Categories: बाजार

इक्विटी फंडों के लिए सबसे बुरी रही यह तिमाही

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 10:41 PM IST

भारतीय म्युचुअल फंडों के लिए 31 मार्च 2008 को समाप्त हुई तिमाही इस दशक में सबसे बुरी तिमाही रही।


वैल्यू रिसर्च द्वारा जारी की गई फंड प्रदर्शन की तिमाही समीक्षा के अनुसार लगभग सभी वर्गों के इक्विटी फंडों के औसत प्रतिफल के नजरिये से जनवरी 2001 के बाद की यह सबसे बुरी तिमाही रही है।


‘विशाखित इक्विटी’ वर्ग के फंडों, जिनके फंडों की संख्या सबसे अधिक (194) है और जिसमें निवेशकों की दिलचस्पी सर्वाधिक है, में औसत 28.3 प्रतिशत की गिरावट आई। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2001 की प्रथम तिमाही में इन फंडों को 16.9 प्रतिशत का नुकसान हुआ था।


इस वर्ग के व्यक्तिगत फंडों की बात करें तो इस जनवरी से मार्च महीने के बीच इन फंडों ने 16.2 प्रतिशत से लेकर 40.6 प्रतिशत तक का नुकसान उठाया है। इसी अवधि के दौरान बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी दोनों में 22.9 प्रतिशत की गिरावट आई।


इक्विटी फंडों को वैसे तो घाटा हुआ ही, बेंचमार्क सूचकांकों की तुलना में भी उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। अध्ययन किए गए 277 इक्विटी फंडों (जिसमें विशाखित वर्ग के अलावा अन्य वर्ग भी शामिल हैं) में से केवल 35 फंडों ने ही अपने बेंचमार्क सूचकांक की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया शेष 242 फंड ऐसा प्रदर्शन करने में असफल रहे।


मजे की बात यह है कि नि 35 फंडों का प्रदर्शन बेंचमार्क की तुलना में बेहतर रहा उनमें से केवल सात फंडों ने बेंचमार्क से केवल पांच प्रतिशत बेहतर प्रतिफल दिया है। दूसरी तरफ देखें तो तकरीबन 142 फंडों ने बेंचमार्क के पांच प्रतिशत से अधिक का खराब पदर्शन किया है।’विशाखित इक्विटी’ वर्ग के फंड ने चार तिमाही में औसतन 21.4 प्रतिशत बढ़ा, इनमें व्यक्तिगत योजनाओं का प्रतिफल  53.7 प्रतिशत सकारात्मक से लेकर 7.9 प्रतिशत ऋणात्मक तक का रहा है।


एक तरफ जहां इक्विटी फंडों गहरी मुसीबत में हैं वहीं दूसरी ओर ऋण फंडों का शांत संसार भी निवेशकों के रात की नींद उड़ा रहा है। ऋण फंडों का प्रतिफल पूरी तिमाही में सामान्य दिखता रहा लेकिन मार्च का महीना जैसे झटके लेकर आया।मुद्रास्फीति की लगातार बढ़ रही संख्या और ब्याज दरों के संदर्भ में अनिश्चितता से गिल्ट फंडों (मध्यम और लंबी अवधि) के वर्ग के औसत प्रतिफल में मार्च महीने में 1.1 प्रतिशत की गिरावट आई।


अल्पावधि के गिल्ट फंड, जिनके बारे में माना जाता है कि इन पर ब्याज दरों में परिवर्तन होने से फर्क नहीं पड़ता है, के लिए भी यह महीना खराब रहा। इस महीने इन फंडों में केवल 0.1 प्रतिशत की बढ़त हुई और 18 फंडों में से छह फंडों को घाटा झेलना पड़ा।


फंड वर्गों में केवल गोल्ड ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) ही ऐसा रहा जिसके निवेशक खुशियां मना रहे थे। इस फंड के तहत सीधे तौर पर सोना में निवेश किया जाता है। इस तिमाही में इन फंडों में 13 प्रतिशत की बढ़त हुई। इनके लाभ कुछ और बढ़े होते अगर मार्च महीने में इन्हें 3.2 प्रतिशत का गिरावट न देखना पड़ा होता।


गोल्ड फंडों की चमक


गोल्ड ईटीएफ वर्ग ने एक साल में (दो अप्रैल 2008 के अनुसार) 22 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है। वह भी तब जब वैश्विक इक्विटी बाजार उठा पटक के दौर से गुजर रहा था।


गोल्ड बेंचमार्क एक्सचेंज ट्रेडेड फंड जिसे फरवरी 2007 में लॉन्च किया गया था, ने पिछले एक वर्ष में 22 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है। एक महीने बाद लॉन्च किया गया यूटीआई गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड ने एक साल में 17 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है।


कैलेंडर वर्ष 2008 की पहली तिमाही में, जो इक्विटी फंडों के लिए एक दशक में सबसे बुरी तिमाही रही है, यूटीआई गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड, गोल्ड बेंचमार्क एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्र कोटक गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड और रिलायंस गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों ने अपने निवेशकों को 13.04 प्रतिशत का प्रतिफल दिया।


इस पीले जिन्स की कीमतों में पिछले कुछ महीने से हो रही बढ़ोतरी से गोल्ड ईटीएफ के प्रतिफलों का अच्छा होना स्वाभाविक है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने के मूल्य में काफी वृध्दि हुई है। पिछले वर्ष जून महीने में सोने की प्रति आउंस कीमत 650 डॉलर थी, 1000 डॉलर का स्तर छूने के बाद यह 900 प्रति आउंस तक पहुंचा है।


गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों का कोष 120 करोड़ रुपये (जून 2007) से बढ़ कर 160 करोड़ रुपये हो गया (मार्च 2008)। इसी अवधि में यूटीआई गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड की शुध्द परिसंपत्ति भी 135 करोड़ रुपये बढ़ कर 161 करोड़ रुपये हो गई।


सितंबर 2007 में सूचीबध्द हुए डीएसपीएमएल वर्ल्ड गोल्ड फंड भी लांच होने से अब तक 42 प्रतिशत का लाभ दे चुका है। इसी अवधि में एफटीएसई गोल्ड माइन्स सूचकांक ने 11 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है।


इस वर्ष (दो अप्रैल 2008 तक) यह फंड जो इक्विटी स्पेशियालिटी वर्ग का एक हिस्सा है ने लगभग 5.5 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है जबकि समान अवधि के दौरान इस वर्ग को 18 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति जो सितंबर 2007 में 692 करोड़ रुपये थी, मार्च 2008 में लगभग तिगुनी होकर 1,600 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। अमेरिकी डॉलर की कमजोरी और तेल की कीमतों में हुई बेतहाशा वृध्दि ने भी सोने को एक आकर्षक निवेश मार्ग बनने में मदद की है।कभी इक्विटी की तरफ अधिक झुकाव रखने वाले म्युचुअल फंड अब अपना निवेश नकदी में बढ़ा रहे हैं।

First Published : April 20, 2008 | 11:11 PM IST