महक में इतनी ताकत है कि वह हमें जिंदादिल, खुशमिजाज और तरोताजा बना सकती है। महक की ताकत का अंदाजा लगने के साथ ही इत्र का कारोबार भी तेजी से बढ़ा और आज यह कारोबार बढ़कर 730 करोड़ रुपये का हो गया है।
लेकिन यहां हम इस बाजार में मामूली सी हिस्सेदारी रखने वाले छोटे कारोबारियों और उनकी समस्याओं की बात करेंगे। भारत में कन्नौज इत्र उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र और पान मसला तथा गुटखा उद्योग इत्र के सबसे बड़े खरीदार हैं।
कन्नौज स्थित सुगंध एवं सुरस विकास केन्द्र (एफएफडीसी) के प्रधान निदेशक गोरख प्रसाद ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘इत्र उद्योग संभावनाओं भरा हुआ है। जरुरत बस लोगों में उद्योग को लेकर जागरुकता बढ़ाने की है।’ उन्होंने बताया कि विदेशों में इन उत्पादों का बहुत बड़ा बाजार है, जहां कारोबारियों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि इत्र कारोबारियों को खरीदार खोजे नहीं मिल रहे हैं।
नहीं मिल रहे खरीदार
मैसर्स दयाराम एंड राम नारायण ज्ञानोदय प्रकाश ने बताया कि, ‘मानकीकरण के अभाव में निर्यात बाजार में कन्नौज की हिस्सेदारी तेजी से घट रही है। ज्यादातर इकाइयों में आज भी पुराने तरीकों से ही इत्र तैयार किया जा रहा है।’ उन्होंने बताया कि भारतीय मानक ब्यूरो ने चंदन तेल के लिए मानक बनाए हैं, लेकिन दूसरे उत्पादों के लिए कोई मानक नहीं है।
मानकों के अभाव में वैश्विक बाजार में टिके रह पाना काफी मुश्किल हैं। इस बारे में प्रसाद ने बताया कि मानकीकरण, आकर्षक पैकेजिंग और हर्बल उत्पाद का हवाला देकर इत्र के निर्यात को बढ़ाया जा सकता है। दुनिया में पश्चिम एशिया इत्र का सबसे बड़ा खरीदार है। दिल्ली स्थित इत्र के खुदरा कारोबारी मार्कंडेय चौबे ने बताया कि इत्र को लेकर लोगों की पसंद तेजी से बदल रही है।
लोग रसायनों से बने ब्रांडेड इत्र अधिक पसंद कर रहे हैं। इसकी वजह ब्रांडेड इत्र की आकर्षक पैकेजिंग, विज्ञापन और कम कीमत है। परंपरागत इत्र महंगे हैं और समुचित मार्केटिंग नेटवर्क के अभाव में उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाते हैं।
कहां-कहां है बाजार
इत्र की खपत के लिहाज से पान मसाला, गुटखा और तंबाकू उद्योग का शीर्ष स्थान है। भारत में तैयार 80 प्रतिशत सुगंधित उत्पादों की खपत इन उद्योगों में ही होती है। इसके बाद व्यक्तिगत तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले परफ्यूम की हिस्सेदारी है। इस खंड में परंपरागत इत्र कारोबार तेजी से अपनी हिस्सेदारी खो रहा है। भारत में मिठाइयां बनाने के लिए भी गुलाब और केवड़ा के इत्र का इस्तेमाल किया जाता है।
अगरबत्ती, हेयर ऑयल, गंध चिकित्सा और दवा उद्योग भी इत्र के खरीदार हैं। परंपरागत भारतीय इत्र में गुलाब, केवड़ा, बेला, चमेली, मेंहदी, कदम, गेंदा, केसर और कस्तूरी शामिल हैं। इसके अलावा शमामा, शमाम-तुल-अंबर और मस्क अंबर जैसे हर्बल इत्र भी बाजार में मिल जाएंगे।
इत्र बनाने की एक इकाई की स्थापना करने में करीब 50,000 रुपये का खर्च आता है। इस इकाई में एक बार में 100 किलो कच्चे माल का प्रसंस्करण किया जा सकता है। इत्र बनाने के लिए तांबे से बने उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। ये उपकरण कन्नौज और फर्रखाबाद में आसानी से मिल जाते हैं। हालांकि उद्योग प्रशिक्षित कारीगरों की कमी से भी जूझ रहा है। इन इकाइयों में इत्र को देग और भाकपा प्रणाली से तैयार किया जाता है।
कुछ यूं आया गुलाब …
यूं तो भारत में इत्र वैदिक काल से है लेकिन गुलाब से बने इत्र का इस्तेमाल पहली बार मुगलकाल में शुरू हुआ। मुगल बेगम नूरजहां ने खासतौर से गुलाब इत्र के लिए पश्चिम एशिया के कारीगरों को बुलवाया। ये कारीगर कन्नौज में आकर बसे और कन्नौज इत्र उद्योग का गढ़ बन गया।
कहां से कौन सी महक
चंदन तेल दक्षिण भारत के राज्य
गुलाब अलीगढ़, पालमपुर
केवड़ा गंजम (उड़ीसा), उत्तराखंड
चमेली, गेंदा कन्नौज, पालमपुर
केसर जम्मू और कश्मीर