इस वक्त हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के कर्मचारी अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि राज्य मंत्रिमंडल ने अलग ट्रांसमिशन कंपनी स्थापित करने को मंजूरी दे दी है।
नई बिजली परियोजनाओं में ट्रांसमिशन का अधिकार प्रस्तावित कंपनी के पास रहेगा। बिजली बोर्ड के कर्मचारियों का मानना है कि नई कंपनी बोर्ड से ट्रांसमिशन अधिकार को अंतत: वापस ले लेगी।
हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड (एचपीएसईबी) कर्मचारी संघ के उप महासचिव एच एच वर्मा ने बताया कि राज्य सरकार ने बिजली कर्मचारियों को धोखा दिया है। सरकार ने अभी कुछ दिन पहले ही हम लोगों को विश्वास दिलाया था कि बोर्ड को तीन भागों में बांटने का उनका कोई इरादा नहीं है। वर्मा ने आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान में बिजली का उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण का काम बोर्ड ही कर रहा है लेकिन राज्य सरकार बोर्ड को तीन भागों में बांटने की कोशिश कर रही है।
विद्युत अधिनियम 2003 के अनुसार इस साल के 31 मई तक बोर्ड को तीन भागों में बांटने का काम पूरा हो जाना चाहिए था। राज्य के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हाल ही में इस देरी के बारे में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे से बातचीत की। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया कि इस बाबत राज्य सरकार को तीन महीने का और समय दिया गया है।
वर्मा ने कहा कि ऐसे में सरकार को नई कंपनी के लिए हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए थी। वर्मा का कहना है कि राज्य में ट्रांसमिशन व वितरण क्षति केवल 15 प्रतिशत है जबकि अन्य राज्यों में यह 20 प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में नई कंपनी बनाने का कोई औचित्य नहीं है।
सरकार को जल्दबाजी में फैसला करने से पहले कर्मचारियों को विश्वास में लेना चाहिए था। इस बारे में अधिकारियों से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि नई ट्रांसमिशन कंपनी के गठन के लिए अभी तक कोई अधिसूचना नहीं जारी की गई है।