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समझें डेट पोर्टफोलियो को

Last Updated- December 08, 2022 | 6:04 AM IST

ज्यादतर निवेशक इक्विटी आधारित म्युचुअल फंड योजनाओं वाले पोर्टफोलियो पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि यह सीधे सीधे शेयर बाजार के प्रदर्शन से जुड़ा होता है।


जहां तक डेट फंडों का सवाल है, इन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि माना जाता है कि ये फिक्स्ड रेट वाली योजनाएं हैं जो डिफाल्ट नहीं हो  सकतीं।

ऐसे कई कारण हैं जिनके चलते डेट फंड पोर्टफोलियो को समझना इक्विटी की तुलना में अधिक मुश्किल होता है।

लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि निवेशक इसके बारे में ठीक तरह से जान लें क्योंकि इससे उन्हें सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

कैसा बने पोर्टफोलियो  : संभवत: यह सबसे अहम बात है। कई बार ऐसा होता है  जब पूरे पोर्टफोलियो में सिर्फ एक या दो योजनाएं ही होती हैं। ऐसा उन स्थितियों में होता है जब योजना का कोष बहुत बड़ा नहीं होता और कुल 30-50 करोड़ का ही होता है।

इसी के चलते कुछ ही योजनाओं में निवेश किया जाता है। इससे यह साफ है कि इस तरह के फंडों में जोखिम अधिक है। इन प्रतिभूतियों में थोड़ा भी परिवर्तन होता है तो फंड से मिलने वाला रिटर्न तेजी से घट-बढ़ सकता है। इसी के साथ तरलता अतिरिक्त समस्या है।

क्योंकि बड़ी मात्रा में अपनी होल्डिंग की बिकवाली में अक्सर खासी मुश्किल होती है।

रेटिंग और होल्डिंग: पोर्टफोलियो में किस तरह की योजनाओं का चयन किया गया है, इसका भी बेहद अधिक महत्व है। यह निवेशक के लिए क्रेडिट जोखिम का दायरा तय करेगा। डेट पोर्टफोलियो में कई श्रेणियां हैं।

इनमें बैंक की फिक्स्ड डिपाजिट, सर्टिफिकेट्स ऑफ डिपाजिट, कमर्शियल पेपर, ट्रेजरी बिल, पास थ्रू सर्टिफिकेट्स, सरकारी प्रतिभूतियां और अन्य शामिल हैं।

इन सभी पेपर में अलग तरह का जोखिम होता है। फंड मैनेजर सामान्य तौर पर जोखिम और सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने का काम करता है।

ऐसा इसलिए कि कुछ पेपर में ब्याज की दरें अधिक हैं। लिहाजा, उनमें जोखिम भी अधिक होता है। सरकारी प्रतिभूतियां सुरक्षित हैं पर उनमें रिटर्न बेहद कम है। सामान्य तौर पर रिस्क रेटिंग क्रिसिल, आईसीआरए और फिच जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी जाती है।

यहां ऊंची रेटिंग का अर्थ है कि उनके रिटर्न सुरक्षित हैं, लेकिन अगर पूरा पोर्टफोलियो सेफ पेपर में है तो इससे रिटर्न प्रभावित होंगे। निवेशक को इन दोनों में ठीक ठाक संतुलन रखना चाहिए।

योजनाओं के प्रकार: पोर्टफोलियो में शामिल सभी प्रकार की योजनाओं का उनके फीचर के आधार पर विश्लेषण किया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए अगर यह योजना कार्पोरेट पेपर है तो इससे मिलने वाला रिटर्न दूसरी सुरक्षित योजनाओं से अधिक होगा और जब समय ठीक होगा तो  इसका पोर्टफोलियो रिटर्न पर अच्छा असर पड़ेगा।

ऐसी भी स्थिति होती है जहां पोर्टफोलियो में शामिल इंस्ट्रमेंटों की परिसंपत्ति और दायित्व के बीच समानता नहीं होती और ऐसे में एक शॉर्ट टर्म स्कीम एक लांग टर्म पेपर भी हो सकती है।

इस तरह की स्थिति तब होती है जब किसी फंड हाउस ने तीन माह की अवधि वाले शॉर्ट टर्म की उधारी लेकर उसे लंबी अवधि के लिए कर्ज में दे दिया हो।

इस मामले में बेहतर रिटर्न की संभावना तो बनती है लेकिन इसमें जोखिम भी ज्यादा है। इस तरह के जोखिम के बारे में जानकारी हासिल करना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमने हाल  में देखा है कि इस तरह की स्कीमों में रीडंप्शन का भारी दबाव है।

इसके चलते फंड हाउसों के सामने बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है क्योंकि उनके पास लंबी अवधि के पेपर हैं।

उन्हें अपने क्लाइंटों का पैसा लौटाने के लिए ये पेपर डिस्काउंट पर बाजार में बेचने पड़ रहे हैं। इसका असर यह हो रहा है कि उनके वर्तमान ग्राहकों की एनएवी में गिरावट हो रही है।

परिपक्वता अवधि: पोर्टफोलियो में शामिल इंस्ट्रूमेंट्स ककी परिपक्वता अवधि एक अहम बात है। पहली अहम बात रिटर्न है। अलग-अलग मेच्योरिटी पीरियड वाली योजनाओं से मिलने वाला रिटर्न अलग-अलग होता है।

यह योजना और समयावधि पर निर्भर करता है। इसलिए अगर ब्याज दर में कमी आने की संभावना हो तो लंबी अवधि में परिपक्वता वाला पोर्टफोलियो ज्यादा रिटर्न देगा।

अगर ब्याज दर बढ़ने की संभावना हो तो उन निवेशकों को फायदा होगा जिनके पोर्टफोलियो में छोटी अवधि वाली योजनाएं हैं।

(लेखक प्रमाणित वित्तीय योजनाकार हैं)

First Published - November 30, 2008 | 9:43 PM IST

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