सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों से कहा है कि वे राज्य के गन्ना किसानों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच द्वारा तय दर के तहत भुगतान करें।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार के एक अंतरिम आदेश के तहत यह निर्देश दिया। कोर्ट ने 3 हफ्तों के भीतर इस दर पर बकाया राशि का भुगतान सुनिश्चित करने को भी कहा है। लखनऊ बेंच द्वारा तय दर इलाहाबाद होई कोर्ट की मुख्य बेंच द्वारा तय कीमत से ज्यादा है।
सर्वोच्च अदालत अपने इस आदेश की समीक्षा जुलाई में करेगा। उम्मीद है इस समय तक गन्ने की कीमत तय करने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट अपना फैसला सुना देगी। जस्टिस अजित पसायत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने किसी खास राशि का जिक्र किए बगैर चीनी मिलों को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया। बकाया राशि नई दरों के आधार पर तय की जाएंगी।
कोर्ट के मुताबिक, 2006-07 के लिए रिफंड का कोई दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा। उत्तराखंड ने पहले ही यूपी में घोषित कीमतों के हिसाब से अपने यहां गन्ने की कीमत तय करने का ऐलान कर दिया है। इसके मद्देनजर अदालत का कहना था कि यह आदेश इस राज्य भी पर लागू होगा। नतीजतन लखनऊ हाई कोर्ट द्वारा 2007-08 के लिए तय दर पेराई सत्र 2007-08 से लागू होगी।
अलग-अलग पेराई सत्र संबंधी हाई कोर्ट के विभिन्न आदेशों के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार और कई चीनी मिलों ने इन फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में रोजाना सुनवाई के आदेश के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
कोर्ट ने गन्ने के न्यूनतम वैधानिक मूल्य और राज्य द्वारा पेश गई कीमतों के संबंध में कई अंतरिम आदेश जारी किए थे, जिससे चीनी मिल मालिक और सरकार संतुष्ट नहीं थे। इस मामले में हाई कोर्ट की दो बेंचों के समानांतर आदेश की वजह से यह मुद्दा और उलझ गया था। हाई कोर्ट के दोनों बेंचों के आदेश में बकाया राशि संबंधी आंकड़े अलग-अलग हैं।
कीमतें तय करने के मामले में सरकार के अधिकार की कानूनी व्याख्या के मद्देनजर भी राज्य सरकार और चीनी मिलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बजाज हिंदुस्तान और मोदी शुगर मिल्स के मुताबिक, कोई बकाया राशि नहीं है, जबकि सरकार का कहना है कि इन मिलों पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये की बकाया राशि पड़ी है।