भारतीय म्युचुअल फंडों की दुनिया में 30 से अधिक फंड-वर्ग हैं। अधिकांश फंड वर्गों में कई म्युचुअल फंड कंपनियां शामिल हैं लेकिन एक वर्ग ऐसा है जिसमें केवल दो ही फंड हैं।
यूटीआई ऑटो और जे एम ऑटो सेक्टर फंड भारत में दो सेक्टर आधारित फंड हैं। और इन फंडों में कंपनियों की कमी आधारहीन नहीं है।भारतीय ऑटो सेक्टर का प्रदर्शन कुछ दिनों से अच्छा नहीं चल रहा है और दोनों ऑटो फंडों ने निवेशकों को निराश किया है। इक्विटी फंडों की बात करें तो उनमें ऑटो फंड वर्ग का प्रदर्शन सबसे अधिक बुरा रहा है दूसरे स्थान पर तकनीकी फंड है।
इस वर्ग ने 19 मार्च 2008 को समाप्त हुए वर्ष में 10 प्रतिशत गंवाया है। इनके प्रतिफल ऋण और लिक्विड फंडों से भी कम रहे हैं।एक तरफ जहां दोनों फंड खराब प्रदर्शन के मामले में एक जैसे रहे हैं लेकिन इन दोनों फंडों की नीतियां भिन्न हैं। यूटीआई ऑटो अपने पोर्टफोलियो में लगभग 17-20 शेयरों को शामिल कर सकता है वहीं जे एम ऑटो सेक्टर कुछ कम आक्रामक है और इसके पोर्टफोलियो में केवल 12-15 शेयरों को शामिल किया जाता है।
ऐसा लगता है कि ये फंड अपनी शुरुआती नीति से थोड़े अलग हो गए हैं। जब यूटीआई ऑटो की शुरुआत हुई थी तो इसके पोर्टफोलियो में 30 शेयरों को शामिल किया गया था, जे एम ऑटो सेक्टर के पोर्टफोलियो में लॉन्च होने के एक साल बाद तक 20-25 शेयरों को शामिल किया जाता रहा। अब दोनों फंडों ने अपने-अपने पोर्टफोलियो में शेयरों की संख्या घटा दी है।
हालांकि, यूटीआई ऑटो ने अपना निवेश बनाए रखने में आक्रामकता का प्रदर्शन किया है। यूटीआई ऑटो के तहत किया गया पांच शीर्ष निवेश इसके पोर्टफोलियो के 68 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है वहीं जे एम ऑटो सेक्टर के मामले में यह प्रतिशतता 58 की है। चूंकि, दोनो फंडों के पोर्टफोलियो ज्यादा बड़े नहीं हैं इसलिए शीर्ष 10 निवेश उनके पोर्टफोलियो का लगभग 85 प्रतिशत बनाते हैं।
परिचालन के प्रथम वर्ष में यूटीआई ऑटो को देख कर ऐसा लग रहा था कि वर्ग फंडों के मामले में यह सर्वोत्तम है। इस फंड में इसके बेंचमार्क, बीएसई ऑटो, की तुलना में कहीं ज्यादा वृध्दि हुई और गिरावट के दौर में इस फंड ने सूचकांक की तुलना में कम गंवाया।
लेकिन अक्टूबर 2005 में फंड प्रबंधक के छोड़ कर चले जाने के बाद इसके प्रदर्शन पर खासा असर पड़ा। लेकिन यूटीआई ऑटो के प्रबंधन में ज्यादा बदलाव नहीं आने के बावजूद यह अपने बराबरी के फंड जे एम ऑटो सेक्टर से आगे नहीं निकल पाया। जे एम ऑटो सेक्टर ने हर बार यूटीआई ऑटो को मात दी है।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2007 में जब ऑटो सेक्टर महंगाई, उच्च ब्याज दर और ऋण में कमी की वजह से कठिनाई के दौर से गुजर रहा था जे एम ऑटो सेक्टर ने 17 प्रतिशत का प्रतिफल दिया जबकि यूटीआई ऑटो को 0.96 प्रतिशत का घाटा हुआ।दिसंबर 2007 की तिमाही में यूटीआई ऑटो का प्रतिफल 9 प्रतिशत था जबकि जे एम ऑटो का प्रतिफल 17 प्रतिशत था यद्यपि दोनों ने बीएसई ऑटो के छह प्रतिशत के प्रतिफल को इस अवधि में मात दी थी।
हालांकि शेयर बाजार में हाल में आई गिरावट में जे एम ऑटो में एक महीने में सर्वाधिक गिरावट देखी गई। जनवरी 2008 में यह फंड 20 प्रतिशत तक नीचे आ गया था जबकि यूटीआई ऑटो 17 प्रतिशत नीचे आया था।जैसा कि इन दोनों फंडों के नामों से ही स्पष्ट है कि इनकी परिसंपत्तियों के बड़े हिस्से का निवेश ऑटोमोबाइल और इनसे जुड़े क्षेत्रों में किया जाता है।
अन्य क्षेत्रों जैसे मूलभूतअभियांत्रिकी, धातु और धातु उत्पादों में इन फंडों का निवेश केवल वैसी कंपनियों के शेयरों में किया गया है जो ऑटो क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।उदाहरण के लिए एक्साइड इंडस्ट्रीज, एन्की कैस्टालॉय, कैस्ट्रॉल इंडिया, टिमकेन इंडिया आदि सभी कंपनियां ऑटो क्षेत्र से संबंधित है जिनमें इन फंडों ने निवेश किया हुआ है।
यद्यपि दोनों फंडों के आकार छोटे हैं लेकिन यूटीआई ऑटो जे एम ऑटो सेक्टर की तुलना में चार गुना अधिक बड़ा है। यूटीआई ऑटो के आकार में शुरूआत की तुलना में कमी आई है। अप्रैल 2004 में इसकी प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति 55 करोड़ रुपये थी, अप्रैल 2006 में यह लगभग 100 करोड़ रुपये हो गया और वर्ष 2008 के फरवरी के अंत में यह घट कर केवल 42 करोड़ रुपये रह गया है।
जे एम ऑटो सेक्टर के प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों में शुरूआत से ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं आया है यद्यपि आरंभिक कोष की तुलना में इसमें कमी आई है। जे एम ऑटो सेक्टर की प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति शुरू में 13 करोड़ रुपये थी जो जुलाई 2006 में घट कर 8.8 करोड़ रुपये हो गई। वर्ष 2008 के फरवरी के अंत में इसकी प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति 11 करोड़ रुपये थी।
जे एम ऑटो सेक्टर का झुकाव स्मॉल कैप शेयरों की तरफ अधिक है। वास्तव में मिड और स्मॉल-कैप इसकी परिसंपत्ति के 60 प्रतिशत का निर्माण करते हैं। हालांकि, जुलाई 2007 में जबसे असित भंडारकर ने फंड प्रबंधक का कार्यभार संभाला है तबसे फंड में लार्ज-कैप शेयरों को भी शामिल किया जाने लगा है।यूटीआई ऑटो का झुकाव लार्ज-कैप की तरफ अधिक है। शुरूआती दौर में इस फंड का रूझान विशुध्द मिड और स्मॉल कंपनियों की तरफ अधिक था।
हाल के दिनों में ऑटो का क्षेत्र कठिनाई के दौर से गुजर रहा था ऑटोमोबाइल, खास तौर से कारों की बिक्री आय के स्तर में होने वाले इजाफे से बढ़ सकती है। इस वर्ष के बजट में कारों के उत्पाद शुल्क में की गई कटौती से इनकी बिक्री बढ़ सकती है।