बैंकों और फाइनेंशियल कंपनियों के अलावा)का अध्य्यन किया और इसमें कुछ रोचक ट्रेंड्स सामने आए हैं। पिछली चार तिमाहियों में बिक्री में सबसे ज्यादा इजाफा देखा गया और इसकी वृध्दि दर 23 प्रतिशत से कुछ कम रही।

जबकि ऑपरेटिंग प्रॉफिट में वृध्दि सबसे कम यानी 20 प्रतिशत ही रही। यही नहीं शुध्द मुनाफे की ग्रोथ भी 20 फीसदी से कम ही रही। साफ है कि कमोडिटी की चढ़ती कीमतों के साथ मजदूरी और तनख्वाह ने कंपनियों के ऑपरेटिंग प्राफिट मार्जिन(ओपीएम) पर प्रतिकूल असर डाला है।

यही वजह रही कि मार्च 2008 की तिमाही में ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन बाकी तिमाहियों में सबसे कम 19.4 फीसदी पर रहा, नेट प्राफिट मार्जिन भी आखिरी तिमाही में सबसे कम 11 प्रतिशत पर रहा। सभी सेक्टर्स में मार्जिन सिकुड़ते जा रहा है। 

तेज और पेट्रोकेमिकल्स क्षेत्र की अग्रणी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज,एल्युमिनियम क्षेत्र की हिंडाल्को, प्रमुख कार निर्माता कंपनी मारूति, एफएमसीजी फर्म हिंदुस्तान यूनीलीवर, इंजीनियरिंग कंपनी सिमेंस, स्टील निर्माता जेएसडब्ल्यू स्टील, ज्वैलरी रिटेलर टाइटन, सीमेंट निर्माता एसीसी, टेक्सटाइल कंपनी रेमंड, लॉजिस्टिक फर्म गेटवे डिस्ट्रीपार्क्स व रिटेलर शॉपर्स स्टॉप सभी का हाल एक जैसा हैं।

लेकिन असली चिंता उन कंपनियों को है जिनके मार्जिन पर बिक्री में आई गिरावट से दबाव बन रहा है। सबसे बड़ा झटका तो भेल ने दिया जिसके राजस्व में महज 15 प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है। एबीबी की हालत इससे अधिक जुदा नहीं है। उसके बिक्री में 17 प्रतिशत की ही वृध्दि हुई। धीमी गति से चल रहे प्रोजेक्ट की वजह से सीमेंस का ऑपरेटिंग प्रॉफिट 86 प्रतिशत नीचे आ गया।

देश की सबसे बड़ी बिजली कंपनी एनटीपीसी के प्रोवीजनल आंकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2008 की चौंथी तिमाही में समायोजन के बाद इसके शुध्द लाभ में गिरावट आ जाएगी। अमेरिकी बाजारों की मंदी का असर टीसीएस के नतीजों पर दिखा और कंपनी के राजस्व में केवल 3 प्रतिशत की सिक्वेंशियल ग्रोथ हुई और इसके (ईबीआईटी)एबिट मार्जिन में 140 बेसिस पाइंट की गिरावट हुई।

लेकिन जब कच्चे माल की ऊंची कीमतें समस्या बनने लगती हैं तो कंपनियां इस पर कुछ नहीं कर पाती हैं। कुल मिलाकर इस तिमाही में कमाई की जो क्वालिटी रही है वह संतोषजनक कतई नहीं थी। कमजोर पेट्रो बाजार का अर्थ यही हुआ कि रिलायंस इंडस्ट्रीज अपना मार्जिन नहीं बनाए रख सकता।  इसमें 270 बेसिस पाइंट की गिरावट हुई।

इस समय ग्राहक कार नहीं खरीद रहे हैं, यही वजह रही कि मारुति का रेवेन्यू केवल 9 प्रतिशत ही बढ़ सका। जबकि इसके ऑपरेटिंग मार्जिन में 140 बेसिस पाइंट की गिरावट रही। नेस्ले और हिंदुस्तान यूनीलीवर(एचयूएल) तो अपने उत्पाद बेच पा रहे हैं, लेकिन दूसरी ऐसी कंपनियों को इसमें दिक्कत हो रही है। एचयूएल, डाबर और मेरिको की ऊंची लागत उनका ऑपरेटिंग प्रॉफिट चट कर रहा है।

बैंकों ने भी कर्ज तो खूब बांटा लेकिन उनका ज्यादातर लाभ प्रोवीजनिंग कम करने और ट्रेजरी कारोबार के मुनाफे के कारण ही रहा। इन बैंकों का नेट इंटरेस्ट मार्जिन भी बेहतर नहीं रहा। इसकी वजह सीआरआर की दर में बढ़ोतरी और प्राइम लेंडिग रेट में हुई कटौती है। परिसंपत्ति की गुणवत्ता आई गिरावट इस क्षेत्र की दिक्कतों को और बढ़ाता है। देश की सबसे बड़ी बैंक एसबीआई की कृषि क्षेत्र में एनपीए की ऊंची दर रही है। मेटल क्षेत्र की हालत इससे जुदा नहीं है।

फ्लैट रियेलाइजेशन और ऊंची लागत के कारण हिंडाल्को के ऑपरेटिंग मार्जिन में 600 बेसिस पाइंट की गिरावट हुई। रिलायंस कम्युनिकेशन के वायरलेस के राजस्व महज 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। भले ही प्रमुख दवा निर्माता कंपनी सिपला के मार्जिन में 240 बेसिस पाइंट का इजाफा हुआ हो, इसके बाद भी इसका रन रेट पिछली तिमाही की तुलना में कम रहा।

मार्च की तिमाही में प्रमुख रियल एस्टेट कंपनी का प्रॉफिट 1.5 प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई। इसके प्राफिट मार्जिन में 500 बेसिस पाइंट की बढ़ोतरी हुई। प्रमुख ब्रॉडकास्टर जी का ऑपरेटिंग मार्जिन फ्लेट बना रहा बावजूद इसके कि टापलाईन ग्रोथ 33 प्रतिशत रही।

सीमेंट कंपनी अल्ट्राटेक के राजस्व में बेहतर रियेलाइजेशन के बाद भी महज 9.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। कमाई में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी और ऑपरेटिंग मार्जिन में 220 बेसिस पाइंट की बढ़ोतरी के साथ इस शो में नेस्ले ने बाजी मारी। मार्च में खत्म हुई तिमाही के नतीजों पर प्रसिध्द ब्रोकरेज फर्म मोर्गन स्टेनली ने कहा है कि सभी स्टॉकों कुछ आश्चर्यजनक ढंग से कुछ सकारात्मक बातें भी सामने आईं।

कुल मिलाकर इस तिमाही में हुई आय उम्मीदों से अधिक है। हालांकि 60 प्रतिशत से अधिक स्टॉक ब्रोकरेज की उम्मीदों से कम है, जबकि मार्जिन 150 बेसिस पाइंट नीचे आया है। एनर्जी और मटेरियल के क्षेत्र में गिरावट काफी अधिक रही। यह अध्ययन बताता है कि मार्जिन में रिस्क अधिक है, साथ ही धीमी वृध्दि की भी आशंका है। इससे आने वाले माहों में कमाई कम हो सकती है।

मार्च में आईआईपी ग्रोथ के 3 प्रतिशत पर आना और धीमी पड़ती इकनामी का साफ संकेत दे रहे हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये के 6 प्रतिशत नीचे आने और कमोडिटिज की कीमतों के ऊचें स्तर पर बने रहने से बाजार पर मुद्रास्फीति का दबाव बना रहेगा।

रिपोर्ट बताती है कि वृहद बाजार के लिए एर्निंग रिविजन पिछले सात सालों के अपने सबसे निचले स्तर पर है इसलिए सेंसेक्स के नेरो मार्केट के सामने कमाई के अनुकूल हालात हैं। यह हालात भी बदल सकते हैं क्योंकि नेरो मार्केट से भी उम्मीदें कम होती जा रहीं हैं।

First Published : May 20, 2008 | 12:16 AM IST