देश भर के 30 से अधिक किसान संगठनों ने कृषि क्षेत्र को विश्व व्यापार संगठन से अलग करने की मांग की है।
उनका कहना है कि ऐसा करने पर कृषि व गैर कृषि कार्यों से जुड़े 80 करोड़ लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। फोरम फॉर बायोटेक्नोलॉजी एंड फूड सिक्युरिटी एंड अंकटाड द्वारा आयोजित सम्मेलन में किसान नेताओं ने कहा कि हाल ही में कृषि व गैर कृषि बाजार में पहुंच को लेकर जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है उसे स्वीकार कर लेने पर देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
इस ड्राफ्ट में भारतीय बाजार को सस्ती आयातित वस्तुओं के लिए खोलने की सिफारिश की गयी है। जुलाई के पहले सप्ताह में इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन की बैठक होने की संभावना है। महाराष्ट्र शेतकरी संघटना के नेता विजय जवानडिया कहते हैं, ‘किसान नेताओं ने इस ड्राफ्ट के प्रस्तावों को एक सिरे से खारिज कर दिया है। और सरकार ने गुजारिश की है कि भारत को इस वार्ता से अलग रखा जाए।’
उन्होंने बताया कि बीते दिनों विदर्भ में कपास के किसानों ने जो खुदकुशी की, वह इसी रियायत का नतीजा था। पंजाब के भारतीय किसान यूनियन (एक्ता) के नेता सुखदेव सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि पंजाब किसी भी कीमत पर अपनी खेती को विश्व व्यापार संगठन के उदारीकरण का शिकार नहीं होने देगा। उन्होंने कहा कि अगर भारत इस संधि को स्वीकार लेता है तो देश को खाने के लिए भीख मांगने की नौबत आ जाएगी। इस ड्राफ्ट से मत्स्य पालन पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे है।
नेशनल फिशवर्कर्स फोरम के नेता एनडी कोली के मुताबिक डाफ्ट के प्रस्तावों को स्वीकार करना सुनामी से ज्यादा खतरनाक होगा। देश के मछली पालन क्षेत्र के विकास के लिए सरकारी निवेश की जरूरत है। वे कहते हैं कि जापान व कोरिया से मछली के आयात के कारण सैकड़ों मछली पालकों की रोजी-रोटी संकट में आ गयी है।
इन किसान नेताओं को इस बात की आशंका है कि कृषि के क्षेत्र में अगर दोहा वार्ता को सफल तरीके से अंजाम दे दिया जाता है तो विकासशील राष्ट्रों में खाद्य के लिए दंगे होंगे। उन्होंने कहा कि विकसित देशों ने इस स्थिति में भी अपने यहां कृषि रियायत में किसी प्रकार की कटौती नहीं की है।