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कारोबार की विकास दर में कमी, मगर हालात चिंताजनक नहीं

Last Updated- December 08, 2022 | 8:43 AM IST

वैश्विक स्तर पर आए ताजा मंदी केतूफान ने कई दिग्गजों को धराशायी कर दिया है। मंदी का पूरे विश्व में बीमा कारोबार पर भी असर पडा है क्योंकि एआईजी का संकट इस बात का पुख्ता प्रमाण है।


इस संकट से भारतीय बीमा उद्योग भी अछूता नहीं रहा है। फिलहाल भारत में 21 जीवन बीमा तथा 20 सामान्य बीमा कंपनियां अपना कारोबार कर रही है और मंदी से इनके कारोबार पर बहुत बुरा असर पडा है।

हालांकि भारत में बीमा कारोबार से बुनियादी समस्याएं जुडी हुई हैं जिनमें कारोबार का विस्तार और इसकी आम आदमी तक पहुंच को सुगम बनाना शामिल है।

बीमा कारोबार और इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष जे हरिनारायण से प्रशांत रेड्डी ने बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:

मौजूदा वित्तीय संकट का बीमा कंपनियों पर कितना असर पड़ा है?

बीमा उत्पादों की बिक्री पर थोरा असर जरूर पडा है। इस लिहाज से इस साल कारोबार की विकास दर कमजोर रह सकती है।

याद रखिये, मैं सिर्फ कारोबार के विकास की बात कर रहा हूं। हालांकि सच्चाई यह है कि पिछले साल की अपेक्षा इस साल बिक्री अधिक रही है।

हमारा मानना है कि इस साल केअंत तक अगर सकल घरेलू उत्पाद की रफ्तार अपने मौजूदा स्तर पर ही रहती है तो पिछले साल के 23 फीसदी की अपेक्षा इस साल कारोबार विकास घटकर 17 फीसदी के स्तर पर आ सकता है। काफी कुछ आनेवाले समय पर भी निर्भर करता है।

आप अगले साल भी बीमा कारोबार के स्थिर विकास की संभावनाएं बता रहे हैं। क्या ये माना जा सकता है कि वैश्विक मंदी से भारत का बीमा कारोबार अछूता है?

यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि वैश्विक मंदी से भारत का बीमा कारोबार पूरी तरह से सुरक्षित है क्योंकि मंदी से बीमा कारोबार पर भी असर पडा है।

कारोबार में गिरावट जरूर आई है लेकिन यह गिरावट अभी चिंताजनक स्तर तक नहीं पहुंची है। कारोबार केविकास को देखकर लगता है कि भारत में लोग ऐसे उत्पाद पर नजर रखे हुए हैं जो उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं।

मेरा मानना है कि इस लिहाज से लोग बीमा को एक बेहतर विकल्प केरूप में देख सकते हैं।

इस समय सॉल्वेंसी अनुपात को बढ़ाने की जरूरत है?

फिलहाल ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं दिखाई पड़ रही है। हालांकि इस अनुपात को घटाने का भी कोई सवाल खड़ा नहीं होता है।

बीमा नियमों में किसी तरह के बदलाव की उम्मीद की जा रही है?

अभी तक बीमा कारोबार में जिस तरह का विकास देखते को मिला है उस लिहाज से तो नियमों में किसी तरह केपरिवर्तन की वजह नहीं दिख रही है। जब कारोबार पहले से ही सही दिशा में हो रहा है तो फिर इसमें बदलाव लाने के बारे में सोचने की जरूरत नहीं हाती।

हालांकि अगर भविष्य की संभावनाओं को भी ध्यान में रखकर चलें तो कुछ परिवर्तनों की आवश्यकता हो सकती है। उदाहरण केलिए मौजूदा समय में विलय और अधिग्रहण की प्रक्रिया जिस तेजी से हो रही है उस लिहाज से कुछ आवश्यक दिशानिर्देश जारी करना चाहेंगे।

किस तरह के नए दिशानिर्देश आप लाने पर विचार कर रहे हैं?

मैं इस बारे में कोई खुलासा नहीं करना चाहूंगा लेकिन इतना जरूर कह सकता है कि अगले साल के शुरू में हमें नए दिशानिर्देश संबंधी प्रारूप को पेश करेंगे और इस पर खुलकर चर्चा होगी और उसके बाद ही कोई कदम उठाने के बार में फैसला किया जाएगा।

भारतीय बीमा कंपनियों केसामने मुख्य चुनौतियां क्या हैं?

सबसे बड़ी चुनौती बीमा क्षेत्र के, खासकर स्वास्थ्य बीमा उत्पाद के प्रसार की है।

ग्राहकों के बीमा संबंधी दावों को और धिक सुगम बनाने की जरूरत है। ये दो प्रमुख चुनौतियां है जिसे बीमा कंपनियों को निपटना है।

ग्राहकों को सही समय पर ये उत्पाद मिल सकें और वे इनका फायदा उठा सकें, इसी को हम फिलहाल अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मान रहे हैं।

First Published - December 11, 2008 | 8:55 PM IST

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