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दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं इस समय गंभीर अनिश्चितता के दौर से गुजर रही हैं। भू-आर्थिक विभाजन बढ़ रहा है, वैश्विक कर्ज ऊंचाई पर है और नई तकनीकों की वजह से वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। इन हालातों में भारत एक मजबूत और स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण लिखती हैं कि यह स्थिति वर्ष 2013 से बिलकुल अलग है, जब भारत को ‘फ्रैजाइल फाइव’ देशों की सूची में शामिल किया गया था। उस समय देश को कम आर्थिक विकास, ऊंची महंगाई, भारी चालू खाता घाटा और कमजोर सरकारी वित्तीय स्थिति जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा था।
बीते 11 वर्षों में भारत ने इन सभी चुनौतियों पर काबू पाया है। अब भारत दोहरे घाटे (ट्विन डेफिसिट) वाली अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि ‘फाइव बैलेंस शीट एडवांटेज’ वाला देश बन गया है। यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार किए गए नीतिगत सुधारों और दूरदर्शी फैसलों का नतीजा है।
2014 में सत्ता में आने के बाद सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता आर्थिक विकास को फिर से गति देना था। इसके लिए कई संरचनात्मक सुधार लागू किए गए, जिनमें जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), आईबीसी (दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता), रेरा (रियल एस्टेट विनियमन कानून) जैसे कदम शामिल हैं। कोविड महामारी के दौरान उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना और आपातकालीन ऋण गारंटी योजना (ECLGS) के ज़रिए छोटे उद्योगों को संकट से उबरने में मदद दी गई।
इसी दौरान बुनियादी ढांचे के निर्माण पर भी खास ध्यान दिया गया। 2013-14 में पूंजीगत व्यय जीडीपी का सिर्फ 1.7% था, जो 2024-25 में बढ़कर 3.2% हो गया है। यदि इसमें पूंजीगत अनुदान को भी शामिल करें तो यह आंकड़ा 4.1% तक पहुंचता है। बीते 11 वर्षों में देश में 88 नए हवाईअड्डों की शुरुआत हुई, 31,000 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई गई, मेट्रो नेटवर्क चार गुना बढ़ाया गया, बंदरगाहों की क्षमता दोगुनी हुई और राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में 60% की बढ़ोतरी हुई। इन प्रयासों से लॉजिस्टिक्स लागत घटी है और आपूर्ति बाधाएं दूर हुई हैं, जिससे अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक दक्षता बढ़ी है।
सरकार ने आम आदमी को भी केंद्र में रखा। आर्थिक विकास के साथ-साथ जनकल्याण योजनाओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया। जनधन योजना के तहत 55 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए, 15 करोड़ घरों को नल से जल उपलब्ध कराया गया, 4 करोड़ परिवारों को मकान दिए गए, 41 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा कवर मिला और उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ रसोई गैस कनेक्शन दिए गए। इन पहलों से समाज के वंचित तबकों को मुख्यधारा में लाने में मदद मिली है।
इन नीतियों के परिणामस्वरूप भारत ने गरीबी के मोर्चे पर भी बड़ी सफलता हासिल की है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश में अत्यधिक गरीबी 2011-12 में 27.1% थी, जो 2022-23 में घटकर केवल 5.3% रह गई है। यह दिखाता है कि भारत ने न केवल अपनी आर्थिक बुनियाद को मजबूत किया है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों तक उसका लाभ भी पहुंचाया है।
भारत की तेज़ आर्थिक वृद्धि का आधार कई मजबूत कारकों पर टिका है। इसमें देश की पांच अहम इकाइयों — कंपनियां, बैंक, घर-परिवार (हाउसहोल्ड), सरकार और बाहरी क्षेत्र (एक्सटर्नल सेक्टर) — की मजबूत बैलेंस शीट का बड़ा योगदान है। इसे ही विशेषज्ञ ‘फाइव बैलेंस शीट एडवांटेज’ कह रहे हैं। आइए, इसकी विस्तार से समझ लेते हैं।
भारतीय कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत हो रही है। कंपनियों की ब्याज भुगतान क्षमता (इंटरस्ट कवरेज रेशियो या ICR) में सुधार हुआ है और कमजोर स्थिति में मौजूद कंपनियों की संख्या घटी है। तुलना करें तो उभरती अर्थव्यवस्थाओं (चीन को छोड़कर) में 18% कंपनियों का ICR एक से नीचे है, जबकि भारत में यह आंकड़ा सिर्फ 12.2% है — जो विकसित देशों के बराबर है।
इसके साथ ही, कंपनियों को मिलने वाला कुल वित्तीय प्रवाह 2023-24 के ₹33.86 लाख करोड़ से बढ़कर 2024-25 में ₹34.88 लाख करोड़ हो गया है। इसमें इक्विटी इश्यू और कॉरपोरेट बॉन्ड्स के ज़रिए गैर-वित्तीय कंपनियों को मजबूत समर्थन मिला है। साथ ही, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में क्षमता उपयोग औसत से ऊपर है, जिससे निवेश की संभावनाएं भी मजबूत बनी हुई हैं।
बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (NBFCs) की बैलेंस शीट भी बेहतर स्थिति में है। इसका कारण है — मुनाफे में सुधार, फंसे कर्ज़ (NPA) में गिरावट, पर्याप्त पूंजी और तरलता भंडार। इसकी वजह से उद्योग और कृषि क्षेत्र को मजबूत क्रेडिट सपोर्ट मिल रहा है।
यह सुधार सिर्फ आर्थिक चक्र की वजह से नहीं, बल्कि सरकार की निरंतर और सक्रिय नीतियों और रेगुलेटरी एजेंसियों की सजग निगरानी का भी नतीजा है।
सरकार की बैलेंस शीट पहले से बेहतर हुई है। टैक्स कलेक्शन अच्छा रहा है और कर्ज लेने की जरूरत भी कम हुई है। कोविड महामारी के वक्त बढ़ा फिस्कल डेफिसिट और सरकारी कर्ज अब धीरे-धीरे कम हो रहे हैं। इस वजह से बाजार से कर्ज लेने की लागत भी घट रही है। खास बात यह है कि खर्च की क्वालिटी पर कोई असर नहीं पड़ा है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030-31 तक सरकारी कर्ज को जीडीपी के 50% (+/- 1%) तक लाया जाए, जो कि 2024-25 में 57.1% है। इससे अगली पीढ़ियों पर कर्ज का बोझ नहीं पड़ेगा।
बॉन्ड मार्केट ने भारत की फिस्कल पॉलिसी पर भरोसा जताया है। भारत के 10 साल के बॉन्ड्स का यील्ड अब अमेरिका के 10 साल के ट्रेजरी बॉन्ड्स से सिर्फ 200 बेसिस पॉइंट ज्यादा है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत को निवेशकों से अच्छा रिस्क रेटिंग मिल रहा है।
बाहरी सेक्टर की स्थिति भी मजबूत हुई है। सर्विस एक्सपोर्ट, प्राइवेट रेमिटेंस और एफडीआई जैसे कैपिटल इनफ्लो बढ़ने से देश का फॉरेक्स रिजर्व मजबूत हुआ है। मई 2025 तक भारत के पास 11 महीने का इंपोर्ट कवर था, जबकि 2013 में यह सिर्फ 7 महीने था। करंट अकाउंट डेफिसिट भी 2014-25 के दौरान सिर्फ 1% के आसपास रहा है, जो पहले के दशक में औसतन 2.4% था। इससे बाहरी सेक्टर में भारत की स्थिति ज्यादा भरोसेमंद बनी है।
घर-परिवार यानी हाउसहोल्ड्स की आर्थिक हालत भी ठीक है। उनकी ग्रॉस फाइनेंशियल सेविंग स्थिर रही है और जो लोन लिए गए हैं, वे ज्यादातर घर-जमीन जैसे फिजिकल एसेट बनाने में लगाए गए हैं। अब लोग म्यूचुअल फंड, शेयर बाजार, इंश्योरेंस और रिटायरमेंट फंड्स में भी निवेश कर रहे हैं, जिससे भारत की ग्रोथ स्टोरी पर भरोसा झलकता है।
महंगाई भी नियंत्रण में है। वित्त वर्ष 2024-25 में खुदरा महंगाई औसतन 4.6% रही, जबकि मई में यह घटकर 2.8% पर पहुंच गई, जो 75 महीने का सबसे निचला स्तर है। मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में मजबूती बनी हुई है और भारत लगातार दुनिया के सबसे अच्छे पीएमआई आंकड़े दर्ज कर रहा है। खेती-किसानी भी अच्छी स्थिति में है – रबी की बंपर फसल, गर्मियों की फसल में ज्यादा बुवाई और जलाशयों का बेहतर जलस्तर इसकी वजह हैं।
यह सब कुछ तब हुआ जब दुनिया कोविड महामारी, जियोपॉलिटिकल तनाव, और टेक्नोलॉजी व ट्रेड के हथियार बनने जैसी चुनौतियों से जूझ रही थी। आज भी ग्लोबल अनिश्चितता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। दुनिया में पॉलिसी अनिश्चितता और महंगाई अब भी ज्यादा बनी हुई है, खासकर विकसित देशों में।
बीते 11 वर्षों में भारत ने स्थिरता का प्रतीक बनते हुए दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसका बड़ा कारण रहा है एक स्पष्ट और निरंतर सुधारों पर आधारित नीति, जिसने देश की मरम्मत और क्षमता निर्माण पर जोर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा था कि “यह देश न तो नेताओं ने बनाया है, न ही शासकों या सरकारों ने। यह देश हमारे किसानों, श्रमिकों, माताओं-बहनों और युवाओं ने बनाया है।”
डिजिटल पेमेंट से लेकर स्वरोजगार को बढ़ावा देने तक, इन वर्षों में भारत ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। यूपीआई के जरिए फाइनेंशियल ईयर 2024-25 में 185 अरब से ज्यादा ट्रांजेक्शन दर्ज हुए। वहीं मुद्रा योजना के तहत अब तक 53 करोड़ से ज्यादा लोन खातों में ₹33 लाख करोड़ से अधिक की राशि वितरित की जा चुकी है। ये आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि जब सरकार भरोसे पर आधारित काम करती है और नियमों का बोझ घटाती है, तो जनता अपनी क्षमताओं से अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जा सकती है।
आज वैश्वीकरण के दौर में कई नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ‘नेशन फर्स्ट’ की नीति ने देशवासियों में आत्मविश्वास बढ़ाया है। भारत की मजबूती का आधार बना है ‘फाइव बैलेंस शीट एडवांटेज’ यानी ऐसी आर्थिक स्थिति जहां सरकार, कॉरपोरेट्स, बैंकिंग सेक्टर और घरेलू उपभोक्ताओं की वित्तीय सेहत संतुलित है।
विश्व की अनिश्चितताओं के बीच भी भारत अपने विकास के रास्ते पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। भरोसे पर आधारित शासन और लगातार होते सुधारों के सहारे देश ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।
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लेखक केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री हैं।
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