देश की सबसे बड़े पेपर निर्माणकर्ता बल्लारपुर इंड्रस्टीज लिमिटेड (बिल्ट) जिसने खुद को मार्च,2008 के अंत में पुन: सूचीबध्द किया है, ने साल 2008 की जून तिमाही के अंत में करीब 26 फीसदी का परिचालन लाभ अर्जित किया।
फर्म ने हाल में बायबैक के अलावा शेयर की फेस वैल्यू भी दो रुपए तक करके कंपनी की पुनर्संरचना की थी। कंपनी के प्रबंधन का कहना है कि जून 2008 को खत्म हुए साल की पिछले साल से तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि इस दौरान कंपनी ने विस्तार रुप से अपनी पुनर्संरचना की।
कंसोलिडेटेड स्तर पर कंपनी की शुध्द बिक्री में 22 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज क4 गई और यह सालाना आधार पर 2,831 करोड़ रुपयों रही जबकि ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 724 करोड़ रुपए रहा। साल के ऑपरेटिंग मार्जिन स्थिर रहकर 25.57 फीसदी पर रहा।
कंपनी द्वारा मलेशिया के साबाह में खरीदी गई यूनिट कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने का बुरी तरह असर पड़ा क्योंकि यह प्लांट फरनेस ऑयल का इस्तेमाल करता है जिसकी कीमतें कच्चे तेल से जुड़ी हुई हैं। जुलाई में बिल्ट ने कोटेड पेपर के दाम में 10 फीसदी की बढ़ोतरी करके 5,000 रुपए प्रति टन कर दिया जबकि अनकोटेड पेपर के दाम में चा से पांच फीसदी की बढ़ोतरी की और यह 2,000 रुपए प्रति टन रहा।
विश्लेषकों का मानना है कि लागत में ज्यादातर बढ़ोतरी हो चुकी है और कीमतों के बढ़ाने से ऑपरेटिंग मार्जिन सुधरना चाहिए। कंपनी प्रबंधन का मानना है कि मांग तेज बनी रहनी चाहिए। भारतीय पेपर उद्योग की ग्रोथ के करीब छह से आठ फीसदी के हिसाब से बढ़ने की संभावना है जो कि विश्व में सर्वाधिक है। हालांकि घरेलू खपत अभी भी कम है, हालांकि कंपनी को भरोसा है कि यह रुझान कुछ सालों में बदलेगा।
जून 2008 की तिमाही के दौरान टिंबर की बिक्री मजबूत रही जिससे कंपनी की टॉपलाइन ग्रोथ बढ़ी। हालांकि उत्पादन की ऊंची लागत की वजह से ऑपरेटिंग प्रॉफिट पर असर पड़ा। बिल्ट अपनी क्षमता में 85,000 टन जोड़ेगी जिसमें से 75,000 टन भारत की इकाइयों में जोडी जाएगी जबकि शेष क्षमता साबाह इकाई में जोड़ी जाएगी।
भिगवान और बालापुर ईकाइयों में विस्तार कार्य से कंपनी को वित्त्तीय वर्ष 2009 में 13 फीसदी का वॉल्यूम ग्रोथ हासिल करने में मदद मिलेगी जिससे कंपनी को प्रबंधन को भरोसा है कि उसकी टॉपलाइन ग्रोथ मजबूत होगी। बल्लारपुर पेपर होल्डिंग में अपनी 21 फीसदी हिस्सेदारी के प्लेसमेंट से कंपनी ने 700 कोड़ रुपए की राशि जुटाई जिससे बीपीएच की कीमत घटकर 3,300 करोड़ रुपए रह गई ।
कंपनी के शेयर के मूल्य में करीब 18 फीसदी का सुधार हुआ है जबकि मार्च से अब तक बाजार में 10 फीसदी गिरावट देखी गई है। मौजूदा बाजार मूल्य 33 रुपए पर कंपनी के शेयर का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 5.7 गुना के स्तर पर हो रहा है।
उभरते बाजार-फीका स्वाद
मेरिल लिंच की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में सालाना 33 फीसदी का रिटर्न देने के बाद उभरते हुए बाजार इस साल 20 फीसदी निचले स्तर पर हैं। पिछले दस या अधिक हफ्तों में लाँग ओनली फंड से 20 अरब डॉलर रुपए निकाले गए।
निवेशक अपनी पूंजी के बारे में चिंतित हैं। इससे फंड मैनेजरों की जिंदगी काफी कठिन हो गई है और उन्हें अपने पोजिशन को कतरने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यह इसलिए नहीं है कि बाजार काफी महंगा है। एमएससीआई ईएम सूचकांक का कारोबार 12.1 गुना के रोलिंग आय पर हो रहा है। हालांकि ज्यादातर उभरते हुए बाजारों का ग्रोथ आगे आने वाले सालों में बरकरार रहना चाहिए।
हालांकि कुछ समय के लिए अमेरिका का क्रेडिट संकट खत्म हो गया है और यूरोप और जापान में मंदी की शुरुआत देखी जा रही है। जिन फंड मैनेजरों के पास निवेश करने के लिए पूंजी भी है तो वे इन बाजारों से दूरी बना रहे हैं। तेल की कीमतों से कुछ बाजारों जैसे भारत में तेजी देखी जा सकी है।
हालांकि भारतीय बाजार जनवरी की अपनी सर्वाधिक ऊंचाई से 29 फीसदी निचले स्तर पर है और क्षेत्र में सबसे बड़ा अंडरपरफार्मेंस मार्केट है। ऐसा नहीं है कि वैल्यूएशन उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। लेकिन यह क्षेत्र में सर्वाधिक हैं। इसी वजह से गोल्डमैन सैक्स जैसे ब्रोकरेज भी अभी भी चीन को पसंद कर रहे हैं क्योंकि भारत का कारोबार 30 फीसदी प्रीमियम पर हो रहा है।
इसके अलावा तेल की कीमतों में कमी आने की संभावना है तो यहां यह संभावना भी है कि यह पुन: अच्छा प्रदर्शन करने लगे। भारत पर तेल की कीमतों के बढ़ने का सबसे बुरा असर पड़ता है क्योंकि यहां पर डीजल और पेट्रोल की कीमतें सरकार के द्वारा सब्सिडाइज हैं जिससे व्यापार घाटा बढ़ता है। इसके अतिरिक्त 13 फीसदी के स्तर पर पहुंचती महंगाई और ऊंची ब्याज दरों से क्रय क्षमता पर असर पड़ने की संभावना है और अर्थव्यवस्था मंदी में रह सकती है। जिसका सीधा सा मतलब है कि धीमी अर्निंग ग्रोथ।