पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना और वायु सेना के हमले तथा तबाही को एक हफ्ता गुजर चुका है। ऐसे में सीधा सवाल यह है कि देशों के पास सेना क्यों होती है? जंग लड़ने के लिए? यह जवाब कुछ बालबुद्धि और जोशीले किशोर ही देंगे। अपनी रक्षा के लिए? यह छोटे देश करते हैं। बड़ा देश फौज भी बड़े मकसद से ही रखता है और वह मकसद है – लड़ाई टालना। देश जितना ज्यादा मजबूत हो, उसे फौज भी उतनी ही ज्यादा मजबूत चाहिए – जमीन कब्जाने या दूसरों को परेशान करने के लिए नहीं बल्कि दुश्मनों को नतीजे का डर दिखाकर दूर रखने के लिए।
अब सवाल उठता है: क्या हम पाकिस्तान को ऐसा डर दिखाकर दूर रखने में कामयाब रहे हैं? पहलगाम हमले ने साफ कर दिया कि हम नाकाम रहे हैं। क्या झड़प रोकते समय हम ऐसा कर पाए? बदले की खुशी खूब मनाई जा रही है। खास तौर पर सोशल मीडिया पर, जिसने पाकिस्तानियों के साथ अलग जंग लड़ी और जहां अदावत अब भी जारी है।
पहलगाम हमले के बाद हमारी चर्चा पर गुस्सा हावी हो जाना लाजिमी था। हर कोई बदला लेने के लिए आमादा था। मगर संप्रभु देश केवल बदले के खेल में नहीं पड़ सकते हैं। उन्हें और भी कुछ करना होता है – ताकत हासिल करनी होती है, जिससे डरकर दुश्मन दूर रहे। साथ ही सजा देने की कुव्वत भी उनमें होनी चाहिए।
रामचरित मानस की पंक्ति ‘भय बिन होई न प्रीत’ यही तो बताती हैं, जो एयर मार्शल एके भारती ने सेना के तीनों अंगों की तरफ से संवाददाताओं से बात करते समय कही थी। आतंकी ठिकानों पर भारत के शुरुआती हमलों पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया देखकर लगा कि हमारी ताकत से वह अभी तक डरा नहीं है। सजा देने की ताकत 10 मई की सुबह दिखाई गई, जब पाकिस्तानी वायु सेना के सबसे सुरक्षित ठिकानों, हवाई सुरक्षा और मिसाइलों को निशाना बनाकर उसे शर्मसार कर दिया गया।
यह सख्त सजा थी। मगर कीबोर्ड और प्राइम टाइम के जंगजू कुछ भी कहें, सरकार ने ‘बदला’ नहीं लिया था बल्कि यह समझाकर डराया था कि: अब कोई भी आतंकी कार्रवाई युद्ध ही मानी जाएगी। हमारा जवाब फौरन आएगा और ज्यादा सख्त आएगा। इसीलिए रुक जाओ।
लेकिन तथ्य और इतिहास यह साबित नहीं करते कि आतंक के इस्तेमाल से डराकर रोकना अब भारत की राष्ट्रीय नीति बन गई है। हमें देखना होगा कि 2016 से ही अपनी जवाबी कार्रवाई बढ़ाकर भारत को क्या मिला है। उड़ी और पुलवामा हमलों के जवाब में 2019 में बालाकोट और 2025 में पहलगाम के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर। वास्तव में हमें 13 दिसंबर, 2001 के संसद हमले से शुरू करना चाहिए। वह पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के छद्म युद्ध की शुरुआत थी, जिसने युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए थे। भारत की सेना सीमा पर पहुंच गई थी, जिसके बाद शांति पसर गई। मगर 2008 में 26 नवंबर को फिर हमला हो गया। यानी भारत की ताकत देखकर पाकिस्तान सात साल तक चुप रहा।
भारत ने अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ लिया, फोन रिकॉर्डिंग पेश कीं और अमेरिकी नागरिकों तथा यहूदियों की हत्या से पाकिस्तान दुनिया भर के सामने शर्मसार हुआ। उसके बाद करीब आठ साल शांति रही।
फिर 2016 में पठानकोट और उड़ी हमले हो गए। जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक की गई। इससे पाकिस्तान को यह कहकर निकलने का मौका मिल गया कि कुछ हुआ ही नहीं। 2019 में पुलवामा हमले के जवाब में भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मुहम्मद के ठिकानों को बरबाद कर दिया। तब पाकिस्तान को एक युद्धबंदी भी मिल गया।
साफ दिखता है कि पाकिस्तान और उसके लिए लड़ने वालों को सात साल बाद कुछ होने लगता है। तो क्या भारत के अब तक के सबसे सख्त सैन्य जवाब और युद्ध जैसे हालात के बाद क्या पाकिस्तान फिर सात साल के लिए चुप बैठेगा? भारत और अच्छा कर सकता है। जल्द ही आईएसआई और उसके गुर्गे यहां आ जाएंगे। उन्हें जेट, टैंक और परमाणु बम के साथ जिहाद करने के ख्वाब आते हैं। यही उनकी ख्वाहिश है यही उनका ‘अंजाम’। भारत के साथ जंग टाली नहीं जा सकती, यह तो लिखी हुई है। तो आज ही क्यों नहीं? इसे कल के लिए क्यों छोड़ा जाए?
सिक्के के दोनों पहलू देखने चाहिए: अगले पांच या सात साल में वे क्या करेंगे और क्या हम जवाब देने या उन्हें डराकर रखने की तैयारी कर लेंगे? अहम जगहों पर खुद को मजबूत बनाया जाए और अगली बार के लिए भारत के जवाब का अंदाजा लगाया जाए। भारत के उस जवाब को नाकाम करने की तैयारी पहले ही कर ली जाए।
और भारत जवाब कैसे देता है? मोहलत लेने के लिए हम जोखिम बढ़ने देते हैं? यह तो गोल घेरे में दौड़ते रहने जैसा ही है। महाशक्ति बनने की कोशिश में लगे देश और बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐसी सुरक्षा थोड़े ही तलाशते हैं। भारत सात साल की इस सनक का शिकार बनकर नहीं रह सकता।
इसलिए अब दूर की देखिए। रक्षा पर ज्यादा खर्च कीजिए, अगले तीन साल में इसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कम से 2.5 फीसदी पर ले जाइए। इस साल रक्षा पर जीडीपी का 1.9 फीसदी खर्च हो रहा है, जो 1962 की लड़ाई से एक साल पहले हुए खर्च से भी कम है। खर्च बढ़ाइए और उस रकम को जरूरी क्षमताएं तैयार करने में लगाइए ताकि अगली बार पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जाए कि वह दोबारा उठने की भी न सोच पाए। मलक्का स्ट्रेट को रोकने का काम रोका जा सकता है। हमें यह भी देखना होगा कि क्या डॉनल्ड ट्रंप के जाने के बाद भी क्वाड बना रह पाएगा।
पांच साल तक सारा नया खर्च केवल एक ही मोर्चे पर कीजिए। वायु सेना को और मजबूत बनाना होगा, और भी लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियार देने होंगे, स्क्वाड्रन बढ़ाने होंगे। आधे से अधिक लड़ाकू विमानों को बियॉन्ड विजुअल रेंज बनाना होगा। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि तकनीक स्वदेशी है या विदेशी। भारत इंतजार नहीं कर सकता क्योंकि दुश्मन भी इंतजार नहीं करेगा। सजा देंगे इसके लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियार। इसलिए खिलौनों की तरह एक साथ सौ हथियार मत खरीदिए, हजार खरीदिए। पाकिस्तानी जब नियंत्रण रेखा पर 10 बंदूकें चलाएं तो आपकी 200 बंदूकें गरजनी चाहिए। लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों का जखीरा किसी को भी खौफ में डाल देता है। भारत ऐसा जखीरा इकट्ठा कर सकता है।
अगर आप यह काम ठीक तरीके से करते हैं तो इस मोर्चे की फिक्र हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। पाकिस्तान और चीन के साथ त्रिकोण से निकलने का यह अच्छा तरीका होगा। दूसरा तरीका वह है, जिसे हमारे प्रधानमंत्री शिमला संधि के बाद पिछले 50 साल से तलाश रहे हैं – दोनों मे से एक दुश्मन के साथ मतभेद सुलझाना। मगर इस मोर्चे पर हमें खीझ ही मिली है।
चीन को हमारे साथ स्थायी शांति में कोई फायदा नहीं दिखता क्योंकि पाकिस्तान की मदद से वह हमें आसानी से परेशान कर सकता है। पाकिस्तान पर ‘यह हमारी तकदीर में लिखा है’ वाले लोग हावी होते जा रहे हैं। पाकिस्तान वाले मोर्चे को बंद करने के मकसद से ही भारत को रक्षा पर ज्यादा खर्च करना चाहिए।
पाकिस्तान होड़ करेगा तो उसे कीमत भी चुकानी होगी। याद रखें कि भारत और पाकिस्तान के बीच शक्ति संतुलन में पारंपरिक युद्ध ही अहम है। परमाणु हथियार की बात आते ही हम सब खत्म हो जाएंगे। इसलिए अमेरिका शायद ही पाकिस्तान को कुछ नया देगा। चीन और तुर्किए देंगे मगर अमेरिका की तरह वे तोहफे नहीं बांटते।
खस्ताहाल अर्थव्यवस्था वाले पाकिस्तान के पास पैसा कहां से आएगा? पाकिस्तान की जमीन पर कब्जा करने की भारत की कोई मंशा नहीं है। इसे तो बस त्रिकोण से छुटकारा चाहिए। भारत को पाकिस्तान पर यही बोझ डाल देना चाहिए। एक साल के लिए नहीं बल्कि 25 साल के लिए वरना यह विकसित भारत की राह में हमेशा रोड़ा बना रहेगा। भविष्य में भरोसा रखने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था को रक्षा की ऐसी ताकत चाहिए, जिससे कम से कम एक विरोधी तो डरकर रहे।
मोदी सरकार ने अभी तक तो यह काम बहुत अच्छी तरह किया है। मगर अगली बार कुछ नया करना होगा क्योंकि ‘अगली बार’ जरूर आएगी। ऑपरेशन सिंदूर से यही सबक मिला है कि वह ‘अगली बार’ कभी नहीं आने देनी है।