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सेबी के इस बड़े कदम से अब बढ़ेगी पारदर्शिता

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 01, 2023 | 11:18 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने एक मशविरा पत्र जारी किया है। यह पत्र न्यूनतम सार्वजनिक अंशधारिता (MPS) को संभावित रूप से निष्फल बनाने तथा प्रेस नोट 3 (पीएन3) को विफल बनाने के लिए विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) मार्ग का दुरुपयोग रोकने के मकसद से एफपीआई द्वारा अतिरिक्त खुलासे जरूरी बनाने के विषय पर आधारित है।

यह किसी एफपीआई द्वारा धारित शेयरों के वास्तविक लाभार्थी स्वामियों की तलाश पर केंद्रित है जिसका एक संकेंद्रित पोर्टफोलियो हो। यह लाभकारी स्वामित्व के बारे में खुलासे की आवश्यकताओं को सख्त करता है, जो पहले शिथिल थीं। इसका एक ऐसे कदम के रूप में स्वागत किया जाना चाहिए जो पारदर्शिता बढ़ाने वाला और मूल्य में छेड़छाड़ की संभावनाओं को कम करने वाला है। माना जा सकता है कि इस पर्चे की प्रस्तुति में हिंडनबर्ग मामले की भी भूमिका है।

अमेरिका के इस शॉर्ट सेलिंग करने वाले समूह ने आरोप लगाया था कि अदाणी समूह ने एफपीआई का इस्तेमाल करके सूचीबद्ध कंपनियों में शेयर धारण किए और वास्तविक प्रवर्तक की शेयर धारिता को 75 फीसदी की अधिकतम सीमा के पार ले गया।

एक सूचीबद्ध कंपनी में एमपीएस 25 फीसदी होता है (चुनिंदा सरकारी कंपनियों को छोड़कर)। पीएन3 सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों में चुनिंदा देशों के निवेश को रोकता है। भारत के सीमावर्ती देशों की कंपनियां या जहां भारत में निवेश करने वाला लाभकारी स्वामी स्थित हो, या जो ऐसे किसी देश का नागरिक हो, वह केवल सरकारी मार्ग से भारत में निवेश कर सकता है।

नियामकों की चिंता यह है कि एफपीआई का इस्तेमाल मुखौटे के रूप में करके ऐसे देशों की कंपनियां भारतीय शेयरों के स्वामित्व को छिपा सकती हैं। पत्र में कहा गया है कि कुछ एफपीआई अपने इक्विटी पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा एक कंपनी में रखते हैं या किसी एक समूह की कंपनियों में रखते हैं। ऐसा केंद्रीकृत निवेश ऐसी चिंताएं उत्पन्न करता है कि ऐसे समूहों के प्रवर्तक या अन्य निवेशक एफपीआई मार्ग का इस्तेमाल नियमन के साथ छेड़छाड़ में कर सकते हैं। ऐसे मामलों में कीमतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका बढ़ जाती है।

क्या वाकई ऐसा मामला है इसकी जांच परख करने के लिए यह आवश्यक होगा कि उन एफपीआई की सूची बनाई जाए जिनका रुझान ऐसी संकेंद्रित धारिता का रहा है। उसके बाद यह आवश्यक होगा कि स्वामित्व के बारे में सूचना हासिल की जाए या आर्थिक हितों तथा ऐसे एफपीआई के नियंत्रण के बारे में जानकारी ली जाए।

नियामक का अनुमान है कि प्रबंधन के अधीन (एयूएम) एफपीआई परिसंपत्ति में से 2.6 लाख करोड़ रुपये या कुल एफपीआई इक्विटी एयूएम का छह फीसदी तथा भारतीय शेयर बाजार पूंजीकरण का एक फीसदी से कम उच्च जोखिम वाले एफपीआई के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।

प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग ऐक्ट 2002 (पीएमएलए) तथा प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग (मेंटिनेंस ऑफ रिकॉर्ड्स रूल्स), 2005 (पीएमएल रूल्स) एक खाका मुहैया कराता है जिसके तहत लाभकारी मालिकों की पहचान की जा सकती है। बहरहाल इसे व्यवहार में अपनाना कठिन हो सकता है क्योंकि ऐसी कंपनियां, विभिन्न कंपनियों के माध्यम से स्वामित्व की कई परतें तैयार करती हैं।

वर्तमान में सेबी का प्रस्ताव है कि एक कारोबारी समूह में 50 फीसदी से अधिक एयूएम की उच्च जोखिम वाली एफपीआई धारिता के मामलों में अतिरिक्त खुलासे की जरूरत पड़ेगी अगर ऐसा संकेंद्रीकरण 10 दिन की अस्थायी अवधि को पार करता है। ऐसी एफपीआई को किसी भी स्वामित्व, आर्थिक हितों या नियंत्रण अधिकारों वाली तमाम कंपनियों के आंकड़े मुहैया कराने होंगे।

नए एफपीआई को अपने निर्माण के बाद से छह माह की रियायत हासिल होगी और बंद हो रहे एफपीआई को भी यह छूट होगी। उन्हें सूचना मुहैया कराने, केंद्रीकरण कम करने या काम समेटने के लिए छह माह का समय दिया जाएगा।

First Published : June 1, 2023 | 9:53 PM IST