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शेयर बाजार तो उबर रहा है लेकिन बिगड़ते आर्थिक आंकड़ों का क्या होगा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:40 AM IST

बाजार मार्च के निचले स्तरों से तो उबर आया है लेकिन जहां तक मैक्रो इकोनॉमिक माहौल का सवाल है, यह और बिगडा है। असली चिंता बाजार नहीं, आर्थिक आंकड़े हैं।


इन आंकड़ों की किसी ने उम्मीद नहीं की थी। यह तो जाहिर हो ही रहा था कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ रही है लेकिन यह धीमापन कितना ज्यादा है, इसके अंदाज ने सभी को चौंका दिया है।

मार्च में औद्योगिक उत्पादन का इंडेक्स केवल तीन फीसदी की दर से बढ़ा है और यह केवल तीन फीसदी रहा है जो पिछले छह सालों में सबसे निचला स्तर है। इसकी बड़ी वजह रही है मैन्यूफैक्चिरिंग सेक्टर का धीमापन जो गिरकर 2.9 फीसदी पर आ गया।

इस साल भी औद्योगिक गतिविधियों में धीमापन बने रहने के आसार हैं और इसकी वजह मॉनेटरी पॉलिसी में लिए गए कदम यानी इस क्षेत्र में लिए गये कड़े फैसले और विदेशी बाजारों से मांग में कमी भी इसकी एक वजह रही  है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक महंगाई की दर बढ़कर 7.8 फीसदी पर पहुंच गई है और आसार यही हैं कि इसका दबाव अभी और बढ़ेगा।

ऐसे में रिजर्व बैंक के पास इसे काबू में करने के लिए भी सीमित उपाय हैं। इसके अलावा पिछले एक महीने में रुपए की गिरती कीमतों ने भी चिंता में डाला है। इस दौरान रुपया करीब छह फीसदी गिरकर 43 रुपए के करीब जा पहुंचा है, इससे आयात महंगा होने के साथ है महंगाई की दर पर भी इसका खासा असर पड़ना है।

इसके अलावा तेल की कीमतें काफी ऊपर हैं और फिलहाल ये 125 डॉलर प्रति बैरल पर हैं। इसका भी सरकार और रिजर्व बैंक पर भारी असर है और उन्हें महंगाई से लड़ने के लिए अभी और कदम उठाने होंगे। बैंकों ने भी लिक्विडी के हालत ठीक होते हुए भी ब्याज दरों को फिलहाल नहीं छेड़ना ही उचित समझा है। ब्याज दरें काफी ज्यादा होने से ग्राहकों की कार, दुपहिया और दूसरे कंज्यूमर सामान की खरीद भी काफी घट गयी है।

अगर मानसून सामान्य रहता है तो अच्छी फसल की उम्मीद बनती है और किसानों की कमाई में इजाफा आ सकता है और तब बाजार में मांग बनी रह सकती है। पिछले बजट में सीमा शुल्क की दर घटा कर दो फीसदी कर दिए जाने से कई कंपनियों ने हो सकता है इस छूट का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाया हो लेकिन खाने के सामानों पर महंगाई की मार से इसकी मांग बढ़ने की संभावना कम ही है।

जहां तक भारतीय बाजारों का सवाल है, यह मार्च 17, 2008  के 14,809 के स्तर से करीब 2626 अंक सुधर कर फिलहाल 17435 अंकों पर कारोबार कर रहा है। हालांकि विदेशी संस्थागत निवेशक अब भी बाजार की मौजूदा हालत से संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं।

जनवरी 2008 से अब तक यह विदेशी निवेशक बाजार मे करीब 11,000 करोड़ के शुध्द बिकवाल ही रहे हैं जबकि पिछले साल इस दौरान इन निवेशकों ने 13000 करोड़ से ज्यादा की खरीदारी की थी। लेकिन घरेलू संस्थागत निवेशकों ने जरूर इस दौरान खरीदारी की है। उन्होने करीब 3000 करोड़ की खरीदारी की है जबकि पिछले साल इस दौरान घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 1000 करोड़ की बिकवाली की थी।

अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ ही भारतीय बाजार मार्च के निचले स्तरों से काफी कुछ उबर आए हैं। आगे भी घरेलू बाजार अंतरराष्ट्रीय बाजारों से ही आगे का रुख तय करेंगे और फिलहाल विदेशी बाजारों से मिलेजुले संकेत ही मिल रहे हैं। हालांकि जोखिम ने लेने का माहौल कुछ सुधरा जरूर है। लेकिन अमेरिकी सब प्राइम संकट के मद्देनजर हुए घाटे से बैंकों ने अपने कर्ज देने की रफ्तार घटा दी है, जबकि ब्याज दरें पहले लगातार घटने की वजह से सिस्टम में लिक्विडिटी की कोई कमी नहीं है।

दूसरी ओर डॉलर की कमजोरी और उधरते हुए बाजारों से मांग में तेजी आने से कमोडिटी की कीमतों में इजाफा आ गया है और इससे इन बाजारो में महंगाई की दर भी काफी ऊपर पहुंच गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थिरता के संकेत आने से विदेशों से होने वाले कैपिटल इनफ्लो में भी काफी सुधार आ चुका है। लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था से स्थिरता के संकेत मिलने के साथ साथ यूरोप और जापान जैसे बाजारों में मंदी के संकेत दिखने शुरू हो गए हैं।

जानकारों का मानना है कि अब बाजार जो भारी निराशा की गिरफ्त में था, धीरे धीरे अब राहत महसूस कर रहा है और लोगों को ऐसा लग रहा है कि बुरा वक्त अब खत्म हो  रहा है, डॉलर फिलहाल अपने निचले स्तर पर हो सकता है जबकि कमोडिटी की मौजूदा कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर हो सकती हैं और अगर ऐसा है तो बाजार का बॉटम भी यही हो सकता है।

First Published : May 20, 2008 | 12:12 AM IST