आखिरी सांसें ले रहा कत्तारपुर का फर्नीचर कारोबार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 1:05 AM IST

भारत के बंटवारे के पहले जालंधर जिले कार् कत्तारपुर गांव फर्नीचर कारोबार के लिए दूर-दूर तक मशहूर था।
पर समय के साथ ऐसी हवा बही कि चीन से बड़ी संख्या में फर्नीचरों के आयात और रॉट आयरन के फर्नीचरों के बढ़ते चलन ने इस कारोबार की हालत खस्ता कर दी है। या एक तरह से यूं कहें कि यह इस गांव में फर्नीचर बनाने का व्यवसाय अपनी आखिरी सांसें ले रहा है।
र्_कत्तारपुर का फर्नीचर कारोबार एक समय में कितना मशहूर रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर कतार में सजी फर्नीचर की दुकानों को दूर से देखकर कोई भी आसानी से इनकी पहचान कर सकता था।
पर दशकों पुराना यह कारोबार अब दम तोड़ता नजर आ रहा है। कारोबारी की हालत इतनी पस्त है कि जो लोग बरसों से इस पुश्तैनी काम में लगे हुए थे, वे भी दूसरे रोजगार तलाशते नजर आ रहे हैं।
फर्नीचर बनाने के काम में जुटे अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से आए थे, जिन्होंने देश के बंटवारे के बाद इस कारीगरी को जीवित रखने के लिए इसे सिखों के सुपुर्द कर दिया।र् कत्तारपुर के फर्नीचरों की सबसे बड़ी खासियत इनका टिकाऊ होना है।
यहां के फर्नीचरों को शीशम, टीक और सागवान की लकड़ियों से बनाया जाता है। फिलहाल कत्तारपुर की करीब 60 फीसदी आबादी लकड़ी के फर्नीचर बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं। इनमें से एक बड़ी आबादी मुस्लिम कारीगरों की है जो पाकिस्तान या दूसरे पड़ोसी देशों से यहां आकर बसे हैं।
पहले इस गांव में करीब 450 छोटी बड़ी फर्नीचर बनाने की इकाइयां थीं। ये इकाइयां विश्वकर्मा बाजार से शुरू होकर जालंधर शहर को जोड़ने वाली मुख्य सड़क तक फैली हुई हैं। फर्नीचर उत्पादन इकाई चलाने वाले स्वरूप राय ने बताया कि पंजाब में उच्च कोटि की लकड़ी नहीं मिलने के बावजूद इस उद्योग का काफी नाम रहा है।
उन्होंने कहा कि राज्य को अच्छी लकड़ियों के लिए मूल रूप से हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने बताया कि आज भी इन राज्यों से करीब 100 टन टीक, शीशम और रोजवुड मंगाई जाती है।
वहीं राजू बावा जो इन फर्नीचरों को बनाने के साथ साथ उनका निर्यात भी करते हैं, ने बताया कि कुछ साल पहले तकर् कत्तारपुर के फर्नीचरों का विदेशों में एक बड़ा बाजार था। खासतौर पर ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप में तो इनकी रिकॉर्ड मांग थी।
पर अब हालात पहले जैसे नहीं रह गए हैं। चीन से आने वाले फर्नीचरों ने इस कारोबार की कमर तोड़ दी है। कारोबारियों का कहना है कि इन आयातित फर्नीचरों की मांग बढ़ने की एक वजह यह है कि यह लकड़ी के फर्नीचरों की तुलना में काफी सस्ती होती हैं।
पर उन्होंने बताया कि जहां तक टिकाऊ होने की बात है तो असली लकड़ी से बने देशी फर्नीचरों का कोई मेल नहीं है। रही सही कसर लोहे के फर्नीचरों ने पूरी कर दी है, जिसके कारण भी फर्नीचर के कारोबार पर मार पड़ी है।
वहीं एक दूसरी फर्नीचर बनाने वाली इकाई के मालिक प्रेम बंसल ने बताया कि सरकार ने फर्नीचरों पर 12 फीसदी वैट लगाया है जिस कारण भी खरीदारर् कत्तारपुर के बाजारों में खरीदारी करने से कतरा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि घटते कारोबार का ही नतीजा है कि यहां की युवा पीढ़ी अब फर्नीचर बनाने के गुर नहीं सीखना चाह रही है और दूसरे विकल्पों को तलाशने में जुटी हुई है।

First Published : February 15, 2009 | 9:35 PM IST