दो साल पहले नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
(कैग) ने रक्षा से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट को इंटरनेट पर जारी करने से इनकार कर दिया था। ऐसा किए जाने से ऐन पहले दरअसल, कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) की काफी आलोचना की थी और इसे इंटरनेट पर भी जारी किया था। कैग की ओर से ओएफबी की आलोचना से संबंधित रिपोर्ट अमेरिकी अधिकारियों ने पढ़ी और नतीजा यह हुआ कि ओएफबी को अमेरिका के साथ हुए एक बड़े निर्यात सौदे से हाथ धोना पड़ा। इसी घटना के बाद कैग ने डिफेंस से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट को इंटरनेट पर जारी करने से मना कर दिया।कैग ने अपनी डिफेंस रिपोर्ट की पहुंच महज संसद भवन
, मीडिया और कुछ अधिकारियों के हाथों तक ही रहने देने की कवायद करके रक्षा मंत्रालय (एमओडी) को उपकृत तो किया, पर रक्षा मंत्रालय के अधिकारी इसका अहसान मानने के बजाय कैग के प्रति अच्छा नजरिया नहीं रखते। रक्षा मसले पर एक दफा फिर कैग की नई ऑडिट रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट में एक दफा फिर यह खुलासा हुआ है कि योजना और अकाउंटिंग के मामले में रक्षा मंत्रालय और फौज की हालत अच्छी नहीं है और इससे यह बात भी जाहिर होती है कि इस मामले में देश की आला ऑडिट बॉडी और रक्षा मंत्रालय में तालमेल और सहयोग का घोर अभाव है।अपनी ऑडिट रिपोर्ट को आखिरी रूप देने से पहले कैग को संबंधित मंत्रालय को उसका मसौदा भेजना चाहिए। फिर मसौदे पर मंत्रालय द्वारा जाहिर की गई राय को कैग को अपनी आखिरी रिपोर्ट में जगह देनी चाहिए। पर जब इस बार कैग द्वारा अपनी ऑडिट रिपोर्ट का मसौदा रक्षा मंत्रालय को भेजा गया
, तब रक्षा सचिव ने इस मसौदे की पूरी अनदेखी की। इस मामले में सिर्फ ओएफबी ने ही अपनी थोड़ी–बहुत प्रतिक्रिया कैग को भेजने की जहमत उठाई। ओएफबी ने अपनी कुछ फैक्टरियों के बारे में कैग के आकलन पर अपनी राय कैग को भेजी।रक्षा मंत्रालय का पुराना रवैया भी कमोबेश ऐसा ही है। संसद की लोकलेखा समिति
(पीएसी) रक्षा मंत्रालय को आदेश दे चुकी है कि वह हर ऑडिट रिपोर्ट के संसद में पेश होने के 4 महीने के भीतर इस पर अपनी कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) पेश करे। नई कैग रिपोर्ट में 1996 से लेकर अब तक 90 मामलों का विश्लेषण है। पर रक्षा मंत्रालय ने इनमें से किसी पर अपनी एटीआर जारी करने की जहमत अब तक नहीं उठाई है। पिछले कुछ साल से रक्षा मंत्रालय के रवैये में किसी तरह का बदलाव आता नहीं दिख रहा। यह एक चिंताजनक स्थिति है।