एक समय था जब भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। लेकिन आज देश के पास कोई समुचित ढांचा और पर्याप्त पर्यावरण नियम नहीं होने की वजह से यह विकसित देशों का पसंदीदा इलेक्ट्रॉनिक कचरा घर बनता जा रहा है।
यहां अमेरिका, यूरोप और कनाडा जैसे विकसित देशों से आने वाले सभी प्रकार के खतरनाक ई-कचरे का भंडार खतरनाक रूप लेता जा रहा है। जब पर्यावरणविदों और अनुसंधान समूहों ने भारत में फेंके जा रहे ई-कचरे के पीछे की मुख्य वजह जानने की कोशिश की तो पाया गया कि कचरे को निपटाने और उसे नवीकरण करने की प्रणाली पर बढ़ती लागत की वजह से विकसित देश यह कदम उठा रहे हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक अमेरिका में एक कम्प्यूटर को फिर से बनाने में करीब 20 डॉलर का खर्च आता है जबकि भारत में इसे महज 2 डॉलर में दोबारा विकसित कर दिया जाता है। दिल्ली स्थित रिसर्च ऐंड एडवोकेसी ग्रुप टॉक्सिक लिंक के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने बताया कि प्रशासन तंत्र की कमजोरी, कठोर पर्यावरण नियमों की कमी, प्रभावशाली तंत्र की कमजोरी और अपेक्षाकृत सस्ते मजदूरों की मौजूदगी की वजह से देश में दिनों-दिन ई-कचरा बढ़ता जा रहा है।
सिन्हा ने बताया कि इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में असाधारण वृध्दि की वजह से ई-कचरे में जबरदस्त इजाफा देखने को मिल रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर साल करीब 3,30,000 टन ई-कचरा फेंका जाता है, जिसमें अवैध आयात को शामिल नहीं है। उन्होंने ई-कचरे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि इससे भविष्य में पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचेगी।
बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से जो कूड़ा निकलता है, उसकी मात्रा करीब 150,000 टन है और आशंका जताई जा रही है कि 2012 तक यह बढ क़र 800,000 टन तक हो जाएगा। ई-कचरा पैदा करने के मामले में मुंबई और दिल्ली सबसे आगे हैं जबकि कोलकाता भी खतरे के निशान पर है।
जादवपुर विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम और टॉक्सिक लिंक के संयुक्त अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि कोलकाता में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से करीब 9,000 टन कचरा पैदा होता है, जिसमें कम्प्यूटर और उससे जुड़े अन्य उपकरणों से उत्पन्न कचरे की भागीदारी करीब 3,000 टन है।
दुनियाभर के कुछ देश ई-कचरे पर रोक लगाने के लिए 1998 में बने स्विस कानून या फिर यूरोपीय संघ द्वारा हाल ही में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से उत्पन्न होने वाले कचरे पर प्रतिबंध लगाने के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किया गया है, उसे अमल में ला रहे हैं। हालांकि ई-कचरे के उत्पादन और अवैध आयात पर रोक लगाने में भारत नाकाम साबित हुआ है।
जापान, दक्षिण कोरिया और ताईवान जैसे देशों में विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा ई-कचरे को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा रहा है और इसे दोबारा इस्तेमाल में लाने के लिए पहल भी की जा रही है। वहीं भारत में ई-कचरे के निपटान के लिए पर्यावरण प्रबंधकों द्वारा 86 पन्नों के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं और जिसे अमल में लाने के लिए कानूनी बाध्यता भी नहीं है। ये दिशा-निर्देश स्वैच्छिक कार्रवाइयों पर आधारित हैं।