असम में भाजपा ने लगाया पूरा दम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 6:46 AM IST

असम की राजनीति में यह कयास लगाना शुरू  हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोबारा राज्य की सत्ता पर आरूढ़ हुई तो अमित शाह के नजदीकी हिमंत विश्व शर्मा निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की जगह ले सकते हैं। शर्मा का हाल में दिया गया बयान इस कयास को और हवा दे रहा है। असम सरकार में वरिष्ठ मंत्री शर्मा ने हाल में ही कहा था, ‘भाजपा में निर्णय कौन करेगा इसे लेकर कभी कोई संशय नहीं रहा है। चुनाव के बाद पार्टी का संसदीय दल मुख्यमंत्री के नाम पर निर्णय लेगा।’ शर्मा गृह मंत्री शाह के पूर्वोत्तर भारत की राजनीति में खास रणनीतिकार माने जाते हैं।
शर्मा जलुकाबरी क्षेत्र से दोबारा उम्मीदवार बनाए गए हैं। शर्मा के बयान से यह कयास लगना शुरू हो गया है कि इस बार बाजी उनके हाथ लग सकती है। गुवाहाटी में राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि उम्मीदवारों के चयन में सोनोवाल के बजाय शर्मा का दबदबा रहा है। एक सूत्र ने कहा, ‘कुछ बात तो जरूर है नहीं तो शर्मा इस तरह का बयान नहीं देते।’ असम में 2016 में पहली बार शानदार बहुमत से सत्ता में आने वाली भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने उस समय कहा था कि सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने एक ऐसा निर्णय लिया था, जो सामान्य परिस्थितियों में नहीं लिया जा सकता था। सोनोवाल असम गण परिषद (एजीपी) से 2011 में भाजपा में शामिल हुए थे।
सूत्र ने कहा, ‘अमूमन भाजपा संघ परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति का चयन शीर्ष पदों पर नहीं करती है, लेकिन उस समय सोनोवाल का कद काफी ऊंचा था। वर्ष 2016 में राज्य विधानसभा चुनाव में बांग्लादेश से आए लोगों का मुद्दा का गरम था और ऐसी धारणा बन गई थी कि कांग्रेस ने अपने 15 वर्षों के शासन में पड़ोसी देश से मुस्लिम समुदाय के लोगों को आने की पूरी छूट दे रखी थी।’ सोनोवाल ने 1983 में केंद्र सरकार द्वारा लागू अवैध प्रवासी अधिनियम को चुनौती दी थी। हालांकि इस अधिनियम में बांग्लादेश से ‘अवैध’ रूप से आए लोगों की पहचान का कानूनी प्रावधान जरूर था लेकिन असम सरकार द्वारा ‘पीडि़त’ लोगों को सुरक्षा भी गई थी। इससे ऐसे लोगों को असम से बाहर करना मुश्किल हो गया था। सोनोवाल उस वक्त कानूनी लड़ाई जीत गए जब उच्चतम न्यायालय ने यह कानून निरस्त कर दिया। सूत्र ने कहा, ‘हालांकि वह स्वयं अपने और भाजपा के लिए राजनीतिक साख बनाने में असफल रहे।’
शर्मा का बयान इसलिए भी भविष्य में होने वाले बदलाव की ओर इशारा कर रहा है क्योंकि भाजपा के राज्य सभा सांसद एवं पूर्व कांग्रेसी भुवनेश्वर कालिता ने जोर दिया कि केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं से ‘सभी समुदाय के लोगों को मिले लाभ’ भाजपा का अहम चुनावी राग होगा। कालिता सोनोवाल के काम-काज पर मोटे तौर पर खामोश रहे हैं और राज्य में विकास का लगभग सारा श्रेय केंद्र की योजनाओं को ही दिया है। उन्होंने कहा, ‘राज्य में चारों तरफ विकास हो रहा है। पहली बार प्रत्यक्ष रकम अंतरण प्रणाली से लोगों को बिचौलियों से मुक्ति मिली है और रकम उनके सीधे बैंक खाते में पहुंच रही है।’ केवल उन्होंने राज्य से संबंधित उस योजना का ही जिक्र किया जिसके तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में आने वाले 58 लाख लोगों को असीमित चावल और बिना राशन कार्ड वाले परिवारों के प्रत्येक सदस्यों को 5 किलोग्राम चावल वितरित किए गए। हालांकि कांग्रेस इस चुनौतीपूर्ण चुनाव से पहले अपनी तैयारी मजबूत करने के लिए सभी दांव चल रही है। 15 वर्षों तक राज्य की बागडोर थामने के बाद 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें कम होकर 26 रह गईं जबकि भाजपा 60 सीट झटकने में कामयाब रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का पलड़ा भारी रहा। हालांकि तब से कांग्रेस बदरूद्दीन अजमल के ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ, भाजपा की पूर्व सहयोगी), माकपा, भाकपा और आंचलिक गण मोर्चा के साथ एक महागठबंधन तैयार किया है। राज्य में चुनाव प्रबंधन की कमान पार्टी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दी है और चुनाव में पार्टी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाएगी।
कांग्रेस ने उन सीटों पर अधिक जोर लगाने का फैसला किया है जहां उसके जीतने की संभावना अधिक है और बूथ स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह फंूकने की रणनीति भी तैयार की है। दूसरी तरफ भाजपा ने कांग्रेस की इन कवायदों को बेकार करार दिया है।  
धु्रवीकरण की बात इस आधार पर की जा रही है कि कांग्रेस का गठबंधन एआईयूडीएफ से होने से  मुश्किल वोट एक साथ आ सकते हैं और इसकी देखादेखी हिंदू वोट भी एकजुट हो सकते हैं। एआईयूडीएफ बांग्ला बोलने वाले मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करती है और असम के निचले भाग के एक बड़े हिस्से और बराक घाटी में इसका दबदबा है।
असम भाजपा अध्यक्ष एवं सोरभाग से विधायक रंजीत कुमार दास ने ऊपरी असम में सीटों का चयन किया। ये सीटें कांगे्रस ने 2016 में जीती थी, लेकिन अब उसके लिए इन्हें बचा पाना मुश्किल लग रहा है। इन सीटों में सरूपथर, गोलाघाट, तिताभर (पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगई का विधानसभा क्षेत्र), मरियानी, नजीरा, शिवसागर और दूमदूमा शामिल हैं। दास ने कहा, ‘हिंदू, अहोम और आदिवासी सभी इस बात से डरे हैं कि अगर कांग्रेस-एआईयूडीएफ की सरकार आई और अजमल गृह मंत्री बनाए गए तो उनके लिए हालात मुश्किल हो जाएंगे। निचले असम और बराक घाटी में भी लोगों को ऐसी आशंका लग रही है। बहुत से बहुत दो या तीन सीटों पर कांटे का मुकाबला हो सकता है।’
तेजपुर सांसद पल्लव लोचन दास का रवैया अधिक तर्कपूर्ण लगता है। उन्होंने माना कि बीपीएफ के साथ कांग्रेस का गठबंधन बोडो क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) में भाजपा की उम्मीदों को प्रभावित कर सकता है। भाजपा ने बीपीएफ के साथ मिलकर 2016 में इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया था। दिसंबर 2020 में जब बीटीसी के लिए चुनाव हुए थे तो किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था लेकिन बीपीएफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा ने बीपीएफ के साथ अपना पांच वर्ष पुराना संबंध तोड़ लिया और बीटीसी में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के साथ मिलकर बीटीसी की कार्यकारी परिषद का गठन किया था। बाद में जीएसपी के निर्वाचित सदस्य यूपीपीएल का हिस्सा बन गए।

First Published : March 22, 2021 | 11:08 PM IST