sector-wise investment strategy
भारत के शेयर बाजार में कोविड के बाद शुरू हुआ तेजी का दौर यानी बुल रन अब खत्म हो रहा है। Nuvama Institutional Equities की रिपोर्ट के मुताबिक, हर बुल या बेयर मार्केट लगभग पांच साल में अपने चरम पर पहुंचता है और भारतीय बाजार का मौजूदा बुल रन मार्च 2025 में पांच साल का हो गया है। अब एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाजार को आगे और ऊपर ले जाने वाले कारक (levers) लगभग खत्म हो चुके हैं। बढ़ती वैल्यूएशन, कमजोर मुनाफा और मांग की सुस्ती के कारण अब निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है।
ब्रोकरेज के अनुसार, कोविड के बाद कंपनियों का मुनाफा उनकी आमदनी (Revenue) से ज्यादा तेजी से बढ़ा था, लेकिन FY25 तक आते-आते दोनों एक जैसे स्तर पर आ गए हैं। मार्च 2025 की तिमाही में मुनाफे की ग्रोथ 10% से भी नीचे रही, और पिछले आठ तिमाहियों से यही धीमा रुझान बना हुआ है। FY26 में भी यही कमजोरी बनी रहने की आशंका है क्योंकि अर्थव्यवस्था में “पैसा है, लेकिन मनी मल्टीप्लायर नहीं है”, यानी जो चीज़ें पैसे को आगे बढ़ा सकती थीं- जैसे मज़बूत एक्सपोर्ट, बड़े पैमाने पर खर्च, या वेतन में बढ़ोतरी। वो सब नहीं हो रही हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का निर्यात फिलहाल ट्रेड वॉर, जियोपॉलिटिकल टेंशन और चीन की डंपिंग नीति के कारण दबाव में है। कंपनियां अपने खर्च (Capex और वेतन) में कटौती कर रही हैं ताकि फ्री कैश फ्लो बढ़े। सरकार कर्ज लेने से बच रही है और घरेलू आमदनी भी कमजोर बनी हुई है, जिससे लोगों की खरीदने की ताकत प्रभावित हुई है। इन सभी कारणों से देश में मांग को बढ़ावा देने वाला कोई ठोस इंजन फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा।
Nuvama का कहना है कि भारत का शेयर बाजार अब भी काफी महंगा है। Nifty500 का Price-to-Book रेशियो 3.9x है और मार्केट कैप बनाम जीडीपी रेशियो 132% है, जो लंबे समय के औसत से कहीं ज्यादा है। इसका मतलब है कि अगले पांच साल में शेयर बाजार से मिलने वाला रिटर्न कम हो सकता है। बीते एक साल में कंपनियों की आमदनी के अनुमान लगातार घटे हैं, लेकिन शेयरों की कीमतें अब भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं — जो एक समय के बाद टिक नहीं पाएंगी।
2024 में जब भारत का वैल्यूएशन प्रीमियम बहुत ऊंचा था, तब उसकी कमाई भी बाकी देशों से बेहतर थी। लेकिन अब यह फर्क भी घट चुका है। अगर दुनिया भर में अनिश्चितता बढ़ती है, तो FII (विदेशी निवेशक) भारत से पैसा निकाल सकते हैं, जिससे बाजार पर दबाव बढ़ेगा।
ब्रोकरेज का कहना है कि कोविड के बाद जो “पेंट-अप डिमांड” थी, वह अब पूरी हो चुकी है। साथ ही, सरकार का फोकस अब फिस्कल कंसोलिडेशन पर है, ना कि खर्च बढ़ाने पर। रिजर्व बैंक ने जो भी रेट कट्स दिए, वो पहले ही हो चुके हैं, आगे की संभावना कम है। इसलिए अब डिमांड-बेस्ड ग्रोथ की उम्मीद भी कम हो गई है। ऐसे में सेक्टर-लेवल पर कोई लीडरशिप दिखना मुश्किल है। निवेशकों को अब नीचे से कंपनियों की गुणवत्ता देखकर (Bottom-up approach) ही निवेश के मौके तलाशने होंगे।
Nuvama ने अपनी रेटिंग में जिन सेक्टर्स को प्राथमिकता दी है, वे हैं:
Overweight (ज़्यादा भरोसा): FMCG, सीमेंट, केमिकल्स, फार्मा और टेलीकॉम
Neutral (संतुलित नजरिया): मेटल्स
Underweight (कम भरोसा): रियल एस्टेट, पावर और IT सेक्टर
Private Banks: FY25 के स्टार, लेकिन क्रेडिट ग्रोथ है अहम
FY25 में प्राइवेट बैंकों ने अच्छा प्रदर्शन किया है और उनके वैल्यूएशन भी अब भी सस्ते हैं। लेकिन इस सेक्टर की चमक तभी बरकरार रह पाएगी जब क्रेडिट ग्रोथ (लोन देने की रफ्तार) तेज़ हो। फिलहाल यह धीमी है और अगर यही ट्रेंड चलता रहा, तो इसका असर शेयर रिटर्न पर भी पड़ सकता है।
डिस्क्लेमर: यह खबर ब्रोकरेज की रिपोर्ट के आधार पर है, निवेश संबंधित फैसले लेने से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।