अब जब त्योहारी खरीदारी का मौसम शुरू हो गया है, तो कई ई-टेलर्स ग्राहकों को नो कॉस्ट-EMI पर सामान ऑनलाइन खरीदने का विकल्प दे रहे हैं – इसके लिए अभी भुगतान करने के बजाय, आपको छह महीने में पूरा भुगतान करना होगा।
क्या है नो-कॉस्ट EMI?
नो-कॉस्ट EMI ऑफर उपभोक्ताओं को अतिरिक्त ब्याज या फीस का पेमेंट किए बिना किस्तों में अलग-अलग प्रोडक्ट खरीदने की सहूलियत देता है। इसका मतलब यह है कि आप केवल प्रोडक्ट की असल कीमत का पेमेंट करेंगे, जिसे केवल EMI में बांटा जाएगा।
कई बैंक अलग-अलग ऑप्शन में नो-कॉस्ट EMI की सुविधा देते हैं। कुछ बैंक कुछ प्रोडक्ट पर जीरो-डाउन पेमेंट प्लान भी प्रदान करते हैं, जहां आपको किसी भी राशि का शुरू में पेमेंट करने की जरूरत नहीं होती है और आप आसानी से मासिक किस्तों में अपना पेमेंट कर सकते हैं, जबकि कुछ प्रोडक्ट में डाउन पेमेंट के रूप में न्यूनतम रकम देनी होती है, और बाकी रकम का भुगतान EMI में करना होता है।
पैसाबाज़ार के क्रेडिट कार्ड प्रमुख रोहित छिब्बर ने कहा, “नो-कॉस्ट EMI में ब्याज दर या प्रोसेसिंग फीस शामिल नहीं होती। रेगुलर EMI पेमेंट से उलट जहां ब्याज और प्रोसेसिंग फीस ली जाती है, नो-कॉस्ट EMI के मामले में, आपको उतना ही पैसा EMI के रूप में चुकाना होता है जितने का प्रोडक्ट होता है।”
“ब्याज फीस या तो विक्रेता या व्यापारी द्वारा वहन की जाती है, जिससे उपभोक्ता पर कोई ब्याज बोझ नहीं पड़ता है। कभी-कभी, ब्याज या प्रोसेसिंग फीस को छूट या कैशबैक के रूप में भी ए़डजस्ट किया जाता है, ताकि प्रोडक्ट की वास्तविक कीमत EMI मूल्य के बराबर हो सके।”
पैसाबाज़ार नीचे दिए गए उदाहरण से समझाता है:
व्यापारी और जारीकर्ता एग्रीमेंट के अनुसार नो-कॉस्ट EMI ऑफर आम तौर पर 3, 6 या 9 महीने की अवधि के लिए बढ़ाए जाते हैं। ये समय-समय पर और जारीकर्ताओं, प्रोडक्ट और मर्चेंट के हिसाब से अलग हो सकते हैं।
बैंकबाजार के सीईओ आदिल शेट्टी ने कहा, “नो-कॉस्ट EMI इस प्रकार की EMI है जिसे उपभोक्ता को “ब्याज-मुक्त” दिखाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका मतलब है कि आपसे लोन पर ब्याज नहीं लिया जाएगा। ब्याज कंपोनेंट आमतौर पर विक्रेता द्वारा वहन किया जाता है। लाभ यह है कि आप किस्तों में प्रोडक्ट की कुल कीमत भुगतान करते हैं, बिना किसी अतिरिक्त ब्याज के”
नो कॉस्ट EMI लेते समय Hidden चार्जेस पर रखें ध्यान
हालांकि, ऐसा बिल्कुल नहीं है कि नो-कॉस्ट EMI हमेशा फायदेमंद रहती हैं! कई बैंक नो-कॉस्ट EMI के लिए प्रोसेसिंग फीस लेते हैं। इससे बैंक ब्याज को प्रोसेसिंग फीस के रूप में वसूल कर सकता है। इसके अलावा, नो-कॉस्ट EMI का विकल्प चुनते समय, आपको उस प्रोडक्ट पर दी जाने वाली छूट नहीं मिलती है, जिसका आप अलग से लाभ उठा सकते थे। उदाहरण के लिए, यदि कोई प्रोडक्ट सभी ग्राहकों को डिस्काउंट रेट पर ऑफर किया जाता है, तो नो-कॉस्ट EMI चाहने वालों को यह अपनी रेगुलर कीमत पर उपलब्ध होगा।
नो कॉस्ट EMI के बारे में क्या कहता है RBI
2013 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने नो-कॉस्ट EMI स्कीम को लागू करते हुए नोटिफिकेशन जारी किया था। इसका 2013 का सर्कुलर बताता है कि जीरो प्रतिशत ब्याज या नो-कॉस्ट EMI जैसी कोई चीज ही नहीं है।
RBI ने कहा था, “क्रेडिट कार्ड बकाया पर दी जाने वाली जीरो प्रतिशत EMI स्कीम में, ब्याज एलिमेंट को अक्सर छुपाया जाता है और प्रोसेसिंग फीस के रूप में ग्राहक से ब्याज की भरपाई की जाती है। इसी तरह, कुछ बैंक लोन लेन में होने वाले खर्च (अर्थात डीएसए कमीशन) को इसमें जोड़ देते हैं।”
“चूंकि जीरो प्रतिशत ब्याज जैसी कोई चीज ही नहीं होती। सही बात ये है कि प्रोसेसिंग फीस और ब्याज दरें सभी प्रोडक्ट और सेगमेंट के लिए एक जैसी हों, भले ही ग्राहक ने लोन के लिए कैसे भी आवेदन किया हो। ये स्कीम केवल कमजोर ग्राहकों को लुभाती हैं और उनका शोषण करती हैं। एक ही प्रोडक्ट के लिए अलग-अलग ब्याज दरों का एकमात्र कारण ग्राहक की रिस्क रेटिंग है, जो आमतौर पर रिटेल प्रोडक्ट में कोई कारक नहीं है।”
सकीरथी एस आईएसएमई, बैंगलोर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, उनका मानना है कि ये ऑफर विक्रेताओं और उनके साथ जुड़ने वाले वित्तीय संस्थान द्वारा विकसित एक मार्केटिंग हथकंडा है। जीरो-कॉस्ट EMI में कभी भी ऐसा नहीं होता कि आपको ब्याज का पैसा नहीं चुकाना बल्कि इसका गणित अलग है। यह दो तरह से काम करता है:
छूट = ब्याज
विक्रय मूल्य = वास्तविक मूल्य + ब्याज लागत
नो-कॉस्ट ईएमआई के पहले तरीके में ग्राहक ब्याज चुकाने के लिए अपनी छूट छोड़ देते हैं। दूसरी विधि में, ब्याज को कवर करने के लिए प्रोसेसिंग फीस द्वारा बिक्री मूल्य में वृद्धि की जाती है, इसलिए प्रोडक्ट को छूट के रूप में नहीं दिखाया जाता है।
उदाहरण के लिए, आप मौजूदा Amazon सेल के दौरान 30,000 रुपये का स्मार्टफोन खरीदना चाहते हैं। यदि आप तीन महीने की EMI स्कीम चुनने का फैसला लेते हैं जहां ब्याज 15 प्रतिशत है, तो आपको ब्याज राशि के रूप में 4,500 रुपये का भुगतान करना होगा। लेकिन अगर आप पूरी रकम पहले चुका देंगे तो आप इसे 25,500 रुपये में खरीद सकते हैं। लेकिन अगर आप नो-कॉस्ट EMI के जरिए भुगतान करना चुनते हैं तो आपको पूरी कीमत यानी 30,000 रुपये चुकाने होंगे। इस मामले में, ब्याज की राशि फाइनेंसर बैंक को और बाकी राशि रिटेल विक्रेता को दी जाती है।
नाम न छापने की शर्त पर विशेषज्ञों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि नो-कॉस्ट EMI स्कीम में, ब्याज राशि को प्रोडक्ट की कीमत में शामिल किया जाता है। इसलिए, भले ही नो-कॉस्ट EMI एक आकर्षक स्कीम है, बैंक आपसे 500 रुपये तक की प्रोसेसिंग फीस ले सकता है। जिसका उल्लेख ऑफर में नहीं है और हो सकता है कि आपको इसकी जानकारी भी न हो। याद रखें कि “नो-कॉस्ट” 500 लोन अभी भी एक लोन है।