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सियासी हलचल: चंद्रशेखर-राजनीति में सबसे चुनौतीपूर्ण टक्कर

एक तकनीकी विशेषज्ञ, जो सिलिकन वैली में एक व्यापक साम्राज्य खड़ा कर सकता था, से एक जन सेवक बनने तक की राजीव चंद्रशेखर की यात्रा काफी लंबी और उतार-चढ़ाव वाली रही है।

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आदिति फडणीस   
Last Updated- April 12, 2024 | 9:47 PM IST

भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर पहली बार लोक सभा का चुनाव लड़ रहे हैं। यह उनके जीवन की सबसे चुनौतीपूर्ण लड़ाई हो सकती है। वह हारें या जीतें, सच तो यह है कि तिरुवनंतपुरम शायद ऐसी रोचक चुनावी लड़ाई फिर कभी नहीं देख पाएगा।

एक तकनीकी विशेषज्ञ, जो सिलिकन वैली में एक व्यापक साम्राज्य खड़ा कर सकता था, से एक जन सेवक बनने तक की राजीव चंद्रशेखर की यात्रा काफी लंबी और उतार-चढ़ाव वाली रही है। वह अपने को एक फौजी की संतान बताते हैं जिसका जन्म अहमदाबाद में हुआ और जो देश के कई अलग-अलग छावनी इलाकों में पला-बढ़ा: लद्दाख, जोरहाट और दिल्ली।

उनके पिता एयर कमोडोर एमके चंद्रशेखर का भारतीय वायु सेना में बहुत सम्मान था। सशस्त्र बलों के साथ शुरुआती संपर्क ने ही चंद्रशेखर को सशस्त्र बलों की संस्कृति का एक समर्पित भक्त बना दिया: वह लगातार रक्षा सेवाओं की लड़ाई लड़ते रहे हैं, चाहे वह वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लेकर पूर्व रक्षा मंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर के साथ गहन चर्चा करनी हो या मेडिकल कोर में कार्यरत नर्सिंग कर्मचारियों के लिए बेहतर सुविधाओं जैसी मामूली बात हो।

उनके प्रयासों की बदौलत ही 1940 के विंटेज डकोटा डीसी-3 विमान (ब्रिटेन में स्क्रैपहीप के लिए बनाया गया एक प्रसिद्ध परिवहन विमान) को फिर से खरीदकर उड़ने लायक बनाया गया और साल 2018 में उसे भारतीय वायु सेना को उपहार में दिया गया। चंद्रशेखर ने कहा कि वह इस तथ्य को पचा नहीं सकते थे कि एक ऐसा विमान जिसने बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई के दौरान इतने अच्छे तरीके से देश की सेवा की थी, उसे कबाड़ में बेचा जाए- इनमें से एक विमान आज बांग्लादेश युद्ध संग्रहालय की बेशकीमती संपत्ति है जिसे मुक्ति योद्धाओं की स्मृति में रखा गया है।

अगर चंद्रशेखर अपने पिता के सशस्त्र सेना वाले नक्शे कदम पर चलते तो उनका जीवन काफी अलग होता। इसकी जगह उन्होंने मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना पसंद किया और साल 1984 में स्नातकोत्तर डिग्री के लिए अमेरिका चले गए।

उन्होंने सिर्फ नौ महीने में अपनी डिग्री पूरी कर ली और तभी उन पर विनोद धाम की नजर पड़ी, जो तब इतने प्रसिद्ध नहीं थे जैसे कि आज हैं। उनका कहना है कि यह धाम का ही प्रभाव था जो उन्हें इंटेल तक ले गया, जहां वह उन तीन इंजीनियरों में से एक बन गए जो सीपीयू आर्किटेक्ट थे और अगली पीढ़ी को चिप्स पर काम कर रहे थे। तो अब तक निर्मित प्रत्येक इंटेल 486 प्रोसेसर में चंद्रशेखर और इस परियोजना पर काम करने वाले तीस अन्य इंजीनियरों के नाम का प्रारंभिक अक्षर दर्ज है।

अमेरिका में उनकी मुलाकात अंजू से हुई, जो एमबीए की पढ़ाई कर रही थीं और बाद में उनकी पत्नी बनीं। अंजू केरल के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित उद्यमियों में से एक टीपी गोपालन नांबियार की बेटी हैं जो टीपीजी के नाम से प्रसिद्ध थे। नांबियार ने 1963 में पलक्कड़ में काम शुरू किया और प्रतिरक्षा बलों के लिए पैनल मीटर बनाने लगे, लेकिन बाद में वह अपना कारोबार बचाए रखने के लिए बेंगलूरु चले गए, क्योंकि उस समय केरल में माहौल उद्योगों के प्रतिकूल हो गया था।

उन्होंने अपने काम का विस्तार किया और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार सहित कई नए व्यवसायों में चले गए: बीपीएल कम्युनिकेशंस, बीपीएल मोबाइल कम्युनिकेशंस और बीपीएल सेल्युलर की होल्डिंग कंपनी, जो भारत लौट चुके उनके दामाद चंद्रशेखर चला रहे थे। ये कारोबार भारत में संचार व्यवस्था में आमूल बदलाव लाने की राजीव गांधी की योजना से प्रेरित थे।

साल 1991 में वह उन उद्यमियों में शामिल रहे जिन्होंने सेल्युलर लाइसेंस के लिए बोली लगाई। साल 2001 तक बीपीएल मोबाइल भारत की सबसे बड़ी सेल्युलर ऑपरेटर बन गई। उसके बाद उन्होंने अपनी कंपनी की एक कंसोर्टियम में विलय का एक सौदा करने की कोशिश की, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया। इसके बाद जीएसएम-सीडीएम की जंग उनके लिए दूसरा झटका थी।

तो एक तरह से चंद्रशेखर को एक ऐसे कारोबार में पहले उतरने की कीमत चुकानी पड़ी जो जोखिमपूर्ण था। उनके ससुर और उनके बीच वैचारिक मतभेद हो गए, जिसे बाद में उन्होंने सुलझा लिया। लेकिन कारोबार को एक अघोषित रकम में बेच दिया गया। चंद्रशेखर साल 2005 में बीपीएल मोबाइल से बाहर हो गए और उसी साल उन्होंने 10 करोड़ डॉलर रकम के साथ एक निवेश फर्म जूपिटर कैपिटल की शुरुआत की।

लेकिन चंद्रशेखर अब कारोबार में राजनीति के महत्व को समझ चुके थे। साल 2006 में वह स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए जिसके बाद साल 2012 में उन्हें एक और कार्यकाल के लिए जीत मिली। इस बीच वह भाजपा में शामिल हो गए और 2018 में फिर से राज्य सभा सदस्य बने। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन ऐक्ट 2023 तैयार करने में उनकी अहम भूमिका है।

भाजपा ने उन पर इतना भरोसा किया कि उन्हें साल 2021 में पार्टी के एक वरिष्ठ सहयोगी निर्मल सुराणा के साथ पुदुच्चेरी विधान सभा चुनाव का प्रभारी बनाया गया। यह जोड़ी केंद्र शासित प्रदेश में राजग सरकार बनवाने में कामयाब रही। इसके कुछ ही महीने बाद चंद्रशेखर को केंद्रीय मंत्री बना दिया गया और उन्हें कौशल विकास एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय का प्रभार मिला।

उन्हें पहली बार इस बात का आभास हुआ कि उन्हें एक और लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके मंत्री बनने के बाद चुपचाप उनसे कहा: आप अपने प्रांत के कपड़े पहनना शुरू कीजिए। अपने जीवन में चंद्रशेखर ने बहुत से दोस्त बनाए हैं। वह कितने भी व्यस्त क्यों न रहें, अपने दोस्तों के लिए हमेशा समय निकाल ही लेते हैं- और भारत को थोड़ा बेहतर बनाने के अपने जुनून के लिए भी।

First Published : April 12, 2024 | 9:47 PM IST