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Editorial: अंतरराष्ट्रीयकरण की महत्त्वाकांक्षा

बीते कुछ दशकों में आर्थिक वृद्धि और विकास ने निश्चित तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकजुट किया है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 06, 2023 | 11:09 PM IST

किसी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा तभी कहा जा सकता है जब उसका इस्तेमाल जारी करने वाले देश की सीमाओं के परे भी किया जा सकता हो और वह विनिमय के माध्यम के रूप में काम आ सके। इसके अलावा वह एक मौद्रिक इकाई हो तथा उसका तयशुदा मूल्य हो। एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा जारीकर्ता देश के लिए कई फायदे लेकर आती है।

उदाहरण के लिए उस देश के निवासी उसके जरिये अनिवासियों के साथ घरेलू मुद्रा में व्यापार कर सकते हैं, इससे न केवल लेनदेन की लागत में कमी आती है बल्कि मुद्रा संबंधी जोखिम भी समाप्त होता है।

इसके अलावा यह फाइनैंसिंग की लागत को कम करता है क्योंकि बिना मुद्रा संबंधी जोखिम उठाए व्यापक अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से फंड जुटाया जा सकता है। ये वे निवेशक हो सकते हैं जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में परिसंपत्ति रखने के इच्छुक हों।

भारत की अमेरिकी डॉलर से दूरी बनाने की दिशा में पहलकदमी

जारीकर्ता मौद्रिक प्राधिकार की बात करें तो उसके लिए यह मुद्रा छापने से होने वाले लाभ और बड़े विदेशी मुद्रा भंडार बनाकर रखने के दबाव के न होने के नाते भी लाभकारी होता है। ऐसे में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कई देश विदेशी मुद्रा वाला बनना चाहते हैं। कुछ देश इस दिशा में इसलिए भी प्रयास कर रहे हैं कि वे अमेरिकी डॉलर से दूरी बनाना चाहते हैं। आंशिक तौर पर ऐसा भूराजनीतिक वजहों से है।

भारत भी इस दिशा में पहलकदमी कर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को एक अंतरविभागीय समूह की रिपोर्ट जारी की जिसने रुपये को अंतरराष्ट्रीय बनाने के लिए कई अनुशंसाएं की हैं।

बीते कुछ दशकों में आर्थिक वृद्धि और विकास ने निश्चित तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकजुट किया है। बहरहाल, उल्लेखनीय विस्तार और एकीकरण के बावजूद इस बात की पर्याप्त वजह है कि भारत को रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में थोड़ा धीमी गति से बढ़ना चाहिए। रिपोर्ट की कुछ अनुशंसाओं से वृहद आर्थिक जोखिम भी बढ़ सकता है।

उदाहरण के लिए रिपोर्ट की एक अनुशंसा यह है कि सभी सरकारी प्रतिभूतियों को पूर्ण पहुंच वाले माध्यम से जारी करना चाहिए और कोशिश की जानी चाहिए कि सरकारी बॉन्ड को वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल किया जा सके। यह दलील भी दी गई है कि कॉर्पोरेट डेट बाजार में विदेशी निवेश को उदार बनाया जाए। इससे फंडिंग की लागत कम हो सकती है लेकिन इससे मुद्रा बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी।

मुद्रा बाजार में बढ़ी अस्थिरता के अलावा विनिमय दर पर भी इसका दबाव बनेगा। यह देश के कारोबारी क्षेत्रों को प्रभावित करेगा। हकीकत में रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण एक हद तक भारत के पूंजीगत खाते के खुलेपन की क्षमता पर भी निर्भर करता है। चूंकि भारत निरंतर चालू खाते के घाटे से जूझ रहा है इसलिए उसके कारोबारी साझेदारों के पास रुपये का अधिशेष होगा। किसी न किसी मोड़ पर वे उसे मुद्रा में बदलना चाहेंगे क्योंकि अपरिवर्तनीयता उसके इस्तेमाल को सीमित करेगी।

यह बात भी ध्यान देने लायक है कि एक मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण जोखिम रहित नहीं होता है। वैश्विक बाजारों में अस्थिरता के दौर में रुपये या रुपये आधारित संपत्ति रखने वाले संस्थान उससे निजात पाना चाहेंगे। इससे रुपये पर दबाव बढ़ सकता है।

ध्यान रहे कि भारत अब तक पूंजी खाते को लेकर सतर्कता से आगे बढ़ा है और इस रुख को बदलने की कोई ठोस वजह नहीं है। इसके अलावा रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का विचार और पूंजी खाते में खुलापन लाने का विचार चालू खाते को लेकर बढ़ते प्रतिबंधात्मक रुख के विपरीत नजर आता है।

अमेरिकी डॉलर अभी भी अंतरराष्ट्रीय लेनदेन की चयनित मुद्रा है क्योंकि उसे एक बड़े, खुले और नकदीकृत बाजार का समर्थन हासिल है। ऐसे में यह जरूरी है कि रुपये में अंतरराष्ट्रीय लेनदेन शुरू करने के पहले जरूरी उपाय किए जाएं। नीति निर्माताओं के लिए यही बेहतर होगा कि वे रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया धीमी करें और वित्तीय बाजारों के विकास तथा मजबूत वृहद आर्थिक बुनियाद तैयार करने पर ध्यान दें।

First Published : July 6, 2023 | 11:09 PM IST