इक्विटी बाजार में 21 अप्रैल से प्रारंभ हो रही शॉर्ट-सेलिंग की शुरुआत धीमी हो सकती है क्योंकि बीमा कंपनियां और बैंक जैसे प्रमुख घरेलू संस्थान इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं।
इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों के अनुसार बैंकों को इक्विटी की शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति नहीं है। सूत्र ने कहा, ‘बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट की धारा 6 और सिक्योरिटी कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट के अनुसार बैंकों को शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति नहीं है। बैंकों द्वारा शॉर्ट-सेलिंग की शुरुआत करने के लिए इन नियमों में संशोधन करने की जरुरत होगी और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस पक्ष में नहीं है।’
डिलीवरी आधारित शॉर्ट-सेलिंग को बढ़ावा देने के लिए इक्विटी के उधार देने और लेने के लिए बैंकों को आरबीआई के एक अलग प्रावधान की आवश्यकता होगी।भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) भी बीमा कंपनियों द्वारा इक्विटी की शॉर्ट-सेलिंग के पक्ष में नहीं है। इरडा का मत है कि बीमा कंपनियां इक्विटी बाजार में शॉर्ट-सेलिंग नहीं कर सकती क्योंकि यह अनुमानों पर आधारित होता है और अधिनियम पॉलिसी धारक के धन का इस तरीके से निवेश की अनुमति नहीं देता है।
हालांकि, इरडा बीमा कंपनियों के लिए इस प्रकार के दिशानिर्देश तैयार करने की प्रक्रिया में है जिसके अंतर्गत वे स्टॉक को उधार देकर और लेकर अपने सुस्त पड़े पोर्टफालियो से कुछ कमाई कर पाएंगे।प्रारंभिक चरण में म्युचुअल फंड, धनाढय लोग, ब्रोकर और खुदरा निवेशक ही शॉर्ट-सेलिंग के क्षेत्र के मुख्य खिलाड़ी होंगे।
एक बार शॉर्ट-सेलिंग का परिचालन शुरु होने के बाद स्टॉक को उधार देने और लेने की प्रणाली से स्टॉक की डिलीवरी में सुविधा होगी। इक्विटी की शॉर्ट सेलिंग का तात्पर्य बाजार के प्रतिभागियों द्वारा की जाने वाली शेयरों की उस बिक्री से है जिसमें उनके पास वास्तविक शेयर नहीं होते हैं। हालांकि, सौदा तभी संपूर्ण होता है जब वास्तविक शेयरों की सुपुर्दगी कर दी जाए।
साथ ही, संस्थागत निवेशकों के मार्जिन बनाए रखने संबंधी उलझनों को स्पष्ट करले के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने बाजार के प्रतिभागियों को सिक्योंरिटी कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट के तहत प्रमाणित प्रतिभूतियों के रुप में अपना पूरा मार्जिन बनाए रखने की अनुमति दी गई है।
इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि हालांकि परिपत्र में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को शॉर्ट-सेलिंग कारोबार के लिए सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखने (कोलैटरल) की अनुमति दी गई है, लेकिन यह फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के अंतर्गत स्वीकृति योग्य गतिविधि नहीं थी। इस प्रकार एफआईआई को अलग से आरबीआई के पास सरकारी प्रतिभूतियां गिरवी रख कर इसमें शामिल होने को कहा गया है।
शॉर्ट-सर्किट
बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट की धारा 6 और सिक्योरिटी कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट के अनुसार बैंकों को शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति नहीं है।
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा)भी बीमा कंपनियों द्वारा इक्विटी की शॉर्ट-सेलिंग के पक्ष में नहीं है।