Categories: लेख

जनकल्याण में जुटी एक समिति ऐसी भी

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 5:31 PM IST

पिछले साल जब नंदीग्राम जल रहा था, तब शांति मंडल और उनके पति को अपनी जान बचाने के लिए अपने घर से भागना पड़ा था।


उन्हें शरण मिली 50 किमी दूर एक गांव में, लेकिन उनके पास अपना पेट पालने के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं बची थी। वह कहती हैं कि, ‘हम तो किसान थे। इसके अलावा, हमने जीवन और कुछ करना सीखा ही नहीं था।


मुझे नहीं लगता था कि मुझे कुछ और सीखने की जरूरत पड़ेगी। नंदीग्राम से भागने के बाद हमें शरण मिली पूर्वी मिदनापुर जिले के कजला गांव में। कुछ दिनों तक इधर-उधर भटकने के बाद ही हमें कोई सहारा मिला।’


मंडल परिवार को यह सहारा मिला, कजला जनकल्याण समिति से। सात साल पहले स्थापित हुई इस गैर सरकारी संगठन को आज कई दूसरे संगठनों और लोगों से सहायता मिलती है। यह विस्थापित परिवारों को अपना पेट पालने के तरीके ढूंढ़ने में मदद करती है।


कजला जनकल्याण समिति आज की तारीख में पूर्वी मिदनापुर जिले के 25 में से 12 ब्लॉक्स में काम करती है। राज्य की राजधानी कोलकाता से करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित कजला गांव की कुल आबादी का 15 फीसदी हिस्सा भूमिहीन है। ये लोग अक्सर काम की तलाश में दूसरे इलाको में जाते रहते हैं, जबकि उनके परिवारों के पास अपना पेट पलाने का कोई जरिया नहीं रह जाता।


इस जिले की कुल आबादी 50 लाख है। इसमें से 15 फीसदी आबादी विस्थापन की शिकार हैं। चूंकि, यह गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं और इन्होंने अपने पुस्तैनी काम के अलावा कुछ किया नहीं है, इसलिए इनके पास दूसरा काम नहीं रह जाता है।


समिति के सचिव स्वपन पांडा का कहना है कि,’हम इन लोगों को आत्म निर्भर बनाने के लिए टे्रनिंग देते हैं, ताकि इन्हीं अपना पेट पालने के लिए कोई दूसरा जरिया मिल जाए।’ इस समिति के कुल 8500 मेंबर हैं। यह लोगों को प्राकृतिक दवाओं बनाने की कला से लेकर बांस की कलाकृति बनाने तक की ट्रेनिंग देती है। मंडल बताती हैंकि,’पहले मैं और मेरे पति किसान हुआ करते थे। अब तो हम मछुआरे बन चुके हैं।


समिति ने तो हमें मछली से तरह तरह के पकवान बनाने की भी कला सीखाई है। जब मैंने इन पकवानों को बाजार में बेचने की ठानी थी तो मुझे स्वंय सहायता समूह से तीन हजार का कर्ज मिला था। मुझे इस पर हर महीने केवल 10 रुपए ब्याज के रूप में देने थे। मैंने यह लोन साल भर में चुका दिया।’


यह एनजीओ बैंकों से लोन लेकर स्व सहायता समूहों को बिना ब्याज के देती है। समिति ने 2006 में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया से 50 लाख रुपए का कर्ज लिया था। आज वह 600 लोगों को ट्रेन कर चुकी है।

First Published : April 9, 2008 | 12:07 AM IST