रेशम हमेशा से लोगों की पसंद रहा है। लक्जरी, सुंदरता और आराम के लिए प्रसिद्घ रेशम के धागे की खोज 2640 ईसापूर्व में चीन की महारानी हिज लिंग शी ने की थी। रेशम के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक और सबसे बड़े उपभोक्ता भारत को वैश्विक, खासकर चीनी रेशम निर्माताओं से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
इस चुनौती से मुकाबला करने और रेशम बुनकरों के लिए दीर्घकालिक बाजार मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम लिमिटेड (एनएचडीसी) ने डेवलपमेंट कमिश्नर फॉर हैंडलूम्स (डीसीएच) के तत्वावधान में हथकरघा बुनकरों को लाभ पहुंचाने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। इन योजनाओं में हथकरघा उत्पादों के विपणन में मदद पहुंचाया जाना भी शामिल है। इसमें क्षेत्र के उत्पादों को दूसरे क्षेत्र में लोकप्रिय बनाने के लिए नेशनल हैंडलूम एक्सपो /स्पेशल एक्सपो यानी प्रदर्शनियों के आयोजन के लिए दी जाने वाली मदद भी शामिल है।
रेशम के विशेष उत्पादों की बिक्री के लिए ऐसी राष्ट्रीय स्तर की एक प्रदर्शनी इन दिनों लखनऊ में आयोजित की जा रही है। एनएचडीसी के प्रबंध निदेशक जे. के. बवेजा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘त्योहारी सत्र शुरू होने वाला है और हमें इस साल 4 करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री होने की उम्मीद है।’
उन्होंने कहा, ‘देश में कृषि क्षेत्र के बाद हथकरघा क्षेत्र सबसे ज्यादा लोगों की रोजी–रोटी का जरिया है। हथकरघा क्षेत्र प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 85 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराता है। हालांकि विद्युत करघा क्षेत्र और बुनाई में प्रौद्योगिकी प्रगति से हथकरघा क्षेत्र के लिए खतरा पैदा हो गया है, लेकिन पोचमपल्ली, पैठाणी, कंजीवरम, आमदानी, बलुचरी, इक्काट जैसे रेशम उत्पादों की खासियत अभी भी बरकरार है और भारत एवं विदेशों में इनकी अच्छी मांग है।’
राज्य सरकार की विभिन्न संस्थाएं एवं प्रमुख समितियां, हथकरघा बुनकरों की प्रमुख समितियां और हथकरघा एजेंसियां इस एक्सपो में शिरकत कर रही हैं।
बवेजा ने कहा, ‘ऐसी प्रदर्शनियों के जरिये प्रतिभागियों को न सिर्फ अपने उत्पादों को उचित दरों पर बेचने का मौका मिलता है बल्कि इनमें उन्हें ग्राहकों की पसंद जैसे कि रंग, डिजाइन आदि को जानने का भी अवसर मिलता है जिससे वे भविष्य में अपने उत्पादों में सुधार लाते हैं।’
प्रदर्शनी में 15 राज्यों के 83 स्टॉल लगाए गए हैं। प्रदर्शनी में शिरकत करने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख रूप से शुमार हैं। उत्तर प्रदेश अपनी बनारसी रेशम साड़ियों के लिए प्रसिद्घ है। बनारसी रेशम साड़ियों का योगदान महज 22 टन सालाना है। वहीं राज्य में मांग 5,000 टन की है। वाराणसी, आजमगढ़ और मुबारकपुर रेशम कार्य के प्रमुख केंद्र हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि देश में धागे का अपर्याप्त उत्पादन एक बड़ी गलती है। वहीं अन्य लोग महसूस करते हैं कि इस उद्योग की खराब दशा के लिए उत्पादित सामानों की खराब मार्केटिंग भी जिम्मेदार है जिससे हथकरघा बुनकरों को नुकसान उठाना पड़ता है। इस प्रदर्शनी में बनारस से भाग लेने आए प्रतिभागी इकबाल अहमद ने बताया, ‘निर्माता मार्केटिंग में दक्ष नहीं हैं और वे अच्छी निर्माण शैली के साथ काम नहीं कर रहे हैं। अधिकांश बुनकर दशकों पुरानी डिजाइन पर काम कर रहे हैं जो आज के समय को देखते हुए बाजार के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकती। इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि पहले बाजार की मांग की पहचान की जाए और तब उसके अनुसार उत्पाद तैयार
किए जाएं।’
इकबाल आशीर्वाद सिल्क हैंडलूम फेब्रिक को–ऑपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष हैं और वे पिछले 6 साल से एक्सपो में लगातार भाग लेते रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘ऐसे एक्सपो हमारे उत्पादों को खरीदाताओं की बड़ी तादाद के समक्ष प्रदर्शित करने का अच्छा जरिया हैं जो वाराणसी में बैठे–बिठाए संभव नहीं है।’ पिछले साल लखनऊ एक्सपो में इकबाल ने 3 लाख रुपये के उत्पादों की बिक्री की थी। पश्चिम बंगाल के एक प्रतिभागी ने बताया कि रेशम का उपभोक्ता प्रोफाइल बदल रहा है। हालांकि बेहतरीन रूप से तैयार किया गया रेशम एक खास वर्ग के लिए है, लेकिन अब आम उपभोग के लिए यह उत्पाद जगह बना चुका है। इसके अलावा युवा पीढ़ी के नया उपभोक्ता वर्ग भी रेशम के प्रति आकर्षित हुआ है।