आ ठ जनवरी से लेकर 30 सितंबर, 2008 तक रियालिटी, मेटल और टिकाउ उपभोक्ता सामान के क्षेत्र सबसे अधिक कमजोर हुए। इनके शेयर इस अवधि में 50 फीसदी से अधिक नीचे गिरे। क्षेत्रवार सूचकांक की बात की जाए तो इस दौरान बीएसई में कैपिटल गुड्स और बैंकिंग सूचकांक सबसे अधिक
फिसले। ये दोनों सूचकांक 47 फीसदी नीचे आए। इसी समयावधि में स्मॉल कैप सूचकांक (59 फीसदी) और मिड कैप (52 फीसदी) दोनों पचास फीसदी से अधिक नीचे गिरे।
बीएसई में गैर टिकाऊ उपभोक्ता सामान (एफएमसीजी) और हेल्थकेयर के सूचकांकों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों के सूचकांक अपने पिछले एक साल के सबसे निचले स्तर पर हैं। ये दोनों सूचकांक अपने 8 जनवरी के स्तर से महज 15-15 फीसदी नीचे आए हैं। इनके साथ तेल व गैस, ऑटो और आईटी के सूचकांकों में सेंसेक्स की तुलना में कम गिरावट हुई। इस दौरान सेंसेक्स 38.4 फीसदी गिरा जबकि ये इन क्षेत्रों के शेयरों में 27 फीसदी से लेकर 36 फीसदी की गिरावट हुई। इस समयावधि में सेंसेक्स सबसे अधिक गिरने वाला बाजार सूचकांक रहा। इसक ी तुलना में एस एंड पी सीएनएक्स निफ्टी 37.6 ही गिरे।
8 जनवरी-30 सितंबर की समयावधि में भारतीय बाजार का मूल्यांकन 45 फीसदी कम हुआ। यह 45 फीसदी या 34.41 लाख करोड़ रुपये गिरकर 30 सितंबर को 40.58 लाख करोड़ रुपये हो गया जबकि जनवरी में यह 74.99 लाख करोड़ रुपये था। सबसे अधिक घाटे में रियाल्टी सेक्टर रहा। यह 8 जनवरी को इसका वैल्युएशन 4,24,144 करोड़ रुपये था जो 30 सितंबर को 73 फीसदी घटकर 1,15,998 लाख करोड़ रु पये ही रह गया है।
इस क्षेत्र को अमेरिकी में आए सब प्राइम संकट डिफॉल्ट असर पड़ा जिसके चलते घरेलू रियल एस्टेट कंपनियों में धन की उपलब्धतता कम हो गई। यहां के रियाल्टी क्षेत्र में सबसे अधिक निवेश करने वालों की कतार में शामिल लीमन और मेरिल लिंच जैसे वित्तीय संस्थान खस्ताहाल हो गए हैं। नतीजतन वे अपनी हिस्सेदारी से बाहर निकल रहे हैं। शेयर बाजार में सूचीबद्ध 58 रियल एस्टेट कंपनियों में शेयर धार कों का निवेश 308,146 करोड़ रुपये कम होकर महज 1,11,998 करोड़ रुपये ही रह गया है। डीएलएफ, यूनीटेक, इंडियाबुल्स, एचडी–आईएल, ओमेक्स औ पार्श्वनाथ जैसी पहली कतार की
रियल एस्टेट कंपनियों का मूल्यांकन मिड कैप में 70 फीसदी नीचे आया।
बैंकिंग सेक्टर दूसरा सबसे अधिक प्रभावित सेक्टर रहा। इसका मूल्यांकन इस समयावधि में 306,958 करोड़ रुपये गिरा। इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण इस दौरान मुद्रास्फीति बढ़ना, कर्जें की मांग घटना और परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में कमी आने की आशंका रही। मिड कैप में 44 प्रमुख प्राइवेट और सरकारी बैंकों का मूल्यांकन 45 फीसदी कम हुआ। सबसे अधिक मार आईसीआईसीआई
और एसबीआई को पड़ी। दोनों
का मूल्यांकन 50,000 करोड़
रुपये गिरा।
इस खस्ताहाल बाजार में एफएमसीजी क्षेत्र की हिंदुस्तान यूनीलीवर और नेस्ले, हेल्थकेयर की सन फार्मा और सिपला एवं ऑटोमोबाइल क्षेत्र की हीरो होंडा ने ट्रेंड से विपरीत बेहतर प्रदर्शन किया। जनवरी 2008 से अब तक इनमें से हर कंपनी का मूल्यांकन 15,00 करोड़ बढ़ा।
कच्चे तेल से जुड़ी कमोडिटी की कीमतें ऊंचे स्तर से लगातार आई कमी और कीमतों में हुए 3 से लेकर 15 फीसदी के इजाफे के चलते ही एफएमसीजी क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले नौ माह में बेहतर रहा। सन फार्मा और सिपला को जेनरिक पोर्टफोलियो में विस्तार और प्रॉडक्ट मिक्स में हुए बदलाव से लंबी अवधि में लाभ होगा। इनके साथ पावर टेलिकम्युनिकेशन, आईटी, स्टील और ट्रेडिंग और माइनिंग सेक्टर का मूल्यांकन मिडकैप में एम समान 1,00,000 करोड़ रुपये गिरा जबकि नॉन फेरस मेटल, सिविल कंस्ट्रक्शन, एबीएफसी, तेल खनन, मियादी कर्ज देने वाले
वित्तीय संस्थानों और विद्युत उपकरण क्षेत्रों का मूल्यांकन मिडकैप में 50,000 करोड़ रुपये से लेकर 1,00,000 करोड़ रुपये तक गिरा।