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हवाई क्षेत्र का हुलिया बदलने में हीला-हवाली

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 7:13 PM IST

देश के नागरिक उड्डयन अधिकारियों को अपने कर्मचारियों का इस बात के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने एक बड़ा हादसा होने से बचा लिया।


पिछले बुधवार को किंगफिशर एयरलाइन की एक फ्लाइट के कार्गो (माल) से धुआं निकलने के बाद फ्लाइट को आनन-फानन में वापस हैदराबाद हवाईअड्डे पर उतारना पड़ा। जिस कार्गो से धुआं उठा (कार्गो के रूप में जूस के पैकेट थे), उसे हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (निजी कंपनी) के सिक्युरिटी स्टाफ की ओर से क्लियरेंस दिया गया था।


मुसाफिरों से ऊंची यूजर डेवलपमेंट फीस (यूडीएफ) लिए जाने और हैदराबाद मुख्य शहर से काफी दूर होने के मुद्दों पर हैदराबाद के नए हवाईअड्डे को पहले से ही तीखी प्रतिक्रियाओं का शिकार होना पड़ रहा है।कुछ हफ्ते पहले ही नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी थी।


इसमें बीसीएएस ने नागरिक उड्डयन नीति में की गई उस तब्दीली का विरोध किया था, जिसके तहत प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटरों को इस बात की इजाजत दी गई है कि वे बैगेज के सिक्युरिटी क्लियरेंस का काम करें। बीसीएएस का कहना है कि सिक्युरिटी क्लियरेंस की जिम्मेदारी सीआईएसएफ के हाथों में होनी चाहिए, जो पहले से एयरपोर्ट की सुरक्षा का पूरा प्रभार संभाल रहा है।


मंत्रालय ने इस चिट्ठी के जवाब में सितंबर 2007 में आई अपनी नई नागरिक उड्डयन नीति को सही ठहराया और इस मामले में मंत्रालय का जवाब काफी आश्चर्यजनक था।
मंत्रालय ने कहा कि बैगेज के सिक्युरिटी क्लियरेंस का जिम्मा एयरलाइन स्टाफ के हाथ में है और अंतरराष्ट्रीय चलन के तहत भी एयरपोर्ट ऑपरेटरों को इस बात की इजाजत दी जाती है।


मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि ‘एंटी-हाइजैकिंग’ और ‘एंटी-सैबोटाज’ में अंतर है। मंत्रालय ने का कहना था  – ‘सीआईएसएफ को एंटी-हाइजैकिंग की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि बैगेज एक्सरे स्कैन चेक एंटी-सैबोटाज से जुड़ा मसला है।’ दोनों में अंतर को एक उदारहण के जरिये समझा जा सकता है। 1985 में एयर इंडिया के विमान ‘कनिष्क’ में उस वक्त बम विस्फोट हुआ था, जब वह उड़ान भर रहा था, यह मामला एंटी-सैबोटाज का था।


दूसरी ओर, कंधार हादसा एंटी-हाइजैक का मामला था, जिसमें एयर इंडिया के विमान को आतंकवादियों के हाथों से छुड़ाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। कुल मिलाकर मंत्रालय का तर्क यह था कि सीआईएसएफ की भूमिका हाइजैकिंग रोकने के लिए है और सैबोटाज रोकने का जिम्मा सीआईएसएफ का नहीं है।


मंत्रालय का यह कहना शायद सही है कि विदेशों में यह काम एयरपोर्ट ऑपरेटरों और एयरलाइनों को दिया गया है। पर उन देशों में, जहां यह व्यवस्था लागू है, इस व्यवस्था को लागू किए जाने से पहले बाकायदा इस बारे में व्यापक प्रक्रियाएं अपनाई गईं और नियम बनाए गए।


वहां पहले सरकारी सिक्युरिटी कर्मचारियों और एयरपोर्ट ऑपरेटरों ने संयुक्त रूप से अभ्यास किया और सरकारी सिक्युरिटी अधिकारियों को इस बात का अधिकार दिया गया कि वे एयरपोर्ट ऑपरेटरों के कामकाज का औचक निरीक्षण करें और काम में किसी तरह की कोताही पाए जाने पर जुर्माना भी लगाएं। हालांकि भारत में मंत्रालय की ओर से लिए गए फैसले में सीआईएसएफ की ओर से निरीक्षण किए जाने की कोई बात नहीं कही गई।


मंत्रालय का कहना है कि सितंबर 2007 में आई नई नीति में उल्लिखित ग्राउंड हैंडलिंग से संबंधित पहलुओं के बारे में नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो ने किसी तरह का ऐतराज नहीं जताया। मंत्रालय के मुताबिक, बीसीएएस द्वारा अब इस तरह की चिट्ठी का लिखा जाना, काफी आश्चर्यजनक है।अब देखना यह है कि बीसीएएस इस बारे में क्या कहता है। क्या बीसीएएस ने इन मसलों पर पहले ऐतराज जताया था या फिर क्या बैठकों में बीसीएएस द्वारा जताए गए ऐतराजों पर गौर नहीं किया गया?


इस पूरे मामले पर किसी को बहुत आश्चर्य नहीं जताना चाहिए, क्योंकि ऐसा पहली दफा नहीं है जब मंत्रालय ने बिना सोचे-समझे कोई कदम उठाया है। मिसाल के तौर पर, मौजूदा हवाईअड्डों का निजीकरण किए जाने और नए हवाईअड्डों के निर्माण की योजना बनाए जाने से पहले एक एयरपोर्ट रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनाई जानी चाहिए थी। पर मंत्रालय ने शुरू में यह कदम नहीं उठाया। आज हैदराबाद और बेंगलुरु के नए हवाईअड्डों पर छिड़ा गंदा विवाद इसी का नतीजा है। ये विवाद कई तरह के हैं।
 
मसलन, एक ओर तो पैसेंजर और सस्ती एयरलाइनें आपस में भिड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर यूजर डेवलपमेंट फीस, ग्राउंड हैंडलिंग और दूसरे तरह के शुल्कों को लेकर एयरपोर्ट अथॉरिटीज की त्योरियां चढ़ी हैं। लोगों के भारी विरोध के बावजूद सस्ती एयरलाइनों ने इन दोनों हवाईअड्डों के लिए अपनी उड़ानें जारी रखने से इनकार कर दिया।


मजबूरन मंत्रालय को बाद में दखल देना ही पड़ा और उसने एयरपोर्ट ऑपरेटरों से कहा कि वे तब तक अपनी बढ़ी शुल्कों को वसूलना शुरू न करें, जब तक मंत्रालय द्वारा एयरपोर्ट रेग्युलेटर का गठन न कर दिया जाए और यह रेग्युलेटर मामले को अपने स्तर ने देख ले।


पर सवाल यह है कि रेग्युलेटर या मंत्रालय इस समस्या से कैसे निपटेगा? अब तो इन हवाईअड्डों के आधुनिकीकरण पर पैसे खर्च किए जा चुके हैं। ऐसे में यूजर डेवलपमेंट फीस और दूसरे तरह के चार्जेज का लगाया जाना तय है, जो कि खर्च के हिसाब से अंकगणीतीय विश्लेषण के आधार पर तय किए जाएंगे।


हम देश में सरकार द्वारा नियंत्रित हवाई क्षेत्र की गड़गबड़ियों और दुर्दशा के गवाह रह चुके हैं। अब हमारी तकलीफ का अगला दौर शुरू होने वाला है, जो इस सेक्टर की कमान निजी हाथों को सौंपे जाने से शुरू होगा, क्योंकि निजी हाथों में कमान सौंप तो दी गई, पर बगैर किसी सोच-समझ और ठोस नीति के।

First Published : April 7, 2008 | 12:43 AM IST