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सॉवरिन फंड योजना को आरबीआई का समर्थन

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 11:45 PM IST

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के अभिरक्षक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सॉवरिन वेल्थ फंड (एसडब्ल्यूएफ) बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है।


लेकिन अन्य देशों से अलग इस फंड का फोकस बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर होगा। उल्लेखनीय है कि चीन ने हाल ही में 2000 लाख डॉलर का ऐसा ही कोष बनाया है।एक विकल्प यह है कि विदेशी मुद्रा की खरीदारी के लिए सरकार अपने बजट में प्रावधान करे।


दूसरा विकल्प यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, खास तौर से वैसी कंपनियां जिनका फोकस नीतिगत क्षेत्रों जैसे तेल, गैस, खनिज पर है, से पूल के जरिये संसाधन जुटा कर उसे प्रस्तावित एसडब्ल्यूएफ में अंतरित किया जाए और विदेशी मुद्रा खरीदी जाए।


इस घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि दूसरे विकल्प से सरकार को वित्तीय घाटे पर नजर रखने में तो मदद मिलेगी ही साथ ही फंड द्वारा अर्जित प्रतिफल से केंद्र के संसाधन पूल में इजाफा होगा।हालांकि फंड की रुपरेखा अभी सामने आनी बाकी है। आरबीआई यह नहीं चाहता कि विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल इसके लिए किया जाए। इसके बजाए रुपये का इस्तेमाल विदेशी मुद्रा की खरीदारी के लिए की जा सकती है।


एसडब्ल्यूएफ बुनियादी क्षेत्र के वित्तपोषण के लिए चर्चित उपायों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। कुछ और उपायों का जिक्र 29 फरवरी को होने वाली वार्षिक मौद्रिक नीति की घोषणा में किया जा सकता है।


प्रस्तावित एसडब्ल्यूएफ इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड द्वारा स्थापित किए गए स्पेशल परपस वीइकल के अतिरिक्त होगा जिसने भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के विदेश में किए जाने वाले अधिग्रहणों और उपकरणों की खरीद के वित्तपोषण के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से पांच अरब डॉलर निकाला है।


इस सप्ताह में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने संसद को यह सूचना दी थी कि कारोबार और उद्योग के लिए प्रधानमंत्री के काउंसिल, जिसमें शीर्षस्थ कारोबारी शामिल है, ने पांच अरब डॉलर का एसडब्ल्यूएफ बनाने का सुझाव दिया है।


हाल ही में आरबीआई के गवर्नर वाई वी रेड्डी ने कहा था कि भारत एसडब्ल्यूएफ के फायदे-नुकसान का आकलन कर रहा है लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि अगर सॉवरिन इकाई बनती है तो इससे केंद्रीय बैंक से विदेशी मुद्रा खरीदी जा सकती है और उसका निवेश वैसी परिसंपत्तियों में की जा सकती है जहां उच्च प्रतिफल मिलता है।


बुनियादी ढांचा क्षेत्र संबधी अन्य विकास में आरबीआई योजना बना रही है कि प्रमुख क्षेत्रों के लिए ऋण के लिए परिसंपत्ति पर्गीकरण नियमों को आसान किया जाए। परिसंपत्ति वर्गीकरण नियम का संबंध उस समयावधि से है जिसमें बैंक अपने ऋण एवं अग्रिम का वर्गीकरण स्टैंडर्ड या निष्पादित या गैर निष्पादित परिसंपत्ति के तौर पर करती है।वर्तमान नियमों के अनुसार किसी ऋण को डीफॉल्ट के 90 दिन के बाद गैर निष्पादित परिसंपत्ति में वर्गीकृत किया जाता है।


किसी बुनियादी परियोजना को निष्पादित वर्ग में रखने के लिए केवल ब्याज का भुगतान करना ही जरुरी नहीं है बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि वाणिज्यिक उत्पादन की शुरुआत हो चुकी है। आरबीआई ने गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के वर्गीकरण की समय-सीमा पहले ही छह महीने से बढ़ा कर एक साल कर चुकी है।

First Published : April 25, 2008 | 11:12 PM IST