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बाजार की मंदी का विलय-अधिग्रहण पर कोई असर नहीं पड़ेगा

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 5:46 PM IST

शेयर बाजार की मंदी का विदेशों में भारतीय कंपनियों द्वारा किए जा रहे विलय और अध्रिग्रहण (मर्जर ऐंड एक्विजिशन) पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


यह कहना है कोटक महिन्द्रा कैपिटल के कार्यकारी निदेशक और एम एंड ए के प्रमुख टी वी रघुनाथ का। इस बारे में नेविन जॉन ने उनसे बातचीत की।

अधिग्रहण और विलय के लिए परिस्थितियां फिलहाल ठीक नहीं लग रही है। आप इससे सहमत हैं?

इस समय हम इनबाउंड और आउटबाउंड विलय और अधिग्रहण की प्रक्रिया में मंदी की कोई ऐसी बात नहीं देख रहें हैं। भारतीय कंपनियां अच्छे मुनाफे और बेहतर कारोबार के अनुभव के आधार पर ग्लोबल शक्ल अख्तियार करने की कोशिश कर रही हैं। इस संबंध जो ज्यादातर कंपनियां जो हमसे सलाह लेने आती हैं उनकी बैलेंसशीट में अधिग्रहण के लिए सरप्लस कैश होता है।

इस समय किस तरह के समझौतों की संभावनाएं बन रही  है?

मौजूदा समय में रणनीतिक रूप से कारोबार करने वाले अधिक सक्रिय हैं। सोच-समझकर किए जानेवाले अधिग्रहण से कंपनी अपने उत्पादन और कारोबार को बढ़ा सकती हैं। मौजूदा समय में विशेषज्ञ कंपनियों द्वारा छोट समझौते किए जाने केदृष्टि से बिल्कुल उपयुक्त है। वैश्विक स्तर पर तरलता की कमी के कारण बड़े समझौते प्रभावित हो सकते हैं, हालांकि अभी तक इ कोई संकेत नहीं मिला है।

ऐसा माना जा रहा है कि बाजार में चल रहे भारी उतार चढ़ाव से भारतीय कंपनियों के  वैल्यूएशंस में कमी आई है। आप का क्या मानना है?

विदेशी निवेशक अभी भी कारोबार बढ़ाने के लिए भारत को एक आकर्षक जगह मानते हैं। उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्यां, आम आदमियों की आय में बढ़ोतरी और मैक्रोइकोनॉमिक ग्रोथ की वजह से विदेशी निवेशक आकर्षित हो रहे है।

क्या भारतीय कंपनियां इस समय सस्ती लग रही हैं?

सोच समझकर निवेश करनेवाले बड़े खिलाड़ियों की संपत्ति में उनके मजबूत कैश फ्लो केकारण वैल्युएशन में कोई कमी नहीं आई है। हालांकि बाजार की मौजूदा स्थिति को देखते हुए प्रोमोटरों की अपेक्षाएं कम जरूर हुई हैं। इससे खरीददारों को बेहतर कीमत मिलने में आसानी होगी।

ऐसे कौन से क्षेत्र है जिनमें विलय और अधिग्रहण की गतिविधियां देखी जा सकती हैं?

विभिन्न क्षेत्रों में ऐसा हो रहा है जिसमें कि वित्तीय क्षेत्र भी शामिल हैं। अमेरिका में हुए क्रेडिट संकट केबाद से वित्तीय सेवा प्रदान करनेवाली कंपनियों के वैल्युएशन में काफी कमी आई है। इसके अलावा फार्मा, आईटी, इंजीनियरिंग, ऑटो, माइनिंग, मेटल्स और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में विलय और अधिग्रहण की ज्यादा गुंजाइश दिखती है।

रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों के बाद कंपनियों के लिए फंड जुटाना मुश्किल हो गया है। इसका विलय और अधिग्रहण पर कितना असर पड़ेगा?

इस तरह की बहुत कम डील ऐसी होती हैं जिनकी फंडिंग बैंक से कर्ज लेकर की जाती हो। अगर वे ऊंची दरों पर उधार लेंगे तो इसका असर कंपनियों के बॉटमलाइन ग्रोथ पर पड़ेगा।

बहुत सारी कंपनियां ऊंची दरों पर कर्ज लेने के बजाए अपनी हिस्सेदारी को कम करके फंड जुटाने पर विचार कर रही है। इस तरह की परिस्थितियां कब तक बनी रहेंगी?

प्राइवेट इक्विटी का निवेश इक्विटी की कीमतों पर निर्भर करता है। अगर उनको सही कीमत मिलती है तो उस स्थिति में वे निवेश करना पसंद करेंगे।

First Published : August 20, 2008 | 10:19 PM IST