चीनी मिलों के निजीकरण की योजना को अमली जामा पहनाने के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की 33 सहकारी चीनी मिलों को बेचने की कोशिश एक बार फिर तेज कर दी है।
राज्य सरकार ने ऐसी ही कवायद पिछले साल भी की थी। दीगर बात है कि पिछली कोशिश में सरकार को खासी कामयाबी नहीं मिल सकी थी। इन 33 मिलों में से 22 मिलें चालू हालत में हैं।
राज्य सरकार ने ऐसी कंपनियों से योग्यता के लिए अनुरोध पत्र (आरएफक्यू) और पेशकश पत्र (आरएफपी) मंगाए हैं जिन्हें इससे पहले केंद्र या राज्य सरकार की किसी चीनी मिल के निजीकरण का अनुभव हो।
सरकार जल्द ही घाटे में चल रही 28 अन्य सहकारी चीनी मिलों को बेचने की प्रक्रिया भी शुरू करेगी। इनमें से ज्यादातर मिलों की क्षमता कम है और ये ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। इन मिलों की खरीद के लिए आवेदन करने की अंतिम तारीख 3 फरवरी है।
आवेदन के लिए चीनी उद्योग और गन्ना विभाग के प्रधान सचिव के पास दस्तावेज जमा करने होंगे। बीते साल यूफ्लैक्स, गैमन और चङ्ढा समूह इन मिलों को खरीदने की दौड़ में शामिल हुए थे और उन्होंने सितंबर 2008 में इसके लिए आवेदन जमा कर दिया था।
हालांकि बाद में मामला आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि सरकार ने इन मिलों का मूल्यांकन 2,200 करोड़ रुपये किया था। जबकि बोलीदाता 600 करोड़ रुपये से अधिक देने के लिए तैयार नहीं थे।
आधिकारिक सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘इस बार सरकार ने वित्तीय और तकनीकी लिहाज से अधिक लचीला रवैया अपनाया है।’ जून 2008 में बजाज हिंदुस्थान, डालमिया समूह, मैग्ना और पौंटी चङ्ढा ने इस मिलों के लिए अभिरुचि पत्र (ईओआई) दाखिल किया था।
हालांकि बाद में इस सभी बोलीदाताओं के खिलाफ वसूली नोटिस जानी होने पर ईओआई को रद्द कर दिया गया। इसके अलावा कुछ और अनियमितताएं भी उजागर हुईं थीं। इसके बाद सरकार ने बोली की शर्तो में बदलाव किया।
नए प्रावधानों के मुताबिक जुलाई, 2008 में गैमन, डालमिया, इरा, चङ्ढा और यूफ्लैक्स ने अभिरुचि पत्र दाखिल किया। इनमें से सिर्फ गैमन, यूफ्लैक्स और चङ्ढा ने औपचारिक बोली दाखिल की।