शहर के कुटीर, छोटे और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के मूल उत्पादों को नकलची उत्पादों से बचाने की कवायद अब शुरू हो चुकी है।
बाजार में तेजी से पांव पसारते नकली उत्पादों से बचाने के लिए कानपुर स्थित एमएसएमई विकास संस्थान ने बार कोडिंग इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। इलाके के छोटे और मझोले उद्यम (एसएमई) समूहों को संस्थान द्वारा कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और आईएसओ सर्टिफिकेट के बारे में मुफ्त सूचनाएं मुहैया कराई जाएंगी।
इस नई प्रणाली के लागू हो जाने से स्टोर में बड़े पैमाने पर सामानों को बनाए रखने में मदद मिलेगी और साथ ही शॉपलिफ्टिंग में भी कमी आएगी। संस्थान के सहायक निदेशक (तकनीक) उमेश चंद्रा शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस तरह के समूहों की पहचान पहले ही शुरू की जा चुकी है और इन उत्पादों की बार कोडिंग से यह सुनिश्चित किया जाए कि उत्पादों की गुणवत्ता को नहीं बनाए रखने वाले निर्माताओं के लाइसेंस को रद्द कर दिया जाएगा।
उन्होंने बताया, ‘इस प्रणाली से उपभोक्ता और रिटेलर दोनों को ही फायदा मिलेगा।’ इसके अलावा, संस्थान द्वारा उन उद्यमों को 15 हजार रुपये तक ऋण भी दिया जाएगा जो नई कोडिंग योजना के तहत अपना पंजीकरण कराते हैं। इस प्रक्रिया से सिर्फ माउस के एक क्लिक पर उत्पादों के स्थान, निर्माण की तारीख, उत्पादों का वजन आदि महत्वपूर्ण सूचनाएं आसानी से उपलब्ध हो सकेगा।
शुक्ला ने बताया कि साबुन और सर्फ, पेंट और नालीदार बक्से जैसे कल्सटर उत्पादों को पहले चरण में पंजीकृत किया जाएगा। राज्य के बीमार पड़े एसएमई उद्योगों को बाजार में उपलब्ध नकली उत्पादों से भारी घाटे का सामना करना पड़ रहा है। शुक्ला ने बताया, ‘नकली उत्पादों की सप्लाई की वजह से हम लोग अपने उपभोक्ता के विश्वास और सद्भावना को खोते जा रहे हैं।’
उल्लेखनीय है कि सूबे में जहां छोटे और मझोले उद्योगों का कारोबार करोड़ों में किया जाता है वहीं यह पूरे राज्य भर में करीब 15 लाख लोगों को रोजगार भी मुहैया करती है। बहरहाल, स्थानीय कारीगरों और निर्माताओं को भी जिला प्रशासन के साथ पंजीकृत करने की आवश्यकता है ताकि वे भी उचित निर्माताओं की पहचान के लिए डाटाबेस की तैयारी कर सके।