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रिलायंस इंडस्ट्रीज : पड़ी कमाई पर मार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 9:41 AM IST

खबर है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) ने अग्रिम कर के रुप में 440-460 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। लेकिन यह कंपनी द्वारा दिसंबर 2007 की तिमाही में चुकाए गए टैक्स से 8 से 10 फीसदी तक कम रहा।


यह पिछले साल रिलायंस पेट्रोलियम (आरपीएल) के शेयर बेचने से हुए 560 करोड़ रुपये के मुनाफे पर चुकाए गए कर को एडजस्ट करने के बाद का आंकड़ा है।

कंपनी का अग्रिम कर घट जाना आश्चर्यजनक बात नहीं है क्योंकि यह बात पहले ही कही जा रही थी कि आरआईएल को इस तिमाही में पिछले साल दिसंबर की तिमाही में अर्जित 3,882 करोड़ रुपये से कम मुनाफा होगा।

यही कारण है कि कंपनी का शेयर सोमवार को 1273 रुपये के स्तर पर शुरुआती गिरावट के बाद वापस चढ़ने में सफल रहा। इससे पहले जून और सितंबर की दोनों तिमाहियों में कंपनी का शुध्द मुनाफा पिछले वित्त वर्ष की इन्हीं तिमाहियों की तुलना में बढ़ा है।

हालांकि सितंबर की तिमाही में उसका मुनाफा 4,120 करोड रुपये पर लगभग फ्लैट ही रहा था। इसके बाद से अर्थव्यवस्था का माहौल लगातार कमजोर हुआ है।

इसके चलते विश्लेषकों ने कंपनी की आय कमजोर होने का अनुमान लगाया। कोटक सिक्योरिटीज ने अक्टूबर के अंत तक 2008-09 के लिए कंपनी का शुध्द मुनाफा 15,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया था।

पर अब उसने अपना अनुमान 15 फीसदी घटाकर 12,700 करोड़ रुपये कर दिया है। आरआईएल ने 2007-08 में 14,250 करोड़ रुपये का मुनाफा अर्जित किया था।

इस आधार पर कहा जा सकता है कि कंपनी के मुनाफे में 11 फीसदी की कमी आएगी। बाजार ने कमजोर मांग के लिए वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल के घटे दाम और मंदी को जिम्मेदार माना है।

आरआईएल के लिए सकल रिफाइनरी मॉर्जिन (जीआरएमए) घटकर 9.5 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। यह मार्जिन सितंबर की तिमाही में 13.4 डॉलर प्रति बैरल और जून की तिमाही में 15.7 डॉलर प्रति बैरल था।

अपनी रिफाइनरी के उत्कृष्ट विन्यास और परिवहन ईधन की अच्छी मांग के चलते पिछले पांच सालों में अधिकांश समय कंपनी का जीएमआर सिंगापुर कांप्लेक्स मार्जिन के सूचकांक से प्रीमियम पर था। 2008-09 में कंपनी की 30 लाख बैरल प्रतिदिन की वाली रिफाइनिंग क्षमता शुरु होने वाली है।

इससे परिवहन ईंधन की मांग पूरी हो सकेगी। आरआईएल का शेयर इस साल की शुरुआत में 3,216 रुपये के सर्वोच्च स्तर तक पहुंचा था।?लेकिन बाजार में आए भूचाल की वजह से यह 58 फीसदी नीचे आ चुका है।

सेसा गोवा : वक्त खराब

अक्टूबर 2008 के बाद से दुनिया की अधिकांश बड़ी स्टील कंपनियों ने अपने उत्पादन में कटौती की है। ऑर्सेलर मित्तल अपना उत्पादन 30 फीसदी कम कर चुकी है। टाटा स्टील की यूरोप स्थित कंपनी कोरस ने भी लगभग इतना ही उत्पादन घटाया है।

इसके चलते लौहअयस्क के निर्माताओं के सामने इसी राह पर जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा। नवंबर में रियो टिंटो समेत अधिकांश लौहअयस्क उत्पादको ने अपना उत्पादन 10 फीसदी घटाया है। यह कदम इस बात का संकेत है कि विदेशी बाजार में मांग किस कदर कमजोर पड़ती जा रही है।

इसकी कीमतें सारी कहानी खुद ही बयां कर देती हैं। सितंबर 2008 के बाद से स्पॉट लौहअयस्क की कीमतें चीन में 33 फीसदी गिरकर 519 डॉलर प्रतिटन हो गई हैं। चीन भारतीय लौह अयस्क का सबसे बड़ा आयातक है, पर उसने भी आयात कम कर दिया है।

मेरिल लिंच की रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2008 में साल दर साल के आधार पर यह आयात 30 फीसदी कम हुआ है और चीन के बंदरगाहों पर इन्वेंटरी बगैर उपयोग के पड़ी हुई हैं।

यह 3,776 करोड़ रुपये की कंपनी सेसा गोवा के लिए अच्छी खबर नहीं है जिसके कुल उत्पादन का 65-70 फीसदी निर्यात होता है और इसमें चीन को होने वाले निर्यात का हिस्सा 50 फीसदी है। कंपनी स्पॉट प्राइस पर ही लौहअयस्क की बिक्री करती है।

चीनी इस्पात मिलें भारतीय निर्यात की प्रमुख लिवाल हैं, लेकिन कमजोर उठान के कारण ये भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसके चलते वे कच्चे माल का स्टाक नहीं कर रही है। सेसा गोवा लौह अयस्क का निर्यात करने वाली देश की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की कंपनी है।

सितंबर 2008 तक पहली छमाही में उसकी बिक्री मजबूत कीमतों और चीन की मजबूत मांग के चलते 138 फीसदी बढ़कर 2,130 करोड़ रुपये पर पहुंच गई थी।

इसकेचलते इसका शुध्द मुनाफा भी 328 फीसदी बढ़ गया था। हालांकि इसमें दूसरे मदों के जरिये कंपनी को मिले तगड़े राजस्व का भी अच्छा खासा योगदान था।

अलबत्ता, साल के शेष समय में इसके राजस्व और मुनाफे में अधिक इजाफे की उम्मीद नहीं है। 2007-08 में इसके शुध्द मुनाफे में 138 फीसदी की वृध्दि हुई थी जिससे वह 1,550 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया था।

First Published : December 16, 2008 | 9:10 PM IST