सरकार सेबी से उन सभी कंपनियों की वित्तीय हालत की जांच करने को कहने का मन बना रही है जिन्होने अपने शेयरों के बायबैक का ऐलान तो किया लेकिन या तो उसकी प्रक्रिया ही शुरू नहीं की या फिर उसे टाल ही दिया।
सत्यम के घोटाले के बाद, इस मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि इस तरह की जांच से यह पता चल सकेगा कि बायबैक का ऐलान प्रमोटरों की इक्विटी होल्डिंग को कंसॉलिडेट करने के लिए किया गया था या फिर शेयरों की कीमत बढ़ाने के लिए यह केवल एक चाल थी ताकि संस्थागत निवेशकों को निकलने का मौका मिल सके।
यह जानकारी पिछले एक साल में की गई घोषणाओं से जुटाई जाएगी और बढ़ाया भी जा सकता है। इसके तहत इन कंपनियों के रिजर्व पोजीशन की जांच के अलावा उनके पास बायबैक की फंडिंग के लिए उपलब्धवास्तविक सरप्लस के बारे में भी जानकारी जुटाई जाएगी।
सेबी यह भी पता करेगी कि क्या कंपनियों ने इस बायबैक की फंडिंग के लिए कोई और प्रोवीजनिंग कर रखी थी। सूत्रों का कहना है कि कंपनियों की सही असेट पोजीशन जानने के लिए बुक वैल्यू और शेयर कीमत का अनुपात सही तरीका होगा।
2:1 या उससे ऊपर का कोई भी अनुपात संकेत देगा कि कंपनी की असेट पोजीशन कमजोर है। सेबी सत्यम का मामला भी देख रही है क्योकि कंपनी के बोर्ड ने यह जानकारी होते हुए भी कि उसके पास रिजर्व पोजीशन इस लायक नहीं है, कंपनी बायबैक पर विचार कर रही थी।
हालांकि उसने बायबैक का ऐलान तो नहीं किया लेकिन कई घरेलू और विदेशी संस्थागत निवेशक इस दौरान अपनी हिस्सेदारी बेचकर बाहर हो लिए।
साल 2008 में 58 कंपनियों ने बायबैक का ऐलान किया, इसमें से 18-20 कंपनियों ने या तो यह योजना टाल दी या फिर इस पर काम नहीं शुरू किया।
जिन कंपनियों ने अपनी बायबैक योजना टाली वो हैं बैन्को प्रॉडक्ट्स, भाग्यनगर इंडिया, पोलारिस सॉफ्टवेयर, जी एंटरटेनमेंट, एवरेस्ट कान्टो सिलिन्डर और सन टीवी नेटवर्क।
जिन्होने प्रक्रिया ही नहीं शुरू की वो हैं, जेमिनी कम्युनिकेशंस, जेन टेक्नोलॉजीस, गणेश हाउसिंग फाइनेंस, गोदावरी पावर, बिनानी इंड, आयशर मोटर्स, संदेश, डेक्कन क्रॉनिकल, एलकेपी फाइनेंस, गीतांजलि जेम्स और आईसीआई।
बायबैक टालने वाली ज्यादातर कंपनियों की शेयर कीमतों में बायबैक के ऐलान के बाद 8-30 फीसदी का उछाल देखा गया है।