केंद्र सरकार के कर्मचारियों को साल भर में 30 अर्जित अवकाश मिलते हैं।
असैन्य कर्मचारियों को इसके अलावा 7 आकस्मिक अवकाश और 20 दिन की हाफ-पे छुट्टियां मिलती हैं, जिन्हें चिकित्सा अवकाश के रूप में समायोजित किया जा सकता है।
इनके अलावा उन्हें 2 प्रतिबंधित अवकाश और 17 राजपत्रित अवकाश मिलते हैं, जिनमें 3 राष्ट्रीय छुट्टियां भी शामिल हैं। यदि इनमें साल भर के 52 शनिवार और 52 रविवार (जिन पर दफ्तर बंद रहते हैं) भी समाहित कर लिए जाएं, तो केंद्रीय कर्मचारियों को साल भर में मिलने वाली कुल छुट्टियों की संख्या 171 हो जाती है। यानी केंद्रीय कर्मचारी साल भर में करीब 6 महीने तक छुट्टी पर रहते हैं।
छठे वेतन आयोग की सबसे विवादास्पद सिफारिश की पड़ताल करने से पहले इन बातों पर गौर किया जाना जरूरी है। यह बात पूरी तरह सही है कि छठे वेतन आयोग ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले अर्जित अवकाश या आकस्मिक अवकाश में किसी तरह की कमी किए जाने की सिफारिश नहीं की है। न ही वेतन आयोग ने हफ्ते में 6 दिन तक काम किए जाने की संस्तुति की है।
गौरतलब है कि 1980 के दशक के आखिर में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में हफ्ते में 5 दिन काम किए जाने का चलन शुरू हुआ था और इससे पहले तक केंद्र सरकार के दफ्तरों में हफ्ते में 6 दिनों तक कामकाज की पंरपरा चल रही थी। इस बात में भी कोई शक-शुबहा नहीं कि यदि वेतन आयोग इस तरह का कोई कदम उठाने की सिफारिश करता, तो विवाद का स्तर मौजूदा विवाद से कहीं ज्यादा गंभीर होता।
दरअसल, पांचवें वित्त आयोग ने भी अपनी सिफारिश में हफ्ते में 6 दिन तक काम किए जाने की परंपरा एक दफा फिर से बहाल किए जाने की बात कही थी, जिसे तत्कालीन सरकार ने बिना सोचे-समझे खारिज कर दिया था।
तो आखिरकार छठे वेतन आयोग ने इस मामले में किया क्या है? आयोग ने दरअसल, राजपत्रित अवकाश की अवधारणा को खत्म करने की सिफारिश की है, जब देश के हर हिस्से में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालय बंद रहते हैं। आयोग का कहना है कि राजपत्रित अवकाशों की जगह सिर्फ 3 राष्ट्रीय अवकाश (स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और गांधी जयंती) होने चाहिए।
इनके बदले सरकार द्वारा कर्मचारियों के लिए साल के शुरू में प्रतिबंधित अवकाशों की एक लिस्ट जारी की जाएगी, जिनमें से साल भर में 8 छुट्टियां कर्मचारियों को मिलेंगी। इनमें से 2 अवकाशों के चयन का अधिकार महकमों के प्रमुखों के पास होगा, जो स्थानीय जरूरतों (किसी खास स्थानीय पर्व या फिर परिवहन की सुविधा आदि) के मद्देनजर इन दोनों प्रतिबंधित छुट्टियों का ऐलान करेगा। यानी 8 में से 2 प्रतिबंधित अवकाश का दिन विभागों के प्रमुखों द्वारा तय किए जाएंगे और सरकार द्वारा जारी लिस्ट से बाकी 6 दिनों के प्रतिबंधित अवकाश का चयन कर्मचारी खुद कर सकते हैं।
इस तरह यदि छठे वेतन आयोग की सिफारिशें मान ली गईं तो केंद्रीय कर्मचारियों को साल भर में कुल मिलाकर 171 की जगह 165 दिनों की छुट्टी मिल पाएगी। सालाना छुट्टियों की संख्या में महज 6 दिनों की कमी भी कर्मचारियों को काफी कशक देगी, जब उन्हें महसूस होगा कि उनके वेतन में हुई बढ़ोतरी इतनी ज्यादा भी नहीं है कि इसके लिए छुट्टियों तक की कुर्बानी ली जाए।
ऐसे में बेहतर यह होगा कि राजपत्रित अवकाशों (जो ज्यादातर पर्व के मौके पर दिए जाते हैं) की संख्या में कटौती की सिफारिश वापस ले ली जाए, क्योंकि इसे लागू करने में काफी व्यावहारिक दिक्कतें आएंगी। यह मुममिन है कि कर्मचारी छुट्टियों में कटौती के लिए रजामंद हो जाएं या उन्हें इस तरह भरोसा दिलाया जाए कि वे इस व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए राजी हो जाएं। पर इस व्यवस्था को लागू कराए जाने के बाद असली दिक्कत आला अधिकारियों को आएगी, जिनके लिए यह डरावने सपने से कम नहीं होगा।
आप इस बात पर विचार करें कि दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के किसी महकमे का मुखिया इस स्थिति से कैसे निपटेगा। बहुत संभव है कि वह अपने कनिष्ठ कर्मचारियों से मशविरा करने के बाद प्रतिबंधित अवकाश के लिए जो 2 दिन तय करेगा, वे होली और दीवाली के दिन होंगे। इसका मतलब यह हुआ कि उसे दशहरा, क्रिसमस और दूसरे कई पर्वों पर दफ्तर खोलकर रखना होगा।
यह बात दीगर है कि इन पर्वों पर भी ज्यादातर कर्मचारी अपने दूसरे प्रतिबंधित अवकाश ले लेंगे। पब्लिक डीलिंग करने वाले महकमों के लिए ऐसे मौकों पर हालात और भी गंभीर हो जाएंगे। ऐसे में विभाग प्रमुखों को सेवाएं सुचारु बनाए रखने के लिए कर्मचारियों को ओवरटाइम देना होगा। सरकारी दफ्तरों के ज्यादा दिन खुले रहने की वजह से उनकी मेंटिनेंस कॉस्ट पर भी खर्च बढ़ेगा।
यहां यह कहना सही नहीं होगा कि राजपत्रित अवकाशों को खत्म किए जाने का विचार बुरा है। सैध्दांतिक तौर पर बात की जाए, तो धार्मिक त्योहारों के मौके पर दिए जाने वाले राजपत्रित अवकाशों को काफी पहले खत्म कर दिया जाना चाहिए था। ज्यादातर प्राइवेट कंपनियां इन त्याहारों के लिए साल भर में 10 या इनसे भी कम छुट्टियां देती हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थिति अपने दफ्तरों को निर्देश देती हैं कि वे स्थानीय जरूरतों के हिसाब से इस तरह की छुट्टियां तय करें।
यदि प्राइवेट सेक्टर ऐसा कर सकता है, तो सरकारी तंत्र इसे क्यों नहीं लागू कर सकता है? दरअसल, होना यह चाहिए कि 3 राष्ट्रीय अवकाशों को छोड़कर बाकी अवकाशों का निर्धारण लोकल ऑफिसों द्वारा अपने मुख्यालयों से संपर्क कर किया जाना चाहिए। लोकल ऑफिसों को छूट दी जानी चाहिए कि वह तमाम जरूरतों को ध्यान में रखकर छुट्टियां तय करें।