पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मनजीत सिंह कंग ने हाल ही में कहा था कि अगर पंजाबी खेतों में काम करने से कतराते रहे, तो कृषि क्षेत्र का मशीनीकरण ही एकमात्र रास्ता बचता है।
पीएयू के कुलपति का यह कथन अब सच साबित हो रहा है। धान की बुआई का मौसम चल रहा है, लेकिन पंजाब के गांवों में बुआई करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। पूरे पंजाब में 26 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की बुआई होनी है।
10 जून को यह काम शुरू हुआ है और 20 दिनों के दौरान इस काम को पूरा करना है। लेकिन मजदूरों की कमी को देखते हुए ऐसा संभव नहीं दिखता। प्रवासी मजदूरों का पलायन, कब शुरू हुआ पंजाब में मजदूरों के प्रवासों का दौर, क्या फिर से लौटेंगे प्रवासी मजदूर व इससे जुड़ी अन्य चीजों की जानकारी कड़ी-दर-कड़ी पेश करेंगे। पहले अंक में प्रस्तुत है, पंजाब के प्रवासी मजदूरों का क्यों हो रहा है पलायन? राजीव कुमार की रिपोर्ट :
लुधियाना के बस स्टैंड पर इन दिनों पंजाब के किसानों की नजरें टिकी हैं। वे इस आस में हैं कि दिल्ली के रास्ते बिहार के मजदूर लुधियाना आ जाएं और वे उन्हें अपने खेतों में काम करने ले जाएं। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मजदूरों ने पंजाब से अपना मुंह मोड़ लिया है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अर्थशास्त्री एम.एस. सिध्दू कहते हैं, ‘पिछले साल तक इस अवधि के दौरान लुधियाना के बस स्टैंड प्रवासी मजदूरों से भरे नजर आते थे, लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई है। प्रवासी मजदूरों का प्रदेश में आना करीब 90 फीसदी तक घटा है। अब तो सिर्फ वही मजदूर पंजाब में बचे हैं, जो स्थायी हो चुके हैं।
पंजाब के 20 जिलों में कुल 12,278 गांव हैं और वहां फिलहाल 4.21 लाख प्रवासी मजदूर हैं। लेकिन ये खेतों में काम करने वाले मजदूर नहीं हैं। ये लोग 10-15 साल पहले पंजाब आए थे। अब शहरों में रेहड़ी-पटरी व अन्य छोटे-मोटे काम कर जीवनयापन कर रहे हैं।
पंजाब में प्रवासी मजदूरों पर कई सालों से काम कर रहे सिध्दू कहते हैं कि इतनी ही संख्या में धान की बुआई के दौरान प्रवासी मजदूर पंजाब आते थे और महीने-दो महीने काम कर वापस हो जाते थे। लेकिन इस साल से देश भर के गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना को लागू करने के कारण मजदूरों को उनके अपने प्रदेश में ही काम मिल रहा है।
प्रवासी मजदूरों के पलायन के बारे में पूछने पर पीएयू के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आरएस सिध्दू कहते हैं, ‘पंजाब में फैमिली लेबर (परिवार के साथ रहने वाले श्रमिक) की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। इसका मुख्य कारण है कम दर पर मजदूरी।
उन्होंने यह भी बताया कि पहले पंजाब में कई किस्म की खेती होती थी, लेकिन अब मुख्य रूप से गेहूं व धान की ही खेती हो रही है। कई किस्म की खेती के कारण मजदूरों को स्थायी तौर पर रखा जाता था पर अब इसके चलन में भारी कमी आ गयी है। लिहाजा प्रवासी मजदूरों का पलायन बढ़ गया है।
(कल के अंक में पढ़ें कब और कैसे शुरू हुआ मजदूरों के प्रवास का दौर?)