भारतीय हीरों की मांग कम होने की वजह से हीरों के कटिंग, फिनिशिंग और पैकिंग का काम कम हो गया है।
नतीजतन इस वर्ष लाखों कारीगारों को काम से निकाला गया, कई बड़ी दिग्गज कंपनियों के हाथ से डायमंड ट्रेडिंग कंपनी (डीटीसी) का काम निकल गया।
साल के अंतिम महीनों में लगभग 90-100 दिन पूरी तरह से हीरा कारखाने बंद पड़े रहे और हीरा उद्योग का काम घटकर सिर्फ 30-40 फीसदी ही बचा ।
वर्ष 2008 में बुरी तरह से परेशान होने वाले इस उद्योग के लिए वर्ष 2009 एक नई उम्मीद लेकर जरूर आ रहा है लेकिन पूरे देश में लगभग 22 से 25 लाख लोगों को काम देने वाले इस उद्योग में काम करने वालों की संख्या सिर्फ 10 से 15 लाख लोगों की ही रहने वाली है।
दुनिया में 10 बिकने वाले हीरों में से 9 भारत में तराशे जाते हैं। कारोबार सालाना 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा था, लेकिन वर्ष 2008 की मंदी ने इसकी चाल को पलट दिया। इसमें सबसे मुख्य वजह अमेरिकी मंदी से पैदा हुई वैश्विक आर्थिक तंगी रही।
भारतीय हीरों में से 70 फीसदी हीरे अमेरिका जाते थे। मुंबई में हीरा उद्योग के विकास के लिए स्थापित सीप्ज (सांताक्रु ज इलेक्ट्रॉनिक एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन)में मंदी की मार और कंपनियों के बेवफाई के कारण कारीगारों के बेरोजगारी की कहानी साफ तौर पर देखी जा सकती है।
सीप्ज में कुल 181 डायमंड कंपनियों के कारखाने हैं। औसतन एक कंपनी में 600 कारीगर काम करते हैं। यहां लगभग 50 फीसदी से ज्यादा डायमंड इकाइयों में ताला लग चुका है। यही हाल मुंबई के दूसरे जगहों जैसे दहिसर, घाटकोपर, गोरेगांव, कांदिवली, अंधेरी और विरार जैसे मुख्य केन्द्रों पर हुआ है।
डायमंड मार्केट के जानकार हार्दिक हुंडिया कहते हैं कि अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों से मांग पिछले 6 महीनों में कम होने या कहे लगभग बंद होने, कच्चे हीरों की कीमतों में बढ़ोतरी और जरूरत से ज्यादा लोगों को काम देने की वजह से हुआ है।
महेन्द्र सी डायमंड लिमिटेड के चेयरमैन संजय शाह मानते हैं कि 2009 हमारे लिए एक आशा की किरण जरूर है, कारोबार में सुधार होगा लेकिन मजदूरों की संख्या कम जरुर करनी पड़ेगी। भारतीय हीरा उद्योग में इस बार लगभग 40 फीसदी की गिरावट हुई है।